अध्याय 8: लोकतंत्र की चुनौतियाँ (Challenges to Democracy)

परिचय

कक्षा 10 नागरिक शास्त्र का अंतिम अध्याय **'लोकतंत्र की चुनौतियाँ'** लोकतंत्र के सामने आने वाली विभिन्न बाधाओं और समस्याओं का विश्लेषण करता है। यह अध्याय केवल उन चुनौतियों की पहचान नहीं करता है बल्कि उन्हें दूर करने के संभावित तरीकों और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आवश्यक कदमों पर भी चर्चा करता है। यह लोकतंत्र को एक आदर्श प्रणाली के बजाय एक सतत प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत करता है जिसमें सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।

---

1. लोकतंत्र का अर्थ और चुनौतियाँ (Meaning of Democracy and Challenges)

हमने पिछले अध्यायों में देखा है कि लोकतंत्र विभिन्न रूपों में पाया जाता है और इसकी कई खूबियां हैं, जैसे समानता, स्वतंत्रता और गरिमा को बढ़ावा देना। लेकिन लोकतंत्र सिर्फ सरकारों का रूप नहीं है; यह एक प्रक्रिया है जिसे लगातार मजबूत करने की आवश्यकता होती है।

हर लोकतंत्र को किसी न किसी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियाँ अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन कुछ सामान्य चुनौतियाँ हैं जो लगभग सभी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को प्रभावित करती हैं।

1.1. लोकतंत्र के रास्ते की चुनौतियाँ (Challenges to the Foundation of Democracy)

ये वे चुनौतियाँ हैं जो लोकतंत्र की बहुत नींव को चुनौती देती हैं, जहाँ लोकतांत्रिक सरकार स्थापित ही नहीं हुई है:

1.2. विस्तार की चुनौतियाँ (Challenges of Expansion)

ये वे चुनौतियाँ हैं जो लोकतांत्रिक शासन के सभी क्षेत्रों, सभी सामाजिक समूहों और सभी संस्थानों तक फैलाने से संबंधित हैं:

1.3. लोकतंत्र को गहरा करने की चुनौतियाँ (Challenges of Deepening of Democracy)

यह चुनौती उन देशों में आती है जहाँ लोकतंत्र पहले से स्थापित है लेकिन उसे और अधिक प्रभावी और कुशल बनाने की आवश्यकता है। इसमें लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करना और वास्तविक अर्थों में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना शामिल है:

---

2. राजनीतिक सुधार (Political Reforms)

लोकतंत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिए राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता होती है। राजनीतिक सुधारों का अर्थ है ऐसे उपाय जो लोकतांत्रिक कामकाज को बेहतर बनाएं।

2.1. राजनीतिक सुधारों को कैसे किया जाए? (How to Carry Out Political Reforms?)

2.2. प्रमुख राजनीतिक सुधार (Key Political Reforms)

---

3. लोकतंत्र की पुनर्कल्पना (Rethinking Democracy)

लोकतंत्र कोई अंतिम उपलब्धि नहीं है; यह एक सतत प्रक्रिया है। एक देश को लोकतांत्रिक कहने का मतलब यह नहीं है कि सभी चुनौतियां खत्म हो गई हैं। लोकतंत्र को लगातार मजबूत और बेहतर बनाने की आवश्यकता है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

अभ्यास के प्रश्न

  1. लोकतंत्र के लिए कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? किसी एक चुनौती का विस्तार से वर्णन करें।

    लोकतंत्र के लिए कई तरह की चुनौतियाँ हैं जो इसे मजबूत और प्रभावी बनने से रोकती हैं। इन चुनौतियों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

    1. **लोकतंत्र की नींव डालने की चुनौती (Foundation Challenge):** उन देशों में जहाँ लोकतांत्रिक सरकार अभी तक स्थापित नहीं हुई है, वहाँ लोकतंत्र की स्थापना करना और अलोकतांत्रिक शासनों को हटाना। इसमें एक स्थिर लोकतांत्रिक संविधान बनाना, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना और नागरिक अधिकारों को सुनिश्चित करना शामिल है।
    2. **विस्तार की चुनौती (Challenge of Expansion):** यह चुनौती लोकतंत्र को समाज के सभी क्षेत्रों, सभी सामाजिक समूहों और सभी संस्थाओं तक फैलाने से संबंधित है। इसमें स्थानीय सरकारों को अधिक शक्ति देना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों के लिए भागीदारी बढ़ाना, और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूल विशेषताएं सभी पर लागू हों।
    3. **लोकतंत्र को गहरा करने की चुनौती (Challenge of Deepening):** यह चुनौती उन देशों में आती है जहाँ लोकतंत्र पहले से स्थापित है लेकिन उसे और अधिक प्रभावी और कुशल बनाने की आवश्यकता है। इसमें लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करना, राजनीतिक सुधार करना, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना और लोगों की बढ़ती उम्मीदों को पूरा करना शामिल है।

    **विस्तार से वर्णन: लोकतंत्र को गहरा करने की चुनौती**
    यह चुनौती उन लोकतांत्रिक देशों में सबसे आम है जहाँ लोकतंत्र अपनी शुरुआती अवस्था को पार कर चुका है और नियमित चुनाव, राजनीतिक दल और सरकारें मौजूद हैं। इस चुनौती का उद्देश्य लोकतंत्र को केवल औपचारिकताओं तक सीमित न रखकर उसे वास्तविक अर्थों में लोगों के जीवन में शामिल करना और उसकी गुणवत्ता में सुधार करना है।

    **इस चुनौती के प्रमुख पहलू:**

    1. **संस्थागत कमजोरी:** लोकतंत्र को गहरा करने के लिए उसकी संस्थाओं (जैसे संसद, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, राजनीतिक दल) को मजबूत और अधिक प्रभावी बनाना आवश्यक है। यदि ये संस्थाएँ कमजोर या अक्षम हैं, तो लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ केवल दिखावा बनकर रह जाती हैं। उदाहरण के लिए, यदि राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र का पालन नहीं करते, तो जनता की भागीदारी सीमित हो जाती है।
    2. **भ्रष्टाचार:** भ्रष्टाचार लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह सरकार की जवाबदेही को कम करता है, सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग करता है, और आम नागरिकों का व्यवस्था से विश्वास उठा देता है। भ्रष्टाचार सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है और असमानता को बढ़ावा देता है।
    3. **असमानता और गरीबी:** कई लोकतांत्रिक देशों में, आर्थिक असमानता और गरीबी अभी भी व्यापक है। यदि समाज के एक बड़े हिस्से को भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित रखा जाता है, तो उनके लिए राजनीतिक स्वतंत्रता और भागीदारी का कोई खास मतलब नहीं रह जाता। लोकतंत्र को गहरा करने के लिए इन असमानताओं को कम करना आवश्यक है।
    4. **सामाजिक विभाजन:** जाति, धर्म, लिंग या नस्ल के आधार पर गहरे सामाजिक विभाजन लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं। यदि ये विभाजन राजनीतिक रूप ले लेते हैं और विभिन्न समूह एक-दूसरे के प्रति शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं, तो यह सामाजिक सौहार्द को बाधित कर सकता है और यहां तक कि संघर्ष को भी जन्म दे सकता है।
    5. **नागरिकों की अपेक्षाएँ:** जैसे-जैसे लोकतंत्र मजबूत होता है, लोगों की अपेक्षाएँ भी बढ़ती जाती हैं। वे सरकारों से बेहतर शासन, विकास और अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद करते हैं। यदि सरकारें इन अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहती हैं, तो लोगों का लोकतंत्र से मोहभंग हो सकता है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है।
    6. **राजनीतिक दल और चुनाव:** राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी, वंशवाद, धन और बाहुबल का प्रयोग, और दलों के बीच सार्थक विकल्पों की कमी भी लोकतंत्र को गहरा करने में बाधा डालती है। यदि चुनाव केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाएं और वास्तविक शक्ति कुछ चुनिंदा हाथों में केंद्रित रहे, तो लोकतंत्र का सार कमजोर हो जाता है।
    संक्षेप में, लोकतंत्र को गहरा करने की चुनौती का अर्थ है लोकतांत्रिक शासन को केवल "रूप" में नहीं, बल्कि "वास्तविक" अर्थों में लोगों के लिए काम करने वाला बनाना। इसमें संस्थागत सुधार, सामाजिक न्याय और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना शामिल है।

  2. राजनीतिक सुधार क्या हैं? राजनीतिक सुधारों को कैसे किया जा सकता है?

    **राजनीतिक सुधार (Political Reforms):** राजनीतिक सुधारों से तात्पर्य उन उपायों, परिवर्तनों और पहलों से है जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के कामकाज को बेहतर बनाने, उसे अधिक पारदर्शी, जवाबदेह, समावेशी और प्रभावी बनाने के लिए किए जाते हैं। इनका उद्देश्य लोकतंत्र के भीतर मौजूद समस्याओं (जैसे आंतरिक लोकतंत्र की कमी, भ्रष्टाचार, बाहुबल का प्रयोग, आदि) को दूर करना और लोगों की भागीदारी को मजबूत करना होता है।

    **राजनीतिक सुधारों को कैसे किया जा सकता है:** राजनीतिक सुधारों को लागू करने के कई तरीके हैं, जिनमें कानूनी बदलावों से लेकर नागरिक समाज की सक्रियता तक शामिल हैं:

    1. **कानूनी परिवर्तन (Legal Changes):**
      • कई सुधारों को कानूनों के माध्यम से लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, **दलबदल विरोधी कानून** (एंटी-डिफेक्शन लॉ) ने सांसदों और विधायकों को दल बदलने से रोका है।
      • **उच्चतम न्यायालय के आदेश:** उच्चतम न्यायालय ने उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले अपनी संपत्ति और आपराधिक मामलों का विवरण एक हलफनामे (Affidavit) के रूप में देना अनिवार्य कर दिया है।
      • **चुनाव आयोग के नियम:** चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए आय का विवरण प्रस्तुत करना और आयकर रिटर्न भरना अनिवार्य कर दिया है। ये सभी कानूनी और नियामक बदलाव हैं।
    2. **संवैधानिक संशोधन (Constitutional Amendments):**
      • कुछ बड़े सुधारों के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, **स्थानीय निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण** संवैधानिक संशोधन के माध्यम से ही संभव हुआ है।
    3. **राजनीतिक दलों का आंतरिक सुधार (Internal Reforms by Political Parties):**
      • सबसे प्रभावी सुधार अक्सर राजनीतिक दलों के भीतर से ही आने चाहिए। दलों को अपने भीतर आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिए, नियमित संगठनात्मक चुनाव कराने चाहिए, सदस्यता रजिस्टर रखने चाहिए, और शीर्ष पदों पर वंशवाद की प्रथा को कम करना चाहिए।
      • दलों को धन और बाहुबल के उपयोग को हतोत्साहित करना चाहिए और अधिक योग्य व स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को टिकट देना चाहिए।
    4. **नागरिकों की भागीदारी और दबाव (Citizens' Participation and Pressure):**
      • जन आंदोलन, नागरिक समाज संगठन (CSOs), मीडिया, और जागरूक नागरिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये समूह सरकार और राजनीतिक दलों पर सुधारों को लागू करने के लिए दबाव डालते हैं।
      • **सूचना का अधिकार (RTI)** जैसे कानून नागरिकों को सरकार के कामकाज के बारे में जानकारी प्राप्त करने की शक्ति देते हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।
      • जनता की सक्रिय निगरानी और आलोचना दलों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करती है।
    5. **तकनीकी और संस्थागत सुधार (Technological and Institutional Reforms):**
      • ई-गवर्नेंस, ऑनलाइन शिकायत निवारण प्रणाली, और चुनाव में आधुनिक तकनीक का उपयोग (जैसे ईवीएम) भी पारदर्शिता और दक्षता बढ़ा सकता है।
      • न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता और अधिकार प्रदान करना ताकि वे अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से कर सकें।
    6. **लोकतंत्र के नैतिक और नैतिक पहलू को मजबूत करना:**
      • सुधार केवल कानूनों तक सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि नैतिक मूल्यों, ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा की भावना को भी बढ़ावा देना चाहिए। नेताओं और नागरिकों दोनों में लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता आवश्यक है।
    राजनीतिक सुधार एक सतत प्रक्रिया है। यह किसी एक कानून या कदम से पूरा नहीं होता, बल्कि इसके लिए लगातार प्रयास और विभिन्न हितधारकों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होती है।

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)