अध्याय 6: राजनीतिक दल (Political Parties)

परिचय

कक्षा 10 नागरिक शास्त्र का छठा अध्याय **'राजनीतिक दल'** लोकतंत्र के सबसे दृश्यमान और महत्वपूर्ण संस्थानों में से एक पर केंद्रित है। राजनीतिक दल चुनावों में भाग लेते हैं, सरकारों का गठन करते हैं और जनता की राय को आकार देते हैं। यह अध्याय राजनीतिक दलों के अर्थ, कार्यों, विभिन्न प्रकार की दलीय प्रणालियों, भारत के प्रमुख राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों, और राजनीतिक दलों के सामने आने वाली चुनौतियों तथा उनके सुधार के उपायों पर विस्तृत चर्चा करता है।

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1. राजनीतिक दल क्या हैं? (What are Political Parties?)

एक राजनीतिक दल लोगों का एक समूह होता है जो चुनाव लड़ने और सरकार में सत्ता हासिल करने के लिए एक साथ आते हैं। वे कुछ नीतियों और कार्यक्रमों पर सहमत होते हैं जो वे समाज के लिए बढ़ावा देना चाहते हैं।

दल समाज के सामूहिक हित को बढ़ावा देना चाहते हैं। हालाँकि, हर कोई इस बात पर सहमत नहीं होता कि सभी के लिए सबसे अच्छा क्या है। इसलिए, दल विभिन्न नीतियों के बारे में लोगों को समझाने का प्रयास करते हैं और समर्थन जुटाते हैं।

1.1. राजनीतिक दल के घटक (Components of a Political Party)

एक राजनीतिक दल के तीन मुख्य घटक होते हैं:

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2. राजनीतिक दलों के कार्य (Functions of Political Parties)

राजनीतिक दल लोकतंत्र में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं:

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3. कितने राजनीतिक दल होने चाहिए? (How Many Political Parties Should We Have?)

लोकतंत्र में दलों की संख्या अलग-अलग हो सकती है। विभिन्न प्रकार की दलीय प्रणालियाँ मौजूद हैं:

किसी देश के लिए कौन सी दलीय प्रणाली सबसे उपयुक्त है, यह उसकी सामाजिक और क्षेत्रीय विविधता, इतिहास और राजनीतिक संस्कृति पर निर्भर करता है। भारत में, बहु-दलीय प्रणाली आवश्यक है क्योंकि इसकी सामाजिक और भौगोलिक विविधता इतनी बड़ी है कि दो या तीन दल सभी हितों और विचारों को समाहित नहीं कर सकते।

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4. राष्ट्रीय दल (National Parties)

राष्ट्रीय दल वे दल होते हैं जिनकी उपस्थिति देश भर में होती है और जिनकी नीतियां राष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित होती हैं। भारत में, एक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं, जैसा कि चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित किया गया है:

भारत के कुछ प्रमुख राष्ट्रीय दल (2024 तक की स्थिति के अनुसार, परिवर्तन संभव है):

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5. राज्य दल (State Parties)

राज्य दल (या क्षेत्रीय दल) वे दल होते हैं जो केवल कुछ राज्यों या क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति रखते हैं। उन्हें राज्य दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं:

भारत में ऐसे कई राज्य दल हैं जो राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खासकर बहु-दलीय व्यवस्था में गठबंधन सरकारों के गठन में।

उदाहरण: समाजवादी पार्टी (उत्तर प्रदेश), राष्ट्रीय जनता दल (बिहार), ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (पश्चिम बंगाल), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (तमिलनाडु), शिवसेना (महाराष्ट्र), बीजू जनता दल (ओडिशा) आदि।

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6. राजनीतिक दलों के सामने चुनौतियाँ (Challenges to Political Parties)

लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दल महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे कई चुनौतियों का सामना करते हैं:

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7. राजनीतिक दलों को कैसे सुधारा जा सकता है? (How Can Parties Be Reformed?)

राजनीतिक दलों को मजबूत और अधिक प्रभावी बनाने के लिए कई सुधार किए गए हैं या प्रस्तावित हैं:

राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए अनिवार्य हैं। उनका सुधार एक सतत प्रक्रिया है जो नागरिकों की भागीदारी और सतर्कता पर निर्भर करती है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

अभ्यास के प्रश्न

  1. राजनीतिक दल क्या हैं और लोकतंत्र में इनकी आवश्यकता क्यों है?

    **राजनीतिक दल (Political Parties):** राजनीतिक दल लोगों का एक समूह होता है जो समान विचारधारा और दृष्टिकोण साझा करते हैं, चुनाव लड़ने और सरकार में राजनीतिक शक्ति हासिल करने के लिए एक साथ आते हैं। वे समाज के लिए कुछ नीतियों और कार्यक्रमों पर सहमत होते हैं, और उन नीतियों को लागू करने के लिए जन समर्थन हासिल करने का प्रयास करते हैं।

    **लोकतंत्र में इनकी आवश्यकता:** राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए अपरिहार्य हैं क्योंकि वे कई महत्वपूर्ण कार्य करते हैं जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू बनाते हैं और जनता की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं:

    1. **चुनाव लड़ना:** दल चुनाव लड़ते हैं और विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों के आधार पर उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं। यह नागरिकों को एक विकल्प प्रदान करता है कि वे किस प्रकार की सरकार चाहते हैं। दलों के बिना, हर उम्मीदवार स्वतंत्र होगा, और कोई भी बड़े नीतिगत बदलावों का वादा नहीं कर पाएगा।
    2. **सरकार का गठन और संचालन:** जो दल चुनाव जीतते हैं, वे सरकार बनाते हैं और चलाते हैं। दल ही नीतियों का निर्माण करते हैं, कानून बनाते हैं और देश का प्रशासन चलाते हैं। दलों के बिना, एक बड़ी आबादी वाले देश में निर्णय लेना और प्रशासन चलाना लगभग असंभव होगा।
    3. **विपक्ष की भूमिका:** जो दल चुनाव हारते हैं, वे विपक्ष की भूमिका निभाते हैं। वे सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करते हैं, वैकल्पिक नीतियां पेश करते हैं और सरकार को जवाबदेह ठहराते हैं। यह सरकार को मनमाने ढंग से कार्य करने से रोकता है और उसे जनहित में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
    4. **कानून बनाना:** दल विधायिका में कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सांसद और विधायक अपने दल के निर्देशों का पालन करते हैं, जिससे एक सुसंगत कानून-निर्माण प्रक्रिया सुनिश्चित होती है।
    5. **जनमत निर्माण:** दल विभिन्न मुद्दों को उठाते हैं और उन पर बहस करते हैं। वे अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में जनता को जागरूक करते हैं, जिससे जनमत का निर्माण होता है। वे सरकार की नीतियों के पक्ष या विपक्ष में लोगों को गोलबंद करते हैं।
    6. **सरकारी तंत्र तक पहुंच:** दल लोगों को सरकारी तंत्र और कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच प्रदान करते हैं। वे नागरिकों की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाते हैं और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में मदद करते हैं, खासकर उन लोगों को जो सीधे अधिकारियों तक नहीं पहुंच सकते।
    7. **सामाजिक समूहों को संगठित करना:** दल विभिन्न सामाजिक समूहों (जाति, धर्म, क्षेत्र आदि) के हितों को एकजुट करने और उन्हें राजनीतिक मंच पर व्यक्त करने में मदद करते हैं। यह संघर्षों को कम करने और विभिन्न समूहों को शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को रखने का अवसर प्रदान करता है।
    संक्षेप में, राजनीतिक दल लोकतंत्र को व्यावहारिक बनाते हैं। उनके बिना, चुनाव एक अर्थहीन अभ्यास होगा, सरकारें अस्थिर होंगी, और लोगों के पास अपनी आवाज़ उठाने या सत्ता को जवाबदेह ठहराने का कोई तरीका नहीं होगा।

  2. राजनीतिक दलों के सामने कौन सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं?

    राजनीतिक दल लोकतंत्र के आधारस्तंभ हैं, लेकिन वे कई गंभीर चुनौतियों का सामना करते हैं जो उनके प्रभावी कामकाज और लोकतंत्र की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

    1. **आंतरिक लोकतंत्र का अभाव (Lack of Internal Democracy):**
      • **समस्या:** अधिकांश राजनीतिक दलों के भीतर पर्याप्त आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता है। निर्णय लेने की शक्ति कुछ शीर्ष नेताओं के हाथ में केंद्रित होती है, और साधारण सदस्यों की राय या भागीदारी बहुत कम होती है।
      • **अभिव्यक्ति:** पार्टी के सदस्यों के रजिस्टर नहीं रखे जाते, संगठनात्मक बैठकें नियमित रूप से नहीं होतीं, और आंतरिक चुनाव नहीं होते।
      • **परिणाम:** इससे नेताओं के पास बहुत अधिक शक्ति आ जाती है, और वे अपनी इच्छा से निर्णय लेते हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी होती है।
    2. **वंशवाद का उत्तराधिकार (Dynastic Succession):**
      • **समस्या:** कई राजनीतिक दलों में, शीर्ष पदों पर योग्यता या अनुभव के बजाय पारिवारिक संबंधों को प्राथमिकता दी जाती है।
      • **अभिव्यक्ति:** महत्वपूर्ण पदों पर अक्सर एक ही परिवार के सदस्य काबिज होते हैं, जिससे साधारण सदस्यों के लिए शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।
      • **परिणाम:** यह अयोग्य व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पद दिला सकता है और लोकतंत्र में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
    3. **धन और बाहुबल का प्रयोग (Money and Muscle Power):**
      • **समस्या:** चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल अक्सर बड़ी मात्रा में धन और कभी-कभी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की शक्ति का उपयोग करते हैं।
      • **अभिव्यक्ति:** दल ऐसे उम्मीदवारों को नामित करते हैं जिनके पास या तो बहुत पैसा होता है, या वे आपराधिक रिकॉर्ड वाले होते हैं जो चुनाव जीतने में "मदद" कर सकते हैं।
      • **परिणाम:** यह आम जनता के लिए चुनाव लड़ना मुश्किल बनाता है, लोकतंत्र की गुणवत्ता को कम करता है, और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
    4. **विकल्पहीनता (Lack of Meaningful Choice):**
      • **समस्या:** कई बार प्रमुख राजनीतिक दलों की नीतियां, कार्यक्रम और विचारधाराएं बहुत समान लगने लगती हैं।
      • **अभिव्यक्ति:** मतदाताओं को लगता है कि उनके पास चुनने के लिए कोई वास्तविक या सार्थक विकल्प नहीं है, क्योंकि सभी दल लगभग एक ही तरह की बातें करते हैं या एक ही तरह की नीतियों का पालन करते हैं।
      • **परिणाम:** यह मतदाताओं में उदासीनता पैदा कर सकता है और लोकतंत्र में उनकी रुचि को कम कर सकता है।
    5. **दलबदल (Defection):**
      • **समस्या:** निर्वाचित प्रतिनिधियों का एक दल से दूसरे दल में व्यक्तिगत लाभ या मंत्री पद की लालसा में चले जाना।
      • **परिणाम:** यह सरकारों को अस्थिर करता है और मतदाताओं के जनादेश का अनादर करता है।
    6. **क्षेत्रीयता और सांप्रदायिकता का बढ़ना:**
      • **समस्या:** कुछ दल क्षेत्रीय या सांप्रदायिक मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता को खतरा होता है।
      • **परिणाम:** यह समाज में विभाजन पैदा कर सकता है और राष्ट्रीय हित से ऊपर क्षेत्रीय या धार्मिक हितों को बढ़ावा दे सकता है।
    इन चुनौतियों का समाधान लोकतंत्र को स्वस्थ और प्रभावी बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

  3. राजनीतिक दलों में सुधार के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

    राजनीतिक दलों को अधिक लोकतांत्रिक, पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए कई सुधार किए गए हैं और कुछ प्रस्तावित हैं:

    **किए गए संवैधानिक और कानूनी सुधार:**

    1. **दलबदल विरोधी कानून (Anti-defection Law):**
      • **सुधार:** 1985 में संविधान में संशोधन करके दलबदल विरोधी कानून बनाया गया। इस कानून के तहत, यदि कोई निर्वाचित विधायक या सांसद अपने दल को बदलता है तो उसे विधायिका में अपनी सीट गंवानी पड़ती है।
      • **प्रभाव:** इस कानून ने दलबदल को काफी हद तक नियंत्रित किया है और सरकारों में स्थिरता लाई है। हालाँकि, इसका एक नकारात्मक पक्ष यह है कि इसने पार्टी नेतृत्व को और मजबूत किया है, क्योंकि अब विधायकों/सांसदों को पार्टी के निर्देशों का पालन करना पड़ता है, भले ही वे सहमत न हों।
    2. **धन और आपराधिक मामलों का विनियमन (Regulation of Money and Criminal Cases):**
      • **सुधार:** उच्चतम न्यायालय ने एक आदेश पारित किया है जिसमें उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले अपनी संपत्ति और अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण एक हलफनामे (Affidavit) के माध्यम से प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया है। यह हलफनामा सार्वजनिक किया जाता है।
      • **सुधार:** चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए यह अनिवार्य कर दिया है कि वे अपने आयकर रिटर्न दाखिल करें और 20,000 रुपये से अधिक के सभी चंदे का विवरण प्रस्तुत करें।
      • **प्रभाव:** इन कदमों से धन और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में मदद मिली है, क्योंकि मतदाता अब उम्मीदवारों के बारे में अधिक सूचित निर्णय ले सकते हैं। हालांकि, अभी भी बड़ी चुनौती है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग राजनीति में प्रवेश न कर पाएं।

    **प्रस्तावित और अन्य सुधारों के सुझाव:**
    1. **दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र को अनिवार्य करना:**
      • कानून बनाया जाए कि राजनीतिक दल अपने सदस्यों का रजिस्टर रखें, अपने संविधान का पालन करें, नियमित रूप से आंतरिक चुनाव कराएं (विशेषकर शीर्ष पदों के लिए), और महत्वपूर्ण फैसलों के लिए पारदर्शिता लाएं।
      • एक स्वतंत्र निकाय या पार्टी चुनाव आयोग बनाया जा सकता है जो दल के आंतरिक चुनावों की निगरानी करे।
    2. **महिलाओं के लिए आरक्षण:**
      • कानून बनाया जाए कि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण हो, जैसा कि स्थानीय निकायों में किया गया है।
    3. **राज्य द्वारा चुनाव वित्तपोषण (State Funding of Elections):**
      • सरकार दलों को चुनाव लड़ने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करे (जैसे पेट्रोल, कागज, टेलीफोन आदि के रूप में), ताकि धन के प्रभाव को कम किया जा सके और गरीब उम्मीदवार भी चुनाव लड़ सकें।
      • या कुछ निश्चित सीमा तक चंदा देने वाले व्यक्तियों को कर लाभ दिया जाए।
    4. **जनता का दबाव:**
      • नागरिक समाज संगठन (CSOs), मीडिया, और जन आंदोलन दलों पर दबाव डाल सकते हैं कि वे अपने कामकाज में सुधार करें। जनता की भागीदारी और जागरूकता दलों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर कर सकती है।
    5. **आचार संहिता को सख्त बनाना:**
      • चुनाव आयोग को दलों और उम्मीदवारों द्वारा चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में और अधिक शक्तियां दी जानी चाहिए।
    राजनीतिक दलों का सुधार एक जटिल और सतत प्रक्रिया है, जिसके लिए कानूनी बदलाव, संस्थागत सुधार और जनता की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है।

  4. विभिन्न प्रकार की दलीय प्रणालियों का वर्णन करें। भारत में कौन सी प्रणाली अपनाई गई है और क्यों?

    **विभिन्न प्रकार की दलीय प्रणालियाँ (Different Types of Party Systems):** विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों की संख्या और उनके सत्ता में आने की संभावना के आधार पर विभिन्न प्रकार की दलीय प्रणालियाँ मौजूद हैं:

    1. **एक-दलीय प्रणाली (One-Party System):**
      • **परिभाषा:** इस प्रणाली में केवल एक ही राजनीतिक दल को सरकार बनाने और चलाने की अनुमति होती है। कानून द्वारा केवल एक ही दल का अस्तित्व होता है या अन्य दलों को इतनी कम शक्ति होती है कि वे चुनाव जीतने की कोई वास्तविक चुनौती पेश नहीं कर पाते।
      • **विशेषता:** यह प्रणाली अक्सर गैर-लोकतांत्रिक मानी जाती है क्योंकि नागरिकों के पास सरकार चुनने या बदलने का कोई वास्तविक विकल्प नहीं होता।
      • **उदाहरण:** चीन (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना)।
    2. **द्वि-दलीय प्रणाली (Two-Party System):**
      • **परिभाषा:** इस प्रणाली में मुख्य रूप से दो प्रमुख राजनीतिक दल होते हैं जिनके पास चुनाव जीतने और अपने दम पर सरकार बनाने का गंभीर मौका होता है। अन्य छोटे दल मौजूद हो सकते हैं, लेकिन वे आमतौर पर बहुत कम सीटें जीतते हैं और शायद ही कभी सरकार बना पाते हैं।
      • **विशेषता:** यह प्रणाली मतदाताओं को एक स्पष्ट विकल्प प्रदान करती है, और सरकारें आमतौर पर अधिक स्थिर होती हैं।
      • **उदाहरण:** संयुक्त राज्य अमेरिका (डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी), यूनाइटेड किंगडम (कंजरवेटिव पार्टी और लेबर पार्टी)।
    3. **बहु-दलीय प्रणाली (Multi-Party System):**
      • **परिभाषा:** इस प्रणाली में दो से अधिक दल होते हैं जिनके पास चुनाव जीतने और अपने दम पर या अन्य दलों के साथ गठबंधन करके सरकार बनाने का वास्तविक मौका होता है।
      • **विशेषता:** यह प्रणाली समाज के विभिन्न वर्गों, हितों और विचारधाराओं को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है। इसमें अक्सर गठबंधन सरकारों का उदय होता है क्योंकि किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिलना मुश्किल होता है।
      • **उदाहरण:** भारत, जर्मनी, फ्रांस, इटली।

    **भारत में अपनाई गई प्रणाली और क्यों:** भारत ने **बहु-दलीय प्रणाली** अपनाई है।

    **इसके कारण:**
    1. **विशाल सामाजिक और भौगोलिक विविधता:** भारत एक विशाल देश है जिसमें अत्यधिक सामाजिक और भौगोलिक विविधता है। विभिन्न भाषाएँ, धर्म, जातियाँ, संस्कृतियाँ और आर्थिक हित मौजूद हैं। दो या तीन दल इन सभी विविधताओं को पर्याप्त रूप से समायोजित नहीं कर सकते।
    2. **क्षेत्रीय हितों का प्रतिनिधित्व:** बहु-दलीय प्रणाली विभिन्न क्षेत्रीय दलों को अपनी विशिष्ट पहचान और क्षेत्रीय मुद्दों को राजनीतिक मंच पर लाने का अवसर देती है। ये दल स्थानीय आबादी के हितों का बेहतर प्रतिनिधित्व करते हैं।
    3. **गठबंधन सरकारों की आवश्यकता:** भारत के संसदीय इतिहास में अक्सर ऐसा हुआ है कि किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में, विभिन्न दलों के बीच गठबंधन सरकारें बनाना एक आवश्यकता बन गई है, और बहु-दलीय प्रणाली ही इस प्रकार के शासन की अनुमति देती है।
    4. **विकल्पों की उपलब्धता:** बहु-दलीय प्रणाली मतदाताओं को चुनने के लिए अधिक विकल्प प्रदान करती है, जिससे वे अपनी प्राथमिकताओं और हितों के अनुसार दल चुन सकते हैं।
    5. **लोकतंत्र का गहरा होना:** यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि हाशिये पर पड़े समूह और अल्पसंख्यक भी राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल हो सकें और उनकी आवाज सुनी जा सके।
    हालांकि बहु-दलीय प्रणाली कुछ अस्थिरता का कारण बन सकती है (विशेषकर गठबंधन सरकारों में), भारत की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए, यह सबसे उपयुक्त प्रणाली प्रतीत होती है क्योंकि यह देश की विशाल विविधता और लोकतांत्रिक भागीदारी की आवश्यकता को बेहतर ढंग से संबोधित करती है।

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