अध्याय 2: संघवाद (Federalism)
परिचय
कक्षा 10 नागरिक शास्त्र का दूसरा अध्याय **'संघवाद'** शक्ति-साझाकरण के एक और रूप पर केंद्रित है, जहाँ सरकार दो या अधिक स्तरों पर मौजूद होती है। यह अध्याय संघवाद की विशेषताओं, भारत में संघीय व्यवस्था के स्वरूप और उसकी चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
---1. संघवाद क्या है? (What is Federalism?)
संघवाद सरकार का वह रूप है जिसमें शक्ति को केंद्रीय प्राधिकारी और देश की विभिन्न घटक इकाइयों के बीच विभाजित किया जाता है। इसमें सरकार के दो या अधिक स्तर होते हैं।
- एक केंद्र सरकार पूरे देश के लिए होती है, जो आमतौर पर कुछ राष्ट्रीय महत्व के विषयों के लिए जिम्मेदार होती है।
- प्रांतीय या राज्य सरकारें होती हैं जो अपने संबंधित प्रांतों या राज्यों के प्रशासन के लिए जिम्मेदार होती हैं।
दोनों स्तर की सरकारें अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।
एकात्मक शासन के विपरीत, जहाँ शासन का एक ही स्तर होता है या उप-इकाइयाँ केंद्र सरकार के अधीन होती हैं, संघवाद में राज्यों की अपनी शक्तियाँ होती हैं और वे केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं।
---2. संघवाद की मुख्य विशेषताएँ (Key Features of Federalism)
संघवाद की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- **दो या अधिक स्तर की सरकारें:** सरकार के दो या अधिक स्तर (या सोपान) होते हैं - एक केंद्र के लिए और एक या अधिक राज्यों या प्रांतीय स्तरों के लिए।
- **अलग-अलग अधिकार क्षेत्र:** प्रत्येक स्तर की सरकार का अपना विशिष्ट अधिकार क्षेत्र होता है (विधायी, कार्यकारी और वित्तीय मामलों में), जो संविधान द्वारा निर्धारित होता है।
- **संवैधानिक गारंटी:** प्रत्येक स्तर की सरकार के अधिकार क्षेत्र को संविधान द्वारा गारंटी और सुरक्षा प्रदान की जाती है। संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार द्वारा एकतरफा नहीं बदला जा सकता है।
- **न्यायपालिका की भूमिका:** अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय एक अंपायर के रूप में कार्य करता है यदि विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन को लेकर कोई विवाद उत्पन्न होता है।
- **दोहरा उद्देश्य:** संघीय व्यवस्था का दोहरा उद्देश्य होता है: देश की एकता और अखंडता को सुरक्षित रखना और बढ़ावा देना, साथ ही क्षेत्रीय विविधता का सम्मान करना और उसे समायोजित करना।
- **राजस्व के अलग स्रोत:** प्रत्येक स्तर की सरकार के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट होते हैं ताकि उनकी वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित हो सके।
3. संघीय शासन व्यवस्थाओं के प्रकार (Types of Federal Systems)
संघीय शासन व्यवस्थाएँ आमतौर पर दो तरीकों से गठित होती हैं:
- **साथ आकर संघ बनाना (Coming Together Federations):**
- इसमें स्वतंत्र राज्य स्वेच्छा से एक बड़ी इकाई बनाने के लिए एक साथ आते हैं।
- इसका उद्देश्य अपनी संप्रभुता बनाए रखते हुए अपनी पहचान को बनाए रखना और अपनी सुरक्षा बढ़ाना है।
- इसमें घटक इकाइयों को आमतौर पर समान शक्ति होती है।
- उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया।
- **साथ लेकर संघ बनाना (Holding Together Federations):**
- इसमें एक बड़ा देश अपनी आंतरिक विविधता को समायोजित करने के लिए अपनी शक्ति को घटक इकाइयों और केंद्र सरकार के बीच विभाजित करने का निर्णय लेता है।
- केंद्र सरकार राज्यों की तुलना में अधिक शक्तिशाली होती है।
- घटक इकाइयों के पास अक्सर असमान शक्तियाँ होती हैं, और कुछ इकाइयों को विशेष दर्जा दिया जा सकता है।
- उदाहरण: भारत, स्पेन, बेल्जियम।
4. भारत में संघीय व्यवस्था (Federalism in India)
भारत एक 'साथ लेकर संघ बनाने' का उदाहरण है। भारतीय संघीय व्यवस्था की विशेषताएँ:
- **तीन स्तरीय सरकार:**
- **केंद्र सरकार (या संघ सरकार):** पूरे देश के लिए।
- **राज्य सरकारें:** राज्यों के लिए।
- **स्थानीय सरकारें:** पंचायतें और नगरपालिकाएँ (तीसरा स्तर, 1992 के संवैधानिक संशोधन के बाद)।
- **तीन सूचियाँ (Three-fold Distribution of Legislative Powers):** संविधान स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित करता है:
- **संघ सूची (Union List):** राष्ट्रीय महत्व के विषय (जैसे रक्षा, विदेश मामले, बैंकिंग, संचार, मुद्रा)। इन पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है।
- **राज्य सूची (State List):** राज्य और स्थानीय महत्व के विषय (जैसे पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, सिंचाई)। इन पर कानून बनाने का अधिकार केवल राज्य सरकारों के पास है।
- **समवर्ती सूची (Concurrent List):** केंद्र और राज्य दोनों के साझा हित के विषय (जैसे शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह, गोद लेना और उत्तराधिकार)। इन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। यदि कानूनों में टकराव होता है, तो केंद्र सरकार का कानून मान्य होता है।
- **अवशिष्ट विषय (Residuary Subjects):** वे विषय जो इन तीनों सूचियों में से किसी में भी नहीं हैं (जैसे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, इंटरनेट) उन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।
- **विशेष दर्जा:** कुछ राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया है (जैसे पूर्वोत्तर के राज्य, जम्मू-कश्मीर पहले), जो उनकी अद्वितीय सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों को दर्शाता है।
- **केंद्र शासित प्रदेश (Union Territories):** ये ऐसे छोटे क्षेत्र हैं जो किसी राज्य में शामिल नहीं किए जा सकते। उनके पास राज्यों की शक्तियाँ नहीं होती हैं और वे सीधे केंद्र सरकार द्वारा शासित होते हैं (जैसे चंडीगढ़, लक्षद्वीप, दिल्ली)।
- **स्वतंत्र न्यायपालिका:** न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय) कानूनों और संविधान की व्याख्या करती है और केंद्र व राज्य सरकारों के बीच विवादों का निपटारा करती है।
5. भारत में संघीय व्यवस्था को सफल बनाने वाले कारक (How is Federalism Practised in India?)
भारतीय संघीय व्यवस्था की सफलता केवल संवैधानिक प्रावधानों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि लोकतांत्रिक राजनीति के स्वरूप और भावना पर भी निर्भर करती है।
- **भाषाई राज्य (Linguistic States):**
- भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर किया गया, जिससे भाषाई विविधता को समायोजित किया गया।
- यह प्रक्रिया लोकतंत्र को मजबूत करती है और देश को अधिक एकजुट बनाती है।
- **भाषा नीति (Language Policy):**
- भारत में कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है। हिंदी को राजभाषा (Official Language) का दर्जा दिया गया है, लेकिन संविधान में 22 भाषाओं को अनुसूचित भाषाओं के रूप में मान्यता दी गई है।
- राज्यों को अपनी राजभाषा चुनने की स्वतंत्रता है।
- अंग्रेजी का उपयोग केंद्र सरकार के आधिकारिक उद्देश्यों के लिए जारी रखा गया।
- यह नीति भाषाई विविधता का सम्मान करती है और टकराव से बचाती है।
- **केंद्र-राज्य संबंध (Centre-State Relations):**
- 1990 के दशक के बाद गठबंधन सरकारों के युग की शुरुआत हुई, जिससे केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति-साझाकरण की प्रवृत्ति अधिक मजबूत हुई।
- राज्य सरकारों की स्वायत्तता का अधिक सम्मान किया जाने लगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार को राज्य सरकारों को मनमाने ढंग से बर्खास्त करने से रोका।
6. विकेंद्रीकरण (Decentralisation)
जब केंद्र और राज्य सरकारों से कुछ शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं, तो इसे **विकेंद्रीकरण** कहते हैं।
- **आवश्यकता:**
- भारत जैसे विशाल देश में केवल दो स्तरों की सरकार से प्रभावी शासन संभव नहीं है।
- राज्यों का आकार और विविधता बहुत अधिक है, जिससे उन्हें और अधिक छोटे प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित करने की आवश्यकता है।
- स्थानीय स्तर पर लोगों को अपनी समस्याओं की बेहतर समझ होती है और वे उनका समाधान अधिक प्रभावी ढंग से कर सकते हैं।
- यह लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ाता है।
- **भारत में विकेंद्रीकरण की दिशा में कदम:**
- **पंचायती राज (Panchayati Raj System):** ग्रामीण स्थानीय सरकार।
- **नगरपालिकाएँ (Municipalities):** शहरी स्थानीय सरकार।
- **1992 का संवैधानिक संशोधन (Constitutional Amendment of 1992):**
- स्थानीय स्वशासन को अधिक शक्तिशाली और प्रभावी बनाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम था।
- **प्रमुख प्रावधान:**
- स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक रूप से अनिवार्य हो गया।
- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया गया।
- कम से कम एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए।
- राज्य चुनाव आयोग (State Election Commission) का गठन किया गया ताकि पंचायत और नगरपालिका चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से कराए जा सकें।
- राज्य सरकारों को स्थानीय स्वशासी निकायों को कुछ अधिकार और राजस्व के स्रोत साझा करने पड़े।
6.1. ग्रामीण स्थानीय सरकार (Gramin Local Government - Panchayati Raj)
- **ग्राम पंचायत:** प्रत्येक गाँव या गाँव समूह में होती है। सदस्य सीधे निर्वाचित होते हैं। अध्यक्ष (प्रधान/सरपंच) का चुनाव सदस्यों या सीधे लोगों द्वारा किया जाता है। निर्णय लेने वाली संस्था।
- **ग्राम सभा:** सभी वयस्क मतदाताओं की सभा। पंचायत के बजट को मंजूरी देती है और उसके प्रदर्शन की समीक्षा करती है। वर्ष में कम से कम दो या तीन बार मिलना अनिवार्य।
- **पंचायत समिति / ब्लॉक समिति / मंडल:** कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर बनती है। सदस्यों का चुनाव पंचायत के सदस्यों द्वारा होता है।
- **जिला परिषद:** जिले के स्तर पर। इसमें जिले की सभी पंचायत समितियों के निर्वाचित सदस्य, लोकसभा/विधानसभा सदस्य, और जिले के अन्य अधिकारी शामिल होते हैं। अध्यक्ष जिला परिषद का राजनीतिक प्रमुख होता है।
6.2. शहरी स्थानीय सरकार (Urban Local Government)
- **नगरपालिकाएँ (Municipalities):** छोटे शहरों के लिए। नगर पालिका अध्यक्ष राजनीतिक प्रमुख होता है।
- **नगर निगम (Municipal Corporations):** बड़े शहरों के लिए। महापौर (Mayor) राजनीतिक प्रमुख होता है।
स्थानीय सरकार का यह तीसरा स्तर लोकतंत्र को जमीन से जोड़ने और लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
अभ्यास के प्रश्न
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संघवाद क्या है? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
**संघवाद (Federalism):** संघवाद सरकार का वह रूप है जिसमें शक्ति को केंद्रीय प्राधिकारी और देश की विभिन्न घटक इकाइयों के बीच विभाजित किया जाता है। इसमें सरकार के दो या अधिक स्तर होते हैं, जो अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
**संघवाद की मुख्य विशेषताएँ:**- **दो या अधिक स्तर की सरकारें:** इसमें सरकार के दो या अधिक स्तर (या सोपान) होते हैं। आमतौर पर एक सरकार पूरे देश के लिए होती है (जिसे केंद्र सरकार या संघ सरकार कहते हैं), और दूसरी सरकारें प्रांतीय या राज्य स्तर पर होती हैं। भारत में स्थानीय सरकार के रूप में तीसरा स्तर भी है।
- **अलग-अलग अधिकार क्षेत्र:** प्रत्येक स्तर की सरकार का अपना विशिष्ट अधिकार क्षेत्र होता है, जो संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से निर्धारित होता है। यह अधिकार क्षेत्र विधायी (कानून बनाने), कार्यकारी (कानूनों को लागू करने) और वित्तीय (राजस्व जुटाने) मामलों से संबंधित होता है।
- **संवैधानिक गारंटी:** प्रत्येक स्तर की सरकार के अधिकार क्षेत्र को संविधान द्वारा गारंटी और सुरक्षा प्रदान की जाती है। संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार (अकेले) द्वारा एकतरफा नहीं बदला जा सकता है। ऐसे बदलावों के लिए दोनों स्तरों की सरकारों की सहमति आवश्यक होती है।
- **न्यायपालिका की भूमिका:** अदालतों (विशेषकर सर्वोच्च न्यायालय) को संविधान और विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। यदि विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन या अधिकार क्षेत्र को लेकर कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो सर्वोच्च न्यायालय एक अंपायर के रूप में कार्य करता है और अंतिम निर्णय देता है।
- **दोहरा उद्देश्य:** संघीय व्यवस्था का दोहरा उद्देश्य होता है: देश की एकता और अखंडता को सुरक्षित रखना और उसे बढ़ावा देना, साथ ही क्षेत्रीय विविधता का सम्मान करना और उसे समायोजित करना। यह विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने की अनुमति देता है जबकि वे एक बड़े राष्ट्र का हिस्सा होते हैं।
- **राजस्व के अलग स्रोत:** प्रत्येक स्तर की सरकार के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत स्पष्ट रूप से संविधान में निर्दिष्ट होते हैं। यह उनकी वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित करता है ताकि वे अपने कार्यों और जिम्मेदारियों को पूरा कर सकें।
- **नागरिकों पर दोहरी नागरिकता या अधिकार क्षेत्र:** कुछ संघीय प्रणालियों में नागरिकों की दोहरी नागरिकता (केंद्र और राज्य) हो सकती है, जबकि सभी संघीय प्रणालियों में नागरिक दोहरी जवाबदेही रखते हैं (केंद्र और राज्य दोनों कानूनों का पालन करना)।
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भारत की संघीय व्यवस्था बेल्जियम से किस प्रकार भिन्न है?
भारत की संघीय व्यवस्था बेल्जियम से महत्वपूर्ण तरीकों से भिन्न है, खासकर शक्तियों के विकेंद्रीकरण और विविधता को समायोजित करने के तरीकों में। बेल्जियम ने विविधता को समायोजित करने के लिए **समुदाय सरकार** का एक अनूठा मॉडल अपनाया, जबकि भारत ने **भाषाई राज्यों के गठन और त्रि-स्तरीय सरकार** के माध्यम से विविधता को स्वीकार किया।
प्रमुख भिन्नताएँ इस प्रकार हैं:
**बेल्जियम की संघीय व्यवस्था (पावर शेयरिंग मॉडल):**- **केंद्र सरकार की शक्तियाँ सीमित:** बेल्जियम में, केंद्र सरकार की शक्तियाँ संविधान में स्पष्ट रूप से सीमित की गई हैं। राज्य सरकारों को भी अपनी शक्तियाँ दी गई हैं, जिनके लिए वे केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
- **राज्यों को अधिक स्वायत्तता:** राज्यों को पर्याप्त स्वायत्तता दी गई है, और केंद्र सरकार उनकी शक्तियों को मनमाने ढंग से कम नहीं कर सकती।
- **समुदाय सरकार:** बेल्जियम मॉडल की सबसे अनूठी विशेषता 'समुदाय सरकार' है। यह सरकार का तीसरा स्तर है (केंद्र और राज्य के अलावा) जिसे भाषा के आधार पर चुना जाता है (डच-भाषी, फ्रांसीसी-भाषी, जर्मन-भाषी)। इसके पास सांस्कृतिक, शैक्षिक और भाषा-संबंधी मामलों पर कानून बनाने की शक्ति है, चाहे लोग कहीं भी रहते हों। यह मॉडल विभिन्न भाषाई समूहों के बीच टकराव को रोकने में सहायक रहा।
- **राजधानी में समान प्रतिनिधित्व:** ब्रुसेल्स (राजधानी) में डच और फ्रांसीसी दोनों भाषाई समुदायों को समान प्रतिनिधित्व दिया गया, भले ही फ्रांसीसी बोलने वाले वहाँ बहुसंख्यक थे।
- **उद्देश्य:** बेल्जियम का मॉडल मुख्य रूप से भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के कारण होने वाले जातीय टकरावों को रोकने और एक मजबूत राष्ट्र-राज्य बनाए रखने पर केंद्रित था।
**भारत की संघीय व्यवस्था:**संक्षेप में, बेल्जियम ने एक जटिल लेकिन सफल समुदाय-आधारित मॉडल अपनाया ताकि भाषाई टकरावों से बचा जा सके, जबकि भारत ने भाषाई पुनर्गठन और केंद्र को अधिक शक्तियाँ देकर अपनी विशाल विविधता और एकता को बनाए रखने का प्रयास किया।- **केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली (Holding Together Federation):** भारत एक 'साथ लेकर संघ बनाने' (Holding Together Federation) का उदाहरण है, जहाँ केंद्र सरकार राज्यों की तुलना में अधिक शक्तिशाली होती है। अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र के पास होती हैं, और समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र के कानून को प्राथमिकता मिलती है।
- **तीन सूचियाँ और शक्ति विभाजन:** भारतीय संविधान तीन सूचियों (संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची) के माध्यम से विधायी शक्तियों का विस्तृत विभाजन करता है। राज्य सरकारों को अपने अधिकार क्षेत्र में कानून बनाने की स्वायत्तता होती है, लेकिन कुछ मामलों में केंद्र का हस्तक्षेप हो सकता है।
- **भाषाई राज्यों का गठन:** भारत ने भाषाई विविधता को समायोजित करने के लिए राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर किया। इससे विभिन्न भाषाई समूहों के लिए अपनी पहचान और संस्कृति को बनाए रखना आसान हुआ।
- **भाषा नीति:** भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है। हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है, लेकिन अन्य 21 भाषाओं को संवैधानिक रूप से मान्यता दी गई है। राज्यों को अपनी राजभाषा चुनने की स्वतंत्रता है। यह भाषाई विविधता के प्रति एक समावेशी दृष्टिकोण दर्शाता है।
- **त्रि-स्तरीय सरकार:** भारत में स्थानीय स्वशासन (पंचायतें और नगरपालिकाएँ) को 1992 के संवैधानिक संशोधन के माध्यम से संवैधानिक दर्जा दिया गया, जिससे सरकार का तीसरा स्तर मजबूत हुआ।
- **असमान शक्तियाँ:** भारत में, सभी राज्यों को समान शक्तियाँ नहीं हैं। कुछ राज्यों को (जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों को) विशेष दर्जा प्राप्त है, और केंद्र शासित प्रदेशों को सीधे केंद्र द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- **उद्देश्य:** भारत का मॉडल विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों वाले एक विशाल और विविध देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के साथ-साथ क्षेत्रीय विविधताओं को समायोजित करने पर केंद्रित है।
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विकेंद्रीकरण क्या है? इसके महत्व का वर्णन करें।
**विकेंद्रीकरण (Decentralisation):** जब केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से कुछ शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं, तो इस प्रक्रिया को विकेंद्रीकरण कहा जाता है। इसका अर्थ है सत्ता का विभाजन एक केंद्रीय स्थान या प्राधिकारी से निचले स्तरों तक करना।
**विकेंद्रीकरण का महत्व:**- **स्थानीय समस्याओं का बेहतर समाधान:** स्थानीय स्तर पर लोगों को अपनी समस्याओं की बेहतर समझ होती है। वे जानते हैं कि समस्याओं का समाधान कहाँ और कैसे किया जा सकता है, और वे संसाधनों का बेहतर उपयोग कैसे कर सकते हैं। स्थानीय लोग स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय ले सकते हैं।
- **लोकतांत्रिक भागीदारी में वृद्धि:** विकेंद्रीकरण से लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ती है। जब लोग अपने स्वयं के स्थानीय शासन में भाग लेते हैं, तो यह लोकतंत्र को जड़ों तक मजबूत करता है। यह नागरिकों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में सीधा हिस्सा लेने का अवसर देता है।
- **प्रशासनिक बोझ में कमी:** केंद्र और राज्य सरकारों पर काम का बोझ कम होता है क्योंकि कई जिम्मेदारियाँ स्थानीय सरकारों को सौंप दी जाती हैं। इससे ऊपरी स्तर की सरकारें अधिक महत्वपूर्ण और बड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर पाती हैं।
- **क्षेत्रीय विविधताओं का सम्मान:** भारत जैसे विशाल और विविध देश में, हर क्षेत्र की अपनी विशिष्ट आवश्यकताएँ और समस्याएँ होती हैं। विकेंद्रीकरण इन क्षेत्रीय विविधताओं का सम्मान करता है और स्थानीय स्तर पर अनुकूलित समाधानों की अनुमति देता है।
- **जवाबदेही में वृद्धि:** स्थानीय सरकारें सीधे स्थानीय लोगों के प्रति जवाबदेह होती हैं, क्योंकि वे उनके द्वारा चुने जाते हैं और उनकी दैनिक जरूरतों से सीधे जुड़े होते हैं। इससे शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।
- **क्षमता निर्माण:** स्थानीय स्तर पर नेताओं और प्रशासकों को निर्णय लेने और विकास योजनाओं को लागू करने का अनुभव मिलता है, जिससे उनकी क्षमता का विकास होता है।
- **महिलाओं और वंचित वर्गों का सशक्तिकरण:** भारत में 1992 के संवैधानिक संशोधन के बाद स्थानीय निकायों में महिलाओं और अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण किया गया, जिससे इन वर्गों को राजनीतिक शक्ति और प्रतिनिधित्व मिला, और वे मुख्यधारा में शामिल हुए।
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1992 के संवैधानिक संशोधन के प्रमुख प्रावधानों का वर्णन करें।
1992 का संवैधानिक संशोधन (जिसे 73वें और 74वें संशोधन के रूप में भी जाना जाता है) भारत में स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने ग्रामीण (पंचायती राज) और शहरी (नगरपालिकाएँ) स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया।
**1992 के संवैधानिक संशोधन के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:**- **नियमित चुनाव अनिवार्य:** स्थानीय स्वशासी निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक रूप से अनिवार्य कर दिया गया। पहले, राज्य सरकारों की इच्छा पर चुनाव होते थे, जिससे कई बार चुनाव टाले जाते थे।
- **आरक्षण का प्रावधान:**
- अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़ा वर्गों (OBC) के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया गया।
- महिलाओं के लिए कम से कम एक-तिहाई (33%) पद आरक्षित किए गए। यह भारत में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था।
- **राज्य चुनाव आयोग का गठन:** प्रत्येक राज्य में एक स्वतंत्र 'राज्य चुनाव आयोग' (State Election Commission) का गठन किया गया, जिसका मुख्य कार्य पंचायत और नगरपालिका चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और समय पर कराना है।
- **राज्य वित्त आयोग का गठन:** प्रत्येक राज्य में एक 'राज्य वित्त आयोग' (State Finance Commission) का गठन किया गया, जो पंचायतों और नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करता है और उन्हें राजस्व आवंटित करने के लिए सिफारिशें करता है।
- **राजस्व और शक्तियाँ साझा करना:** राज्य सरकारों को स्थानीय स्वशासी निकायों के साथ कुछ अधिकार और राजस्व के स्रोत साझा करने पड़े। यह संविधान की 11वीं और 12वीं अनुसूची में विस्तार से बताया गया है। 11वीं अनुसूची में पंचायतों के लिए 29 विषय और 12वीं अनुसूची में नगरपालिकाओं के लिए 18 विषय निर्धारित किए गए, जिन पर वे कानून बना सकते हैं और शासन कर सकते हैं।
- **ग्राम सभा का महत्व:** ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम सभा (गाँव के सभी वयस्क मतदाताओं की सभा) को सशक्त बनाया गया। यह पंचायत के बजट को मंजूरी देती है और उसके प्रदर्शन की समीक्षा करती है। ग्राम सभा की बैठकें वर्ष में कम से कम दो या तीन बार आयोजित करना अनिवार्य किया गया।
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)