अध्याय 9: आनुवंशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution)

परिचय

कक्षा 10 विज्ञान का यह अध्याय **'आनुवंशिकता एवं जैव विकास'** बताता है कि कैसे माता-पिता के लक्षण उनकी संतानों में जाते हैं और समय के साथ जीवों की आबादी में क्या परिवर्तन होते हैं। यह अध्याय हमें आनुवंशिकी के बुनियादी सिद्धांतों, मेंडल के प्रयोगों, गुणों के वंशागति के नियमों, विभिन्नताओं के महत्व और विकास के सिद्धांतों को समझने में मदद करता है।

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1. आनुवंशिकता (Heredity)

(a) आनुवंशिकता के नियम (Rules for the Inheritance of Traits)

**ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor Johann Mendel)** को 'आनुवंशिकी का जनक' माना जाता है। उन्होंने मटर के पौधों (Pisum sativum) पर संकरण के प्रयोग किए।

(i) एकसंकर संकरण (Monohybrid Cross):

एक एकल जोड़ी विपरीत लक्षणों की वंशागति का अध्ययन।

(ii) द्विसंकर संकरण (Dihybrid Cross):

दो जोड़ी विपरीत लक्षणों की वंशागति का अध्ययन।

(iii) लक्षणों का नियंत्रण (Control of Traits):

(b) लिंग निर्धारण (Sex Determination)

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2. जैव विकास (Evolution)

(a) विभिन्नताओं के स्रोत (Sources of Variation)

(b) विकास के प्रमाण (Evidences of Evolution)

  1. **समजात अंग (Homologous Organs):** समान मूल संरचना वाले अंग लेकिन कार्य अलग-अलग हो सकते हैं (उदा. मनुष्य का हाथ, बिल्ली का अग्रपाद, व्हेल का फ्लिपर, चमगादड़ का पंख)। ये सामान्य पूर्वज से विकास का संकेत देते हैं (अपसारी विकास)।
  2. **समरूप अंग (Analogous Organs):** अलग-अलग मूल संरचना वाले अंग लेकिन कार्य समान होते हैं (उदा. चमगादड़ का पंख और पक्षी का पंख)। ये अभिसारी विकास का संकेत देते हैं।
  3. **जीवाश्म (Fossils):** पृथ्वी की परतों में पाए जाने वाले प्राचीन जीवों के अवशेष या छाप।
    • **जीवाश्म की आयु का निर्धारण:**
      • **सापेक्ष विधि (Relative Dating):** पृथ्वी की गहरी परतों में पाए जाने वाले जीवाश्म पुराने होते हैं।
      • **कार्बन डेटिंग (Carbon Dating):** जीवाश्म में कार्बन-14 जैसे समस्थानिकों की मात्रा को मापकर।
    • जीवाश्म यह समझने में मदद करते हैं कि समय के साथ विभिन्न प्रजातियाँ कैसे विकसित हुईं और उनके पूर्वज क्या थे।

(c) विकास और वर्गीकरण (Evolution and Classification)

(d) विकास के चरण (Stages of Evolution)

(e) जैव विकास को समझना (Understanding Evolution)

(f) मानव का विकास (Human Evolution)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

अभ्यास (पृष्ठ 143)

  1. यदि एक लक्षण 'A' अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि में 10% सदस्य में पाया जाता है जबकि लक्षण 'B' उसी समष्टि में 60% जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?

    अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि में, लक्षण **'B'** पहले उत्पन्न हुआ होगा।
    **कारण:**
    • अलैंगिक प्रजनन में, संतान आनुवंशिक रूप से अपने जनक के समान होती है (क्लोन)। विभिन्नताएँ बहुत कम होती हैं, जो केवल डी.एन.ए. प्रतिकृति में हुई त्रुटियों (उत्परिवर्तन) के कारण उत्पन्न होती हैं।
    • एक बार जब कोई लाभकारी भिन्नता (लक्षण) उत्पन्न हो जाती है, तो अलैंगिक प्रजनन के माध्यम से यह तेजी से आबादी में फैल सकती है, क्योंकि वह जीव जिसने यह भिन्नता प्राप्त की है, अपनी हूबहू प्रतियाँ उत्पन्न करेगा।
    • यदि लक्षण 'B' 60% जीवों में पाया जाता है और लक्षण 'A' केवल 10% में, तो यह इंगित करता है कि लक्षण 'B' पहले उत्पन्न हुआ था और उसे आबादी में फैलने का अधिक समय मिला है। लक्षण 'A' हाल ही में उत्पन्न हुआ होगा।
    • अतः, अधिक प्रतिशत वाली विशेषता (लक्षण 'B') यह दर्शाती है कि यह भिन्नता अधिक पुरानी है और आबादी में अधिक बार-बार प्रजनन के कारण फैल गई है।

  2. मेंडल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?

    मेंडल ने मटर के पौधों पर अपने एकसंकर संकरण (Monohybrid Cross) के प्रयोगों से यह स्थापित किया कि लक्षण प्रभावी (Dominant) अथवा अप्रभावी (Recessive) होते हैं।
    उन्होंने एक **शुद्ध लंबा (Tall)** मटर का पौधा (जिसका जीनोटाइप TT था) और एक **शुद्ध बौना (Dwarf)** मटर का पौधा (जिसका जीनोटाइप tt था) लिया। इन दोनों पौधों को जनक पीढ़ी (P-generation) कहा गया।
    **उनके प्रयोग के चरण:**
    1. **F1 पीढ़ी (First Filial Generation):**
      • मेंडल ने शुद्ध लंबे (TT) और शुद्ध बौने (tt) पौधों के बीच संकरण (cross-pollination) कराया।
      • इस पीढ़ी में उन्होंने देखा कि **सभी संतान (F1 पीढ़ी के पौधे) लंबे थे**, कोई भी बौना पौधा उत्पन्न नहीं हुआ।
      • यह दर्शाता है कि लंबापन का लक्षण बौनेपन के लक्षण पर हावी (dominant) था। भले ही बौनेपन का जीन मौजूद था, इसने खुद को व्यक्त नहीं किया।
      • F1 पीढ़ी के पौधों का जीनोटाइप **Tt** था (विषमयुग्मजी लंबा)।
    2. **F2 पीढ़ी (Second Filial Generation):**
      • इसके बाद, मेंडल ने F1 पीढ़ी के लंबे पौधों (Tt) के बीच स्व-परागण (self-pollination) कराया।
      • F2 पीढ़ी में, उन्होंने पाया कि कुछ पौधे **लंबे** थे और कुछ पौधे **बौने** थे। लम्बे और बौने पौधों का अनुपात लगभग **3:1** था (75% लंबे, 25% बौने)।
      • इस परिणाम ने साबित कर दिया कि F1 पीढ़ी में बौनेपन का लक्षण गायब नहीं हुआ था, बल्कि वह **अप्रभावी (recessive)** था और F1 पीढ़ी में खुद को व्यक्त नहीं कर पाया था। जब F2 पीढ़ी में बौनेपन के दो अप्रभावी जीन (tt) एक साथ आए, तो लक्षण फिर से प्रकट हो गया।
    **निष्कर्ष:**
    • जो लक्षण (जैसे लंबापन) F1 पीढ़ी में खुद को व्यक्त करता है, वह **प्रभावी लक्षण** कहलाता है।
    • जो लक्षण (जैसे बौनापन) F1 पीढ़ी में खुद को व्यक्त नहीं करता है, लेकिन F2 पीढ़ी में प्रकट होता है, वह **अप्रभावी लक्षण** कहलाता है।

  3. मेंडल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशागति होते हैं?

    मेंडल ने अपने **द्विसंकर संकरण (Dihybrid Cross)** के प्रयोगों से यह स्थापित किया कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशागति (inherit independently) होते हैं। इस नियम को **स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)** भी कहते हैं।
    उन्होंने दो अलग-अलग लक्षणों (जैसे बीज का रंग और बीज का आकार) को एक साथ अध्ययन किया:
    • **जनक पीढ़ी (P-generation):**
      • उन्होंने दो प्रकार के शुद्ध पौधों को संकरणित किया:
        • एक पौधा जिसके बीज **गोल और पीले (Round and Yellow)** थे (RRYY).
        • दूसरा पौधा जिसके बीज **झुर्रीदार और हरे (Wrinkled and Green)** थे (rryy).
    • **F1 पीढ़ी (First Filial Generation):**
      • जब इन पौधों के बीच संकरण कराया गया, तो F1 पीढ़ी में सभी पौधे **गोल और पीले** बीज वाले थे (RrYy). यह दर्शाता है कि गोल आकार (R) झुर्रीदार (r) पर प्रभावी है, और पीला रंग (Y) हरे (y) पर प्रभावी है।
    • **F2 पीढ़ी (Second Filial Generation):**
      • मेंडल ने F1 पीढ़ी के पौधों (RrYy) को स्व-परागणित (self-pollination) कराया।
      • F2 पीढ़ी में, उन्होंने केवल गोल-पीले, झुर्रीदार-हरे, गोल-हरे या झुर्रीदार-पीले संयोजन प्राप्त होने की बजाय, **नए संयोजन** (गोल-हरे और झुर्रीदार-पीले) भी देखे।
      • फीनोटाइपिक अनुपात लगभग **9:3:3:1** था:
        • 9: गोल और पीले
        • 3: गोल और हरे (नया संयोजन)
        • 3: झुर्रीदार और पीले (नया संयोजन)
        • 1: झुर्रीदार और हरे
    **निष्कर्ष:**
    • यदि लक्षणों की वंशागति आपस में जुड़ी होती, तो F2 पीढ़ी में केवल जनक लक्षण (गोल-पीले और झुर्रीदार-हरे) ही दिखाई देते।
    • लेकिन नए संयोजनों (गोल-हरे और झुर्रीदार-पीले) की उपस्थिति ने यह सिद्ध किया कि बीज के आकार का जीन बीज के रंग के जीन से **स्वतंत्र रूप से वंशागति** होता है। यानी, एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति को प्रभावित नहीं करती है।

अभ्यास (पृष्ठ 147)

  1. एक 'A' रुधिर वर्ग वाला पुरुष एक 'B' रुधिर वर्ग वाली महिला से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग 'O' है। क्या यह सूचना पर्याप्त है कि आप बताएँ कि कौन-सा विकल्प प्रभावी लक्षण है? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए।

    नहीं, यह सूचना यह बताने के लिए पर्याप्त **नहीं** है कि कौन-सा विकल्प (एलील) प्रभावी लक्षण है।
    **स्पष्टीकरण:**
    • मानव रुधिर वर्ग (ABO Blood Group System) में तीन मुख्य एलील होते हैं: IA, IB, और i.
    • एलील IA और IB दोनों सह-प्रभावी (co-dominant) हैं, जिसका अर्थ है कि जब ये दोनों एक साथ मौजूद होते हैं (IAIB), तो वे दोनों स्वयं को व्यक्त करते हैं, जिससे AB रक्त समूह बनता है।
    • एलील 'i' (O रक्त समूह के लिए) इन दोनों एलीलों (IA और IB) पर अप्रभावी (recessive) है।
    दिए गए मामले में:
    • पुरुष का रुधिर वर्ग 'A' है। उसका जीनोटाइप IAIA या IAi हो सकता है।
    • महिला का रुधिर वर्ग 'B' है। उसका जीनोटाइप IBIB या IBi हो सकता है।
    • उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग 'O' है। 'O' रुधिर वर्ग का जीनोटाइप केवल **ii** हो सकता है (क्योंकि 'i' अप्रभावी है, इसे व्यक्त होने के लिए दोनों एलील 'i' होने चाहिए)।
    यदि पुत्री का रुधिर वर्ग 'O' (ii) है, तो उसे एक 'i' एलील पिता से और एक 'i' एलील माता से प्राप्त हुआ होगा।
    • इससे यह सिद्ध होता है कि **पुरुष का जीनोटाइप IAi होना चाहिए** (तभी वह 'i' दे सकता है)।
    • और **महिला का जीनोटाइप IBi होना चाहिए** (तभी वह 'i' दे सकती है)।
    यह जानकारी हमें यह नहीं बताती कि IA या IB में से कौन-सा प्रभावी है, क्योंकि वे दोनों 'i' पर प्रभावी हैं और एक-दूसरे के संबंध में सह-प्रभावी हैं। पुत्री के 'O' रक्त समूह का अर्थ केवल इतना है कि दोनों माता-पिता 'i' एलील के वाहक थे।

  2. मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?

    मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण लिंग गुणसूत्रों (Sex Chromosomes) द्वारा होता है, जो लैंगिक जनन के दौरान माता-पिता से प्राप्त होते हैं।
    **लिंग गुणसूत्र:**
    • मनुष्य में कुल 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं (कुल 46 गुणसूत्र)। इनमें से 22 जोड़ी ऑटोसोम (Autosomes) कहलाते हैं और शेष 1 जोड़ी लिंग गुणसूत्र होते हैं जो लिंग का निर्धारण करते हैं।
    • **महिलाओं में (Female):** दो X गुणसूत्र होते हैं (XX)।
    • **पुरुषों में (Male):** एक X गुणसूत्र और एक Y गुणसूत्र होता है (XY)।
    **लिंग निर्धारण की प्रक्रिया:**
    1. **युग्मक निर्माण (Gamete Formation):**
      • **महिलाएँ (माता):** केवल एक प्रकार के अंड (egg) उत्पन्न करती हैं, जिनमें हमेशा एक **X गुणसूत्र** होता है।
      • **पुरुष (पिता):** दो प्रकार के शुक्राणु (sperms) उत्पन्न करते हैं:
        • लगभग 50% शुक्राणुओं में **X गुणसूत्र** होता है।
        • लगभग 50% शुक्राणुओं में **Y गुणसूत्र** होता है।
    2. **निषेचन (Fertilisation):**
      • जब शुक्राणु अंड कोशिका को निषेचित करता है, तो युग्मनज (zygote) बनता है। इस युग्मनज का गुणसूत्र संयोजन बच्चे का लिंग निर्धारित करता है:
        • यदि एक **X-शुक्राणु** अंड कोशिका (जो हमेशा X होती है) को निषेचित करता है, तो परिणामी युग्मनज **XX** होगा, जिससे **लड़की** का जन्म होगा।
        • यदि एक **Y-शुक्राणु** अंड कोशिका (जो हमेशा X होती है) को निषेचित करता है, तो परिणामी युग्मनज **XY** होगा, जिससे **लड़का** का जन्म होगा।
    **निष्कर्ष:** बच्चे का लिंग पूरी तरह से **पिता द्वारा प्रदान किए गए शुक्राणु के प्रकार (X या Y) पर निर्भर करता है।** माता का कोई योगदान नहीं होता क्योंकि वह हमेशा केवल X गुणसूत्र वाला अंड ही प्रदान करती है।

अभ्यास (पृष्ठ 150)

  1. समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।

    समजात (Homologous) तथा समरूप (Analogous) अंग जैव विकास के प्रमाण प्रदान करते हैं, लेकिन उनके विकासवादी संबंध भिन्न होते हैं।
    • **समजात अंग (Homologous Organs):**

      • **परिभाषा:** वे अंग जिनकी **मूल संरचना (basic structural plan) और उत्पत्ति समान** होती है, लेकिन विभिन्न वातावरणों में रहने के कारण उनके **कार्य भिन्न-भिन्न** हो सकते हैं।
      • **यह क्या दर्शाता है:** यह **अपसारी विकास (Divergent Evolution)** को दर्शाता है, जहाँ एक सामान्य पूर्वज से विभिन्न प्रजातियाँ विकसित हुई हैं और उनमें अंग भिन्न कार्यों के लिए अनुकूलित हुए हैं।
      • **उदाहरण:**
        • **मनुष्य का हाथ, बिल्ली का अग्रपाद, व्हेल का फ्लिपर, चमगादड़ का पंख:** इन सभी की आंतरिक अस्थि संरचना (ह्यूमरस, रेडियस, उल्ना, कार्पल्स, मेटाकार्पल्स, फैलेंजेस) मूल रूप से समान होती है। लेकिन, मनुष्य का हाथ पकड़ने के लिए, बिल्ली का अग्रपाद चलने के लिए, व्हेल का फ्लिपर तैरने के लिए और चमगादड़ का पंख उड़ने के लिए अनुकूलित हुआ है। यह सब एक सामान्य कशेरुकी पूर्वज से विकसित हुए हैं।
        • पौधों में, पत्ती के रूपान्तरण जैसे कैक्टस का काँटा, मटर का प्रतान और प्याज की सल्क-पत्तियाँ भी समजात अंग हैं।
    • **समरूप अंग (Analogous Organs):**

      • **परिभाषा:** वे अंग जिनकी **मूल संरचना और उत्पत्ति भिन्न-भिन्न** होती है, लेकिन समान पर्यावरण में रहने या समान आवश्यकताओं के कारण उनके **कार्य समान** होते हैं।
      • **यह क्या दर्शाता है:** यह **अभिसारी विकास (Convergent Evolution)** को दर्शाता है, जहाँ विभिन्न पूर्वजों से विकसित प्रजातियों ने समान पर्यावरणीय दबावों के कारण समान कार्य के लिए समान दिखने वाले अंग विकसित किए हैं।
      • **उदाहरण:**
        • **पक्षी का पंख और चमगादड़ का पंख:** दोनों का कार्य उड़ना है। लेकिन, पक्षी के पंख की संरचना हड्डियों, पंखों और मांस से बनी होती है, जबकि चमगादड़ का पंख त्वचा के एक मोड़ (पैटेजियम) से बना होता है जो लंबी उंगलियों के बीच फैला होता है। उनकी आंतरिक संरचना और विकासवादी उत्पत्ति भिन्न है।
        • कीटों का पंख भी समरूप है क्योंकि उनका विकासवादी इतिहास पक्षियों और चमगादड़ों से बिल्कुल अलग है।
        • पोटैटो (आलू) और स्वीट पोटैटो (शकरकंद) भी समरूप हैं। आलू एक रूपांतरित तना है (जो भोजन संग्रहीत करता है) जबकि शकरकंद एक रूपांतरित जड़ है (जो भोजन संग्रहीत करती है)। कार्य समान है लेकिन उत्पत्ति भिन्न है।
    संक्षेप में, समजात अंग सामान्य उत्पत्ति + भिन्न कार्य, जबकि समरूप अंग भिन्न उत्पत्ति + समान कार्य को दर्शाते हैं।

  2. जीवाश्म क्या हैं? वे जैव विकास प्रक्रम के विषय में क्या बताते हैं?

    **जीवाश्म (Fossils):**

    जीवाश्म पृथ्वी की चट्टानों की परतों में संरक्षित प्राचीन जीवों के अवशेष, छाप या निशान होते हैं। ये लाखों या अरबों वर्ष पहले पृथ्वी पर रहने वाले पौधों और जंतुओं के कठोर भागों (जैसे हड्डियाँ, दांत, खोल, लकड़ी) के अवशेष या उनके शरीर की छाप या पगडंडियों के निशान हो सकते हैं। जीवाश्म तभी बनते हैं जब कोई जीव मरने के बाद ऐसी परिस्थितियों में दब जाता है जहाँ वह सड़ने या नष्ट होने से बच जाता है (जैसे तलछट में दब जाना)।

    **जीवाश्म जैव विकास प्रक्रम के विषय में क्या बताते हैं:**

    जीवाश्म जैव विकास (Evolution) के सबसे महत्वपूर्ण और प्रत्यक्ष प्रमाणों में से एक हैं। वे हमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं:

    1. **प्राचीन जीवों के अस्तित्व:** जीवाश्म हमें उन प्रजातियों के बारे में बताते हैं जो अब जीवित नहीं हैं, जिससे हमें पृथ्वी पर जीवन के विशाल इतिहास का पता चलता है।
    2. **विकासवादी समय-रेखा:** विभिन्न भूवैज्ञानिक परतों में पाए जाने वाले जीवाश्मों की आयु का निर्धारण करके, वैज्ञानिक यह समझ सकते हैं कि कौन से जीव कब पृथ्वी पर मौजूद थे। गहरी परतों में पाए जाने वाले जीवाश्म आमतौर पर पुराने होते हैं, जबकि ऊपरी परतों में पाए जाने वाले जीवाश्म अपेक्षाकृत नए होते हैं। यह एक विकासवादी समय-रेखा प्रदान करता है।
    3. **मध्यवर्ती रूप (Transitional Forms):** कुछ जीवाश्म ऐसे जीवों के होते हैं जिनमें दो अलग-अलग समूहों के लक्षण होते हैं। इन्हें मध्यवर्ती जीवाश्म (Intermediate fossils) या संयोजी कड़ी (connecting link) कहा जाता है, और ये दर्शाते हैं कि कैसे एक समूह से दूसरा समूह विकसित हुआ। उदाहरण के लिए, आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) एक जीवाश्म है जिसमें सरीसृपों (जैसे दांत, लंबी पूंछ) और पक्षियों (जैसे पंख) दोनों के लक्षण थे, जो सरीसृपों से पक्षियों के विकास का प्रमाण है।
    4. **विलुप्ति (Extinction) की जानकारी:** जीवाश्म रिकॉर्ड हमें उन प्रजातियों के बारे में बताते हैं जो अब मौजूद नहीं हैं, जिससे हमें विलुप्ति की घटनाओं और उनके कारणों को समझने में मदद मिलती है।
    5. **पर्यावरण परिवर्तन का प्रमाण:** जीवाश्मों का अध्ययन हमें यह भी बता सकता है कि प्राचीन समय में पृथ्वी पर कैसा पर्यावरण था (जैसे जलवायु, वनस्पति और जीव)।
    6. **विकास के पैटर्न:** जीवाश्मों का अनुक्रमिक अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि विभिन्न जीव समूहों में धीरे-धीरे कैसे संरचनात्मक परिवर्तन हुए हैं और कैसे वे समय के साथ अधिक जटिल होते गए हैं।
    इस प्रकार, जीवाश्म पृथ्वी पर जीवन के इतिहास की एक अनूठी खिड़की प्रदान करते हैं और हमें विकास की प्रक्रिया को चरण-दर-चरण समझने में मदद करते हैं।

अभ्यास (पाठ्यपुस्तक के अंत में)

  1. उस घटक का नाम बताएँ जो विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं करता है।

    वह घटक जो लैंगिक जनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन सीधे तौर पर विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं करता, वह है **युग्मनज का निर्माण (Formation of Zygote) या अंड कोशिका का निषेचन (Fertilisation of Egg Cell)।**
    **स्पष्टीकरण:**
    • भिन्नताएँ मुख्य रूप से **डी.एन.ए. प्रतिकृति में त्रुटियों (mutations)** और **लैंगिक जनन के दौरान गुणसूत्रों के मिश्रण (crossing over/recombination)** से उत्पन्न होती हैं, जो युग्मक (gamete) बनने से पहले या दौरान होती हैं।
    • जब शुक्राणु (जिसमें पहले से ही पिता के आनुवंशिक भिन्नताएँ हो सकती हैं) अंड कोशिका (जिसमें माता की आनुवंशिक भिन्नताएँ हो सकती हैं) को निषेचित करता है, तो यह मौजूदा भिन्नताओं को एक नए जीव में संयोजित करता है।
    • इस प्रक्रिया में कोई नई भिन्नता उत्पन्न नहीं होती है, बल्कि पहले से मौजूद भिन्नताओं का एक नया संयोजन बनता है।
    हालांकि, यदि प्रश्न का अर्थ व्यापक रूप से 'जनन की प्रक्रिया का कौन सा चरण भिन्नता उत्पन्न नहीं करता' है, तो यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अलैंगिक जनन में, जहाँ डी.एन.ए. की सटीक प्रतिकृति बनती है, वहाँ भी नई भिन्नताएँ उत्पन्न नहीं होतीं, सिवाय डी.एन.ए. प्रतिकृति में यादृच्छिक त्रुटियों (उत्परिवर्तन) के।

  2. एक अध्ययन से पता चला कि हलके रंग के भृंगों की आबादी गहरे रंग के भृंगों की तुलना में तेजी से विकसित हुई है, जिसे शिकारियों द्वारा पकड़ा नहीं गया। व्याख्या करें कि यह कैसे हुआ होगा।

    यह घटना **प्राकृतिक चयन (Natural Selection)** का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जैसा कि चार्ल्स डार्विन द्वारा प्रस्तावित किया गया था। यहाँ बताया गया है कि यह कैसे हुआ होगा:
    1. **प्रारंभिक आबादी और भिन्नता:**
      • मान लीजिए कि भृंगों की एक मूल आबादी थी जिसमें हल्के और गहरे दोनों रंग के भृंग शामिल थे। यह रंग भिन्नता आनुवंशिक (जेनेटिक) थी।
    2. **पर्यावरण और शिकारी दबाव:**
      • कल्पना कीजिए कि इन भृंगों के निवास स्थान में पृष्ठभूमि का रंग हल्का था (जैसे हल्की रेत, हल्की मिट्टी, या हल्के रंग की पत्तियाँ)।
      • इस वातावरण में, गहरे रंग के भृंग हल्के रंग के भृंगों की तुलना में **शिकारियों (जैसे पक्षियों)** के लिए अधिक आसानी से दिखाई देते थे।
    3. **प्राकृतिक चयन:**
      • शिकारियों द्वारा अधिक आसानी से देखे जाने के कारण, गहरे रंग के भृंगों को हल्के रंग के भृंगों की तुलना में **अधिक शिकार** किया गया।
      • इसका मतलब है कि हल्के रंग के भृंगों के **जीवित रहने की संभावना अधिक** थी।
    4. **प्रजनन और आनुवंशिक संचरण:**
      • चूँकि हल्के रंग के भृंग अधिक जीवित रहे, वे गहरे रंग के भृंगों की तुलना में **अधिक प्रजनन** कर पाए।
      • जब हल्के रंग के भृंगों ने प्रजनन किया, तो उन्होंने अपने हल्के रंग के जीन अपनी संतानों में पारित किए।
    5. **आबादी में परिवर्तन (विकास):**
      • पीढ़ी-दर-पीढ़ी, हल्के रंग के भृंगों का प्रतिशत आबादी में बढ़ता गया क्योंकि वे प्राकृतिक चयन द्वारा 'चुने' जा रहे थे।
      • धीरे-धीरे, आबादी में हल्के रंग के भृंगों की संख्या गहरे रंग के भृंगों की तुलना में बहुत अधिक हो गई, जिससे यह आभास हुआ कि हल्के रंग के भृंगों की आबादी तेजी से विकसित हुई है।
    संक्षेप में, पर्यावरण (पृष्ठभूमि का रंग) और शिकारी (चयन दबाव) ने मिलकर एक चयन प्रक्रिया बनाई जिसने हल्के रंग के भृंगों के पक्ष में काम किया। हल्के रंग के भृंग बेहतर अनुकूलित थे, इसलिए वे अधिक जीवित रहे, अधिक प्रजनन किया, और उनके आनुवंशिक लक्षण आबादी में फैल गए, जिससे "तेजी से विकास" हुआ। यह दर्शाता है कि कैसे प्राकृतिक चयन एक आबादी में आनुवंशिक संरचना को बदलता है।



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