अध्याय 8: जीव जनन कैसे करते हैं? (How do Organisms Reproduce?)

परिचय

कक्षा 10 विज्ञान का आठवां अध्याय **'जीव जनन कैसे करते हैं?'** उस महत्वपूर्ण प्रक्रिया से संबंधित है जिसके द्वारा जीव अपनी ही तरह के नए जीव उत्पन्न करते हैं। यह प्रक्रिया न केवल प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करती है, बल्कि विभिन्नताओं को भी जन्म देती है जो विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह अध्याय जनन के विभिन्न तरीकों, डी.एन.ए. प्रतिकृति के महत्व और लैंगिक तथा अलैंगिक जनन के फायदे और नुकसान पर प्रकाश डालता है, साथ ही मानव में जनन तंत्र की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

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1. जनन का महत्व (Importance of Reproduction)

(a) डी.एन.ए. प्रतिकृति का महत्व (Importance of DNA Copying)

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2. जनन के तरीके (Modes of Reproduction)

(a) अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)

**अलैंगिक जनन के विभिन्न प्रकार:**

  1. **विखंडन (Fission):**
    • **द्विखंडन (Binary Fission):** जनक कोशिका दो समान भागों में विभाजित होती है।
      • उदा. अमीबा, पैरामीशियम, लेईशमानिया।
      • लेईशमानिया में एक विशिष्ट विभाजन तल होता है।
    • **बहुखंडन (Multiple Fission):** जनक कोशिका कई संतति कोशिकाओं में विभाजित होती है।
      • उदा. प्लाज्मोडियम (मलेरिया परजीवी)।
  2. **खंडन (Fragmentation):** जीव कई टुकड़ों में टूट जाता है, और प्रत्येक टुकड़ा एक नए जीव में विकसित होता है।
    • उदा. स्पाइरोगाइरा (एक शैवाल)।
  3. **पुनरुद्भवन (Regeneration):** यदि जीव को कई टुकड़ों में काट दिया जाए, तो प्रत्येक टुकड़ा एक पूर्ण नए जीव में विकसित हो सकता है। यह विशेषीकृत कोशिकाओं द्वारा संभव है।
    • उदा. प्लेनेरिया, हाइड्रा। (यह जनन के समान नहीं है, बल्कि अंग पुनर्जनन की क्षमता है।)
  4. **मुकुलन (Budding):** जनक शरीर पर एक 'मुकुल' (bud) विकसित होता है, जो जनक से अलग होकर एक नया जीव बनाता है।
    • उदा. हाइड्रा, यीस्ट।
  5. **बीजाणु समासंघ (Spore Formation):** बीजाणु छोटी, मोटी दीवारों वाली संरचनाएँ होती हैं जो प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर सकती हैं। अनुकूल परिस्थितियों में, वे अंकुरित होकर नए जीव बनाते हैं।
    • उदा. राइजोपस (ब्रेड मोल्ड), कुछ कवक।
  6. **कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation):** पौधों में जड़ों, तनों और पत्तियों जैसे कायिक भागों से नए पौधे उत्पन्न करना।
    • **प्राकृतिक विधियाँ:** परत चढ़ाना, कलम लगाना, दाब लगाना।
    • **कृत्रिम विधियाँ:**
      • **परत (Layering):** तने की शाखा को मिट्टी में दबाकर नया पौधा बनाना।
      • **कलम (Cutting):** तने के कटे हुए भाग से नया पौधा उगाना।
      • **ग्राफ्टिंग (Grafting):** दो पौधों के भागों को जोड़कर एक नया पौधा उगाना।
      • **ऊतक संवर्धन (Tissue Culture):** पौधे के किसी भी हिस्से से कोशिकाओं को अलग करना और नियंत्रित परिस्थितियों में उन्हें पोषक माध्यम में उगाकर नए पौधे प्राप्त करना। (पादपों के समान गुण वाले पौधों को प्राप्त करने के लिए उपयोगी)।
    • **लाभ:**
      • बीज उत्पन्न न करने वाले पौधों (उदा. केला, संतरा, गुलाब, चमेली) को उगाया जा सकता है।
      • बीज द्वारा उगाए गए पौधों की तुलना में तेजी से फल प्राप्त होते हैं।
      • उत्पन्न पौधे आनुवंशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं (वांछित गुण बनाए रखते हैं)।
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3. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

(a) पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Flowering Plants)

पुष्पी पादप के लैंगिक जननांगों का आरेख।

(b) मानव में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Humans)

यह लैंगिक परिपक्वता (यौवनारंभ) के बाद शुरू होता है।

(i) नर जनन तंत्र (Male Reproductive System)

(ii) मादा जनन तंत्र (Female Reproductive System)

(iii) निषेचन और भ्रूण का विकास (Fertilisation and Development of Embryo)

(iv) मासिक धर्म चक्र (Menstrual Cycle)

(v) जनन स्वास्थ्य (Reproductive Health)

  • **गर्भनिरोधक विधियाँ (Contraceptive Methods):** गर्भधारण को रोकने के तरीके।
    • **यांत्रिक अवरोधक (Barrier Methods):** कंडोम, डायाफ्राम। शुक्राणु को अंड तक पहुँचने से रोकते हैं। STDs से भी बचाते हैं।
    • **रासायनिक विधियाँ (Chemical Methods):** गर्भनिरोधक गोलियाँ (Oral Contraceptive Pills)। ये हार्मोनल संतुलन को बदलकर अंडोत्सर्जन (ovulation) को रोकती हैं। इनके दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
    • **आई.यू.डी. (Intrauterine Devices - IUDs):** कॉपर-टी (Copper-T) जैसे उपकरण गर्भाशय में लगाए जाते हैं। ये शुक्राणुओं की गतिशीलता और अंड के निषेचन को प्रभावित करते हैं।
    • **शस्त्रक्रिया विधियाँ (Surgical Methods):**
      • **पुरुष नसबंदी (Vasectomy):** शुक्रवाहिकाओं को अवरुद्ध या काट दिया जाता है ताकि शुक्राणु मूत्रमार्ग तक न पहुँच सकें।
      • **महिला नसबंदी (Tubectomy):** अंडवाहिनी को अवरुद्ध या काट दिया जाता है ताकि अंड का परिवहन न हो सके और निषेचन न हो पाए।
  • पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

    अभ्यास (पृष्ठ 128)

    1. जनन क्यों आवश्यक है?

      जनन (Reproduction) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीव अपनी ही तरह के नए जीव उत्पन्न करते हैं। जनन निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है:
      • **प्रजातियों की निरंतरता:** जनन यह सुनिश्चित करता है कि एक प्रजाति के जीव पृथ्वी पर बने रहें। यदि जीव जनन नहीं करेंगे, तो उनकी संख्या धीरे-धीरे घट जाएगी और अंततः प्रजाति विलुप्त हो जाएगी।
      • **मृत्यु और प्रतिस्थापन:** जीव नश्वर होते हैं; वे एक निश्चित अवधि के बाद मर जाते हैं। जनन मृत्यु के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई करता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रजाति का अस्तित्व बना रहे।
      • **विकास में सहायक (भिन्नताएँ):** लैंगिक जनन के दौरान डी.एन.ए. प्रतिकृति में हुई थोड़ी बहुत भिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। ये भिन्नताएँ प्रजाति को बदलते परिवेश में अनुकूलन करने में मदद करती हैं और विकास का आधार बनती हैं।
      • **पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुणों का हस्तांतरण:** जनन के माध्यम से माता-पिता के आनुवंशिक गुण (characteristics) उनकी संतानों में हस्तांतरित होते हैं।
      संक्षेप में, जनन किसी भी जीव के व्यक्तिगत अस्तित्व के लिए आवश्यक नहीं है (जैसे पाचन, श्वसन), लेकिन यह प्रजाति के अस्तित्व और उसकी निरंतरता के लिए अत्यंत आवश्यक है।

    2. विभिन्नता स्पीशीज़ के लिए क्यों आवश्यक है?

      विभिन्नताएँ (Variations) एक ही प्रजाति के सदस्यों के बीच पाई जाने वाली आनुवंशिक असमानताएँ हैं। ये भिन्नताएँ स्पीशीज़ (प्रजाति) के लिए निम्नलिखित कारणों से आवश्यक हैं:
      • **उत्तरजीविता की संभावना में वृद्धि:** विभिन्नताएँ प्रजातियों को बदलते पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित रहने और अनुकूलन करने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी आबादी में सभी सदस्य बिल्कुल एक जैसे हों और पर्यावरण में कोई बड़ा बदलाव (जैसे तापमान वृद्धि या बीमारी का प्रकोप) हो जाए, तो हो सकता है कि कोई भी सदस्य उस बदलाव को सहन न कर पाए और पूरी प्रजाति विलुप्त हो जाए। लेकिन यदि विभिन्नताएँ हों, तो कुछ सदस्य उन नई परिस्थितियों में जीवित रहने और प्रजनन करने के लिए बेहतर अनुकूलित हो सकते हैं।
      • **विकास का आधार:** विभिन्नताएँ विकास (Evolution) की नींव हैं। प्राकृतिक चयन (Natural Selection) उन भिन्नताओं को पसंद करता है जो किसी जीव को उसके पर्यावरण में बेहतर ढंग से जीवित रहने और प्रजनन करने में मदद करती हैं। समय के साथ, ये अनुकूल भिन्नताएँ आबादी में अधिक आम हो जाती हैं, जिससे नई प्रजातियों का विकास हो सकता है।
      • **जनसंख्या की स्थिरता:** विभिन्नताएँ एक प्रजाति की आबादी को एक निश्चित सीमा तक स्थिर रखने में मदद करती हैं, क्योंकि यह विभिन्न पारिस्थितिक निश (ecological niches) का उपयोग करने और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा को कम करने की अनुमति देती है।
      इसलिए, यद्यपि डी.एन.ए. प्रतिकृति की प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली छोटी-मोटी त्रुटियाँ या लैंगिक जनन में युग्मकों के संलयन से होने वाली विभिन्नताएँ व्यक्तिगत जीव के लिए हमेशा लाभदायक न हों, लेकिन ये पूरी प्रजाति के लंबे समय तक जीवित रहने और विकसित होने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

    अभ्यास (पृष्ठ 133)

    1. लैंगिक जनन की अपेक्षा अलैंगिक जनन के क्या लाभ हैं?

      लैंगिक जनन की अपेक्षा अलैंगिक जनन के कई लाभ हैं, खासकर कुछ परिस्थितियों में:
      • **तेज और कुशल:** अलैंगिक जनन बहुत तेजी से होता है और इसमें कम ऊर्जा लगती है। एक ही जनक थोड़े समय में बड़ी संख्या में संतति उत्पन्न कर सकता है।
      • **केवल एक जनक की आवश्यकता:** अलैंगिक जनन के लिए केवल एक जनक की आवश्यकता होती है, जिससे साथी खोजने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। यह उन जीवों के लिए फायदेमंद है जो गतिहीन हैं या विरल आबादी में रहते हैं।
      • **न्यूनतम ऊर्जा व्यय:** लैंगिक जनन की तुलना में, अलैंगिक जनन में साथी खोजने, संभोग करने या युग्मक बनाने जैसी जटिल प्रक्रियाओं में कम ऊर्जा खर्च होती है।
      • **वांछित गुणों का संरक्षण:** अलैंगिक जनन से उत्पन्न संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान (क्लोन) होती है। यदि जनक में वांछनीय गुण हैं, तो वे बिना किसी भिन्नता के अगली पीढ़ी में स्थानांतरित हो जाते हैं। यह बागवानी (कायिक प्रवर्धन) में बहुत उपयोगी है।
      • **प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रजनन:** कुछ जीव प्रतिकूल परिस्थितियों में बीजाणु बनाकर अलैंगिक रूप से प्रजनन कर सकते हैं, जो बेहतर समय आने तक निष्क्रिय रहते हैं।
      हालांकि, अलैंगिक जनन में भिन्नताएँ उत्पन्न नहीं होतीं, जिससे बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों में अनुकूलन की क्षमता कम हो जाती है, जो लैंगिक जनन का मुख्य लाभ है।

    2. अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति को क्लोन क्यों कहा जाता है?

      अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति को **क्लोन (Clone)** कहा जाता है क्योंकि वे आनुवंशिक रूप से अपने जनक (parent) के **बिल्कुल समान** होते हैं।
      इसका कारण यह है कि अलैंगिक जनन में:
      • **केवल एक जनक शामिल होता है:** कोई दो अलग-अलग युग्मकों का संलयन नहीं होता है।
      • **डी.एन.ए. की प्रतिकृति:** संतति का निर्माण जनक कोशिका के डी.एन.ए. की सटीक प्रतिकृति (copy) बनाने और फिर कोशिका विभाजन द्वारा होता है। इस प्रक्रिया में कोई आनुवंशिक पुनर्संयोजन (recombination) या मिश्रण नहीं होता है।
      • **सूत्रीविभाजन (Mitosis) पर आधारित:** अधिकांश अलैंगिक जनन प्रक्रियाएँ सूत्रीविभाजन पर आधारित होती हैं, जहाँ मातृ कोशिका से आनुवंशिक सामग्री की सटीक प्रतियाँ बनती हैं और पुत्री कोशिकाओं में वितरित होती हैं।
      परिणामस्वरूप, संतति में वही जीन होते हैं और उसी क्रम में व्यवस्थित होते हैं जो जनक में होते हैं, जिससे वे बाहरी और आनुवंशिक दोनों रूप से अपने जनक की कार्बन कॉपी बन जाते हैं।

    3. पादपों में कायिक प्रवर्धन के क्या लाभ हैं?

      पादपों में कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation) वह अलैंगिक जनन विधि है जिसमें नए पौधे जड़ों, तनों या पत्तियों जैसे कायिक भागों से उत्पन्न होते हैं। इसके कई लाभ हैं:
      • **बीज उत्पादन न करने वाले पौधों का गुणन:** जिन पौधों में बीज उत्पादन की क्षमता कम होती है या जो बीज उत्पन्न नहीं करते (जैसे केला, संतरा, गुलाब, चमेली), उन्हें कायिक प्रवर्धन द्वारा आसानी से उगाया जा सकता है।
      • **शीघ्र फल और फूल:** कायिक प्रवर्धन से उगाए गए पौधों में बीज से उगाए गए पौधों की तुलना में फूल और फल बहुत कम समय में लगने लगते हैं।
      • **वांछित गुणों का संरक्षण:** उत्पन्न पौधे आनुवंशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं। यदि जनक पौधे में वांछनीय गुण (जैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता, उच्च उपज, अच्छे स्वाद वाले फल) हैं, तो ये गुण बिना किसी भिन्नता के अगली पीढ़ी में स्थानांतरित हो जाते हैं। यह कृषि और बागवानी में बहुत महत्वपूर्ण है।
      • **निश्चितता और विश्वसनीयता:** बीज अंकुरण अनिश्चित हो सकता है (जैसे कुछ बीजों की सुप्तता)। कायिक प्रवर्धन में, नए पौधे के विकसित होने की संभावना अधिक विश्वसनीय होती है।
      • **कम लागत और आसान प्रबंधन:** कुछ पौधों के लिए कायिक प्रवर्धन विधि बीज से उगाने की तुलना में कम खर्चीली और अधिक प्रबंधनीय हो सकती है।
      संक्षेप में, कायिक प्रवर्धन पौधों के गुणन और कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक बहुत ही उपयोगी और कुशल विधि है, खासकर जब विशिष्ट गुणों को बनाए रखना हो।

    अभ्यास (पृष्ठ 136)

    1. एकलिंगी तथा उभयलिंगी पुष्प में अंतर स्पष्ट कीजिए।

      एकलिंगी (Unisexual) तथा उभयलिंगी (Bisexual) पुष्प में मुख्य अंतर उनके लैंगिक अंगों (पुंकेसर और स्त्रीकेसर) की उपस्थिति पर आधारित है:
      • **एकलिंगी पुष्प (Unisexual Flower):**

        • **परिभाषा:** एक ऐसा फूल जिसमें या तो केवल **पुंकेसर (नर जननांग)** उपस्थित होता है या केवल **स्त्रीकेसर (मादा जननांग)** उपस्थित होता है, दोनों एक साथ नहीं होते।
        • **उदाहरण:** पपीता, तरबूज, मक्का, खीरा।
        • **परागण:** ऐसे पौधों में आमतौर पर परपरागण (cross-pollination) होता है, क्योंकि नर और मादा फूल अलग-अलग हो सकते हैं (एक ही पौधे पर या अलग-अलग पौधों पर)।
        • **पौधा प्रकार:**
          • **मोनोशियस (Monoecious):** नर और मादा फूल एक ही पौधे पर होते हैं (उदा. मक्का)।
          • **डायोशियस (Dioecious):** नर और मादा फूल अलग-अलग पौधों पर होते हैं (उदा. पपीता, तरबूज)।
      • **उभयलिंगी पुष्प (Bisexual Flower):**

        • **परिभाषा:** एक ऐसा फूल जिसमें **पुंकेसर (नर जननांग)** और **स्त्रीकेसर (मादा जननांग)** दोनों एक ही फूल में उपस्थित होते हैं।
        • **उदाहरण:** गुड़हल (जवाकुसुम), सरसों, मटर, गुलाब, सूरजमुखी।
        • **परागण:** ऐसे फूलों में स्वपरागण (self-pollination) या परपरागण दोनों हो सकते हैं, जो फूल की विशिष्ट संरचना और परागण कारकों पर निर्भर करता है।
      विशेषता एकलिंगी पुष्प उभयलिंगी पुष्प
      **लैंगिक अंगों की उपस्थिति** केवल पुंकेसर या केवल स्त्रीकेसर पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों
      **उदाहरण** पपीता, तरबूज, मक्का गुड़हल, सरसों, मटर
      **परागण** अधिकतर परपरागण स्वपरागण या परपरागण दोनों

    2. परागकण के लिए परागण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया क्यों है?

      परागण (Pollination) परागकणों (pollen grains) का परागकोश (anther) से वर्तिकाग्र (stigma) तक स्थानांतरण है। यह लैंगिक जनन में एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है क्योंकि:
      1. **निषेचन के लिए आवश्यक:** परागण वह पहला कदम है जो नर युग्मक (जो परागकण के भीतर होते हैं) को मादा युग्मक (जो बीजांड के भीतर होते हैं) के संपर्क में लाता है। यदि परागण नहीं होगा, तो परागकण वर्तिकाग्र तक नहीं पहुँचेंगे और नर युग्मक मादा युग्मक तक नहीं पहुँच पाएगा, जिससे निषेचन असंभव हो जाएगा।
      2. **बीज और फल का निर्माण:** सफल परागण के बाद ही निषेचन होता है, जिसके परिणामस्वरूप अंडाशय फल में और बीजांड बीज में विकसित होते हैं। ये बीज अगली पीढ़ी के पौधों के लिए आधार होते हैं।
      3. **प्रजातियों की निरंतरता:** परागण प्रजातियों के अस्तित्व और निरंतरता को सुनिश्चित करता है। इसके बिना पौधे प्रजनन नहीं कर पाएंगे और अंततः विलुप्त हो जाएंगे।
      4. **आनुवंशिक विविधता (परपरागण में):** परपरागण (cross-pollination) के माध्यम से एक फूल के परागकण दूसरे फूल या अन्य पौधे के फूल तक पहुँचते हैं। यह आनुवंशिक सामग्री के मिश्रण की ओर ले जाता है, जिससे भिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। ये भिन्नताएँ प्रजाति को बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों में अनुकूलन करने और विकसित होने में मदद करती हैं।
      5. **खाद्य सुरक्षा:** हमारी अधिकांश खाद्य फसलें (जैसे अनाज, फल, सब्जियां) परागण पर निर्भर करती हैं। परागणकों (जैसे मधुमक्खियों, तितलियों) की अनुपस्थिति में, इन फसलों की पैदावार में भारी गिरावट आएगी, जिससे खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न होगा।
      अतः, परागण पादपों में लैंगिक जनन की एक अपरिहार्य प्रक्रिया है जो न केवल व्यक्तिगत पौधों के प्रजनन के लिए, बल्कि पूरी प्रजाति के अस्तित्व और पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।

    अभ्यास (पाठ्यपुस्तक के अंत में)

    1. डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए क्यों आवश्यक है?

      डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना (DNA Copying) जनन (Reproduction) के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि:
      • **आनुवंशिक सूचना का हस्तांतरण:** डी.एन.ए. (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) आनुवंशिक सूचना का वाहक है जो एक जीव की सभी विशेषताओं को नियंत्रित करता है। जनन का मुख्य उद्देश्य माता-पिता के आनुवंशिक गुणों को अगली पीढ़ी में स्थानांतरित करना है। डी.एन.ए. की सटीक प्रतिकृति यह सुनिश्चित करती है कि संतान में माता-पिता के समान ही मूलभूत आनुवंशिक ब्लूप्रिंट हो।
      • **संतति कोशिकाओं का निर्माण:** जब एक कोशिका विभाजित होकर नई संतति कोशिकाओं का निर्माण करती है (चाहे वह अलैंगिक जनन हो या युग्मक निर्माण के लिए), तो प्रत्येक नई कोशिका को कार्य करने के लिए आनुवंशिक सामग्री के एक पूर्ण और सटीक सेट की आवश्यकता होती है। डी.एन.ए. प्रतिकृति यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक नई कोशिका को डी.एन.ए. की एक पूर्ण प्रति प्राप्त हो।
      • **कोशिकीय संरचनाओं का दोहराव:** डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनने के बाद, कोशिका विभाजन के दौरान अन्य कोशिकीय संरचनाओं का भी दोहराव होता है। यह सुनिश्चित करता है कि नई संतति कोशिकाएँ कार्यशील हों और जीवन प्रक्रियाओं को जारी रख सकें।
      • **भिन्नता का स्रोत (लैंगिक जनन में):** यद्यपि डी.एन.ए. प्रतिकृति का लक्ष्य सटीक प्रतियाँ बनाना है, फिर भी इस प्रक्रिया में कुछ छोटी-मोटी त्रुटियाँ या बदलाव आ जाते हैं। लैंगिक जनन में, जब दो अलग-अलग डी.एन.ए. प्रतियाँ (नर और मादा युग्मकों से) मिलती हैं, तो यह भिन्नताएँ उत्पन्न करती हैं। ये भिन्नताएँ प्रजाति को बदलते वातावरण में अनुकूलन करने और विकसित होने में मदद करती हैं, जो प्रजाति के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।
      संक्षेप में, डी.एन.ए. प्रतिकृति जनन की आधारशिला है, क्योंकि यह आनुवंशिक जानकारी के हस्तांतरण, नई कोशिकाओं और जीवों के निर्माण, और प्रजातियों में आवश्यक भिन्नताओं के विकास को संभव बनाती है।

    2. मासिक धर्म क्या है? इसका वर्णन कीजिए।

      **मासिक धर्म (Menstruation) / मासिक चक्र (Menstrual Cycle):**
      मासिक धर्म महिलाओं के प्रजनन तंत्र में होने वाला एक चक्रीय परिवर्तन है जो लगभग हर 28-30 दिनों में होता है। यह गर्भाशय के अंदरूनी अस्तर (endometrium) का मासिक बहाव है, जो योनि के माध्यम से रक्त और ऊतक के रूप में शरीर से बाहर निकलता है। यह एक संकेत है कि गर्भावस्था नहीं हुई है।
      **मासिक धर्म चक्र का वर्णन:**

      मासिक चक्र हार्मोन (एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन) द्वारा नियंत्रित होता है और इसमें निम्नलिखित मुख्य चरण शामिल होते हैं:

      1. **मासिक धर्म चरण (Menstrual Phase - दिन 1-5 लगभग):**
        • यदि अंडाशय से निकला अंड निषेचित नहीं होता है, तो गर्भाशय की आंतरिक मोटी और रक्त-युक्त परत (जिसे भ्रूण को प्राप्त करने के लिए तैयार किया गया था) की अब आवश्यकता नहीं होती है।
        • हार्मोन (एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन) का स्तर गिर जाता है, जिससे यह परत टूट जाती है और रक्त, श्लेष्मा और ऊतक के रूप में योनि से बाहर निकल जाती है। इसे ही "पीरियड्स" या मासिक धर्म कहते हैं।
        • यह चरण आमतौर पर 3 से 7 दिनों तक रहता है।
      2. **प्रोलिफेरेटिव चरण / पुटकीय चरण (Proliferative Phase / Follicular Phase - दिन 6-14 लगभग):**
        • मासिक धर्म के बाद, अंडाशय में एक पुटिका (follicle) विकसित होना शुरू हो जाती है। यह पुटिका एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन करती है।
        • एस्ट्रोजन के प्रभाव में, गर्भाशय की आंतरिक परत फिर से मोटी होने लगती है और रक्त वाहिकाओं से समृद्ध हो जाती है, ताकि यदि निषेचन हो तो यह एक नए भ्रूण को प्राप्त करने के लिए तैयार हो सके।
        • इस चरण के अंत में, लगभग 14वें दिन, अंडाशय से एक परिपक्व अंड निकलता है। इस प्रक्रिया को **अंडोत्सर्ग (Ovulation)** कहते हैं।
      3. **स्रावी चरण / पीतपिंड चरण (Secretory Phase / Luteal Phase - दिन 15-28 लगभग):**
        • अंडोत्सर्ग के बाद, अंडाशय में बची हुई पुटिका एक संरचना, **पीतपिंड (Corpus Luteum)** में बदल जाती है।
        • पीतपिंड प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्राव करता है, जो गर्भाशय की आंतरिक परत को और मोटा करने और उसे गर्भावस्था के लिए बनाए रखने में मदद करता है।
        • यदि निषेचन और गर्भावस्था नहीं होती है, तो पीतपिंड लगभग 10-14 दिनों के बाद विघटित हो जाता है। प्रोजेस्टेरोन का स्तर गिर जाता है, जिससे गर्भाशय की परत टूट जाती है और अगले मासिक धर्म का चरण शुरू हो जाता है।
        • यदि निषेचन होता है, तो भ्रूण गर्भाशय में रोपित हो जाता है और पीतपिंड सक्रिय रहता है, जिससे गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन होता रहता है।
      मासिक धर्म महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का एक सामान्य और प्राकृतिक हिस्सा है, जो यौवनारंभ (लगभग 10-15 वर्ष की आयु) से शुरू होकर रजोनिवृत्ति (लगभग 45-50 वर्ष की आयु) तक चलता है।

    3. भ्रूण को माँ के शरीर में पोषण कैसे प्राप्त होता है?

      भ्रूण को माँ के शरीर में पोषण एक विशेष संरचना **अपरा (Placenta)** के माध्यम से प्राप्त होता है। अपरा एक डिस्क जैसी संरचना है जो गर्भाशय की दीवार में धँसी होती है।
      **अपरा की संरचना और कार्य:**
      • **भ्रूण और माँ के ऊतकों का जुड़ाव:** अपरा में एक तरफ भ्रूण के ऊतक (कोरियोनिक विली) और दूसरी तरफ माँ के ऊतक होते हैं। ये दोनों ऊतक एक-दूसरे के बहुत करीब होते हैं लेकिन सीधे रक्त का मिश्रण नहीं होता है।
      • **सतह क्षेत्र:** अपरा में बड़ी संख्या में विली (उंगली जैसी संरचनाएँ) होती हैं, जो अवशोषण के लिए एक बड़ा सतही क्षेत्र प्रदान करती हैं।
      • **पदार्थों का विनिमय:**
        • **पोषक तत्वों और ऑक्सीजन की आपूर्ति:** माँ के रक्त से ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, विटामिन, खनिज और ऑक्सीजन जैसे आवश्यक पोषक तत्व अपरा के माध्यम से भ्रूण के रक्त में विसरित होते हैं।
        • **अपशिष्ट उत्पादों का निष्कासन:** भ्रूण द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट उत्पाद, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और यूरिया, भ्रूण के रक्त से अपरा के माध्यम से माँ के रक्त में विसरित होते हैं, और फिर माँ के शरीर द्वारा उत्सर्जित कर दिए जाते हैं।
      • **नाभिनाल (Umbilical Cord):** भ्रूण अपरा से एक विशेष संरचना, **नाभिनाल (Umbilical Cord)** के माध्यम से जुड़ा होता है। नाभिनाल में रक्त वाहिकाएँ होती हैं जो पोषक तत्वों और ऑक्सीजन को अपरा से भ्रूण तक ले जाती हैं, और अपशिष्ट उत्पादों को भ्रूण से अपरा तक वापस लाती हैं।
      • **हार्मोन उत्पादन:** अपरा कुछ महत्वपूर्ण हार्मोन (जैसे प्रोजेस्टेरोन) का भी उत्पादन करती है जो गर्भावस्था को बनाए रखने और भ्रूण के उचित विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
      संक्षेप में, अपरा एक जीवन रेखा के रूप में कार्य करती है जो गर्भावस्था के दौरान माँ और विकासशील भ्रूण के बीच सभी आवश्यक आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाती है, जिससे भ्रूण को लगातार पोषण और सुरक्षा मिलती रहती है।



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