अध्याय 6: जैव प्रक्रम (Life Processes)
परिचय
कक्षा 10 विज्ञान का छठा अध्याय **'जैव प्रक्रम'** उन सभी आधारभूत प्रक्रियाओं से संबंधित है जो जीवित जीवों के अस्तित्व और रखरखाव के लिए आवश्यक हैं। ये प्रक्रम लगातार चलते रहते हैं, चाहे जीव कोई विशेष कार्य कर रहा हो या आराम कर रहा हो। जीवन की क्षति और टूट-फूट को रोकने के लिए अनुरक्षण प्रक्रमों की आवश्यकता होती है, और इन कार्यों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो जीव शरीर के बाहर से प्राप्त करते हैं।
मुख्य जैव प्रक्रमों में शामिल हैं: पोषण, श्वसन, वहन (परिवहन) और उत्सर्जन।
---1. पोषण (Nutrition)
पोषण वह प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव भोजन ग्रहण करते हैं और उसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, वृद्धि करने और शरीर की मरम्मत के लिए करते हैं।
(a) स्वपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition)
- हरे पौधे और कुछ जीवाणु अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।
- यह **प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)** की प्रक्रिया द्वारा होता है।
- **प्रकाश संश्लेषण:** वह प्रक्रिया जिसमें हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड ($\text{CO}_2$) और जल ($\text{H}_2\text{O}$) से अपना भोजन (ग्लूकोज) बनाते हैं और ऑक्सीजन ($\text{O}_2$) को उप-उत्पाद के रूप में निकालते हैं।
- **प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक घटनाएँ:**
- क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण।
- प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरण और जल अणुओं का हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अपघटन।
- कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।
- **पर्णरंध्र (Stomata):** पत्तियों की सतह पर छोटे छिद्र जो गैसीय विनिमय (CO2 अंदर, O2 बाहर) और वाष्पोत्सर्जन (जल का वाष्प के रूप में निष्कासन) के लिए जिम्मेदार होते हैं। द्वार कोशिकाएं (Guard cells) पर्णरंध्र के खुलने और बंद होने को नियंत्रित करती हैं।
(b) विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition)
- वे जीव जो अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते और भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं।
- **पोषण के विभिन्न प्रकार:**
- **शाकाहारी (Herbivores):** पौधे खाते हैं।
- **मांसाहारी (Carnivores):** मांस खाते हैं।
- **सर्वाहारी (Omnivores):** पौधे और मांस दोनों खाते हैं।
- **परजीवी (Parasites):** बिना मारे, दूसरे जीव (पोषी) से पोषण प्राप्त करते हैं। (उदा. अमरबेल, जूँ)
- **मृतोपजीवी (Saprophytes):** मृत और सड़ी हुई कार्बनिक सामग्री से पोषण प्राप्त करते हैं। (उदा. कवक, कुछ जीवाणु)
- **पूर्णपोषी (Holozoic):** ठोस भोजन का अंतर्ग्रहण, पाचन, अवशोषण, स्वांगीकरण और बहिष्करण करते हैं। (उदा. मनुष्य, अमीबा)
- **अमीबा में पोषण:**
- **अंतर्ग्रहण:** कुटपादों (pseudopodia) का उपयोग करके भोजन को घेरना।
- **पाचन:** खाद्यधानी में पाचन।
- **अवशोषण और स्वांगीकरण:** पचे हुए भोजन का कोशिकाद्रव्य में फैलना।
- **बहिष्करण:** अपचित भोजन को शरीर से बाहर निकालना।
(c) मानव में पोषण (Nutrition in Human Beings)
मनुष्य में एक सुविकसित **आहार नाल (Alimentary Canal)** होती है, जो मुख से गुदा तक फैली होती है।
- **मुख (Mouth):**
- भोजन का अंतर्ग्रहण।
- दांत भोजन को चबाते हैं।
- लार ग्रंथियों से **लार (Saliva)** निकलती है, जिसमें **लार एमाइलेज (Salivary Amylase)** एंजाइम होता है, जो स्टार्च को शर्करा में तोड़ना शुरू करता है।
- **ग्रास नली (Oesophagus):** भोजन को मुख से आमाशय तक **क्रमाकुंचन गति (Peristaltic movements)** द्वारा पहुँचाती है।
- **आमाशय (Stomach):**
- ग्रंथि कोशिकाएँ **जठर रस (Gastric Juice)** स्रावित करती हैं, जिसमें शामिल हैं:
- **हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl):** माध्यम को अम्लीय बनाता है, जीवाणुओं को मारता है, और पेप्सिन को सक्रिय करता है।
- **पेप्सिन (Pepsin):** प्रोटीन का पाचन करता है।
- **श्लेष्मा (Mucus):** आमाशय की आंतरिक परत को अम्ल से बचाता है।
- ग्रंथि कोशिकाएँ **जठर रस (Gastric Juice)** स्रावित करती हैं, जिसमें शामिल हैं:
- **क्षुद्रांत्र (छोटी आँत) (Small Intestine):**
- पाचन का मुख्य स्थल और अवशोषण का मुख्य स्थल।
- यकृत से **पित्त रस (Bile Juice)** प्राप्त करती है, जो वसा के बड़े गोलिकाओं को छोटी गोलिकाओं में तोड़ता है (वसा का इमल्सीकरण)।
- अग्नाशय से **अग्नाशयी रस (Pancreatic Juice)** प्राप्त करती है, जिसमें होते हैं:
- **ट्रिप्सिन (Trypsin):** प्रोटीन का पाचन।
- **लाइपेज (Lipase):** इमल्सीकृत वसा का पाचन।
- **अग्नाशयी एमाइलेज:** कार्बोहाइड्रेट का पाचन।
- छोटी आँत की दीवारें **आंत्र रस (Intestinal Juice)** स्रावित करती हैं, जिसमें अंत में कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज, प्रोटीन को अमीनो अम्ल और वसा को वसा अम्ल और ग्लिसरॉल में बदल देते हैं।
- पचे हुए भोजन को **अंकुरों (Villi)** द्वारा अवशोषित किया जाता है, जो अवशोषण के लिए सतह क्षेत्र को बढ़ाते हैं।
- **बृहदांत्र (बड़ी आँत) (Large Intestine):**
- अपचित भोजन से जल का अवशोषण।
- शेष अपशिष्ट पदार्थ को गुदा से बाहर निकाल दिया जाता है।
2. श्वसन (Respiration)
श्वसन वह प्रक्रम है जिसके द्वारा ग्रहण किए गए भोजन से ऊर्जा को मुक्त किया जाता है।
(a) वायवीय श्वसन (Aerobic Respiration)
- ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है।
- ग्लूकोज का पूर्ण विखंडन होता है।
- उत्पाद: कार्बन डाइऑक्साइड ($\text{CO}_2$), जल ($\text{H}_2\text{O}$) और ऊर्जा (बड़ी मात्रा में ATP)।
- यह कोशिकाद्रव्य में शुरू होता है और माइटोकॉन्ड्रिया में पूरा होता है।
(b) अवायवीय श्वसन (Anaerobic Respiration)
- ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।
- ग्लूकोज का अपूर्ण विखंडन होता है।
- उत्पाद:
- यीस्ट में: एथेनॉल ($\text{C}_2\text{H}_5\text{OH}$) और $\text{CO}_2$ (किण्वन)।
- मानव पेशी कोशिकाओं में: लैक्टिक अम्ल (मांसपेशियों में ऐंठन का कारण)।
- उत्पादित ऊर्जा की मात्रा बहुत कम होती है।
- यह केवल कोशिकाद्रव्य में होता है।
(c) मानव श्वसन तंत्र (Human Respiratory System)
- **नासाद्वार (Nostrils):** वायु प्रवेश करती है, रोमिल और श्लेष्मा द्वारा छनती है।
- **ग्रसनी (Pharynx) और कंठ (Larynx):** वायु मार्ग।
- **श्वास नली (Trachea):** उपास्थि वलयों द्वारा समर्थित, जो सुनिश्चित करते हैं कि वायु मार्ग संकुचित न हो।
- **श्वसनी (Bronchi) और श्वसनिकाएँ (Bronchioles):** श्वास नली फेफड़ों में प्रवेश कर छोटी शाखाओं में विभाजित होती है।
- **कुपिकाएँ (Alveoli):** फेफड़ों में गुब्बारे जैसी संरचनाएँ, जहाँ गैसीय विनिमय होता है। इनकी दीवारें पतली होती हैं और रक्त वाहिकाओं का एक व्यापक जाल होता है। ऑक्सीजन कुपिकाओं से रक्त में और कार्बन डाइऑक्साइड रक्त से कुपिकाओं में विसरित होती है।
(d) पौधों में श्वसन (Respiration in Plants)
- पौधों में गैसीय विनिमय **पर्णरंध्रों (Stomata)** (पत्तियों में), **वातरंध्रों (Lenticels)** (तने में), और जड़ों की सतह द्वारा होता है।
- पौधों में गैसों का परिवहन दूरियों तक नहीं होता है।
3. वहन/परिवहन (Transportation)
वहन वह प्रक्रम है जिसके द्वारा पचे हुए भोजन, ऑक्सीजन, अपशिष्ट पदार्थों आदि को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाया जाता है।
(a) मानव में वहन तंत्र (Transportation System in Humans - Circulatory System)
- **हृदय (Heart):** एक पेशीय अंग जो रक्त को पूरे शरीर में पंप करता है।
- **चार कक्ष:** दायाँ आलिंद, दायाँ निलय, बायाँ आलिंद, बायाँ निलय।
- **धमनियां (Arteries):** हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक ऑक्सीजन युक्त रक्त ले जाती हैं (फुफ्फुसीय धमनी को छोड़कर)। मोटी, लोचदार दीवारें होती हैं।
- **शिराएं (Veins):** शरीर के विभिन्न भागों से हृदय तक अनऑक्सीजनित रक्त ले जाती हैं (फुफ्फुसीय शिरा को छोड़कर)। पतली दीवारें होती हैं और वाल्व होते हैं जो रक्त को एक ही दिशा में बहने देते हैं।
- **केशिकाएं (Capillaries):** धमनी और शिराओं को जोड़ने वाली बहुत पतली वाहिकाएं, जहाँ कोशिकाओं और रक्त के बीच पदार्थों का विनिमय होता है।
- **रक्त (Blood):** एक संयोजी ऊतक जिसमें प्लाज्मा (द्रव माध्यम), लाल रक्त कोशिकाएं (ऑक्सीजन का वहन), श्वेत रक्त कोशिकाएं (रोगों से रक्षा) और प्लेटलेट्स (रक्त का थक्का जमाना) होते हैं।
- **लसिका (Lymph):** एक हल्के पीले रंग का द्रव जो कोशिकाओं के बीच के स्थानों में बनता है। यह ऊतक तरल पदार्थ और रक्त के बीच पदार्थों के विनिमय में मदद करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा है।
- **दोहरा परिसंचरण (Double Circulation):** मानव हृदय में रक्त दो बार गुजरता है - एक बार फेफड़ों के लिए (फुफ्फुसीय परिसंचरण) और एक बार शरीर के लिए (प्रणालीगत परिसंचरण)। यह ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन रहित रक्त को मिलाने से रोकता है।
(b) पौधों में वहन तंत्र (Transportation System in Plants)
- **जाइलम (Xylem):** जल और खनिजों का जड़ों से पत्तियों तक ऊपर की ओर परिवहन करता है।
- **वाष्पोत्सर्जन कर्षण (Transpiration Pull):** वाष्पोत्सर्जन के कारण पत्तियों से जल का वाष्पीकरण जल को ऊपर की ओर खींचता है।
- **फ्लोएम (Phloem):** पत्तियों से निर्मित भोजन (प्रकाश संश्लेषण के उत्पाद) को पौधे के अन्य भागों तक परिवहन करता है।
- **स्थानांतरण (Translocation):** भोजन का परिवहन ऊर्जा (ATP) का उपयोग करके होता है।
4. उत्सर्जन (Excretion)
उत्सर्जन वह प्रक्रम है जिसके द्वारा उपापचयी क्रियाओं से उत्पन्न हानिकारक अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से बाहर निकाला जाता है।
(a) मानव उत्सर्जन तंत्र (Human Excretory System)
- **वृक्क (Kidneys):** एक जोड़ी वृक्क पेट के निचले हिस्से में रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं। रक्त को छानकर मूत्र बनाते हैं।
- **मूत्रवाहिनी (Ureters):** वृक्क से मूत्राशय तक मूत्र ले जाने वाली नलिकाएँ।
- **मूत्राशय (Urinary Bladder):** एक पेशीय थैली जहाँ मूत्र जमा होता है।
- **मूत्रमार्ग (Urethra):** वह नली जिसके माध्यम से मूत्र शरीर से बाहर निकलता है।
- **नेफ्रॉन (Nephron):** वृक्क की कार्यात्मक इकाई।
- **ग्लोमेरुलस (Glomerulus):** रक्त केशिकाओं का एक गुच्छा जहाँ रक्त का प्रारंभिक निस्पंदन होता है।
- **बोमन संपूट (Bowman's Capsule):** ग्लोमेरुलस को घेरने वाली कप के आकार की संरचना।
- **वृक्क नलिका (Renal Tubule):** यहाँ ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण और जल जैसे उपयोगी पदार्थों का पुनःअवशोषण होता है। शेष अपशिष्ट मूत्र के रूप में बनता है।
- **हीमोडायलिसिस (Hemodialysis):** वृक्क की विफलता के मामले में कृत्रिम वृक्क का उपयोग करके रक्त को छानने की प्रक्रिया।
(b) पौधों में उत्सर्जन (Excretion in Plants)
- **प्रकाश संश्लेषण से उत्पन्न ऑक्सीजन ($\text{O}_2$)** और **श्वसन से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड ($\text{CO}_2$)** को पर्णरंध्रों और वातरंध्रों के माध्यम से उत्सर्जित किया जाता है।
- **जल का वाष्पोत्सर्जन** भी अपशिष्ट निष्कासन का एक रूप है।
- कुछ अपशिष्ट उत्पादों को पत्तियों में जमा किया जाता है और पत्ती के गिरने पर निकाल दिया जाता है।
- कुछ अपशिष्ट उत्पाद गोंद और रेजिन के रूप में पुराने जाइलम में जमा होते हैं।
- कुछ अपशिष्ट उत्पादों को आसपास की मिट्टी में उत्सर्जित किया जाता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
अभ्यास (पृष्ठ 105)
-
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?
किसी वस्तु को सजीव निर्धारित करने के लिए हम निम्नलिखित मापदंडों का उपयोग करेंगे:
- **गति (Movement):** सजीव वस्तुएँ गति करती हैं, चाहे वह शरीर के अंदर आणविक गति हो या बाहरी शारीरिक गति। यदि कोई जीव निष्क्रिय प्रतीत होता है, तब भी उसके भीतर आणविक गतिविधियाँ चल रही होती हैं जो जीवन के लिए आवश्यक हैं।
- **वृद्धि (Growth):** सजीव वस्तुएँ समय के साथ बढ़ती हैं।
- **पोषण (Nutrition):** सजीवों को ऊर्जा प्राप्त करने और शरीर के निर्माण के लिए भोजन की आवश्यकता होती है।
- **श्वसन (Respiration):** सजीव भोजन से ऊर्जा मुक्त करने के लिए श्वसन करते हैं।
- **उत्सर्जन (Excretion):** सजीव उपापचयी क्रियाओं से उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालते हैं।
- **संवेदनशीलता/उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया (Responsiveness/Irritability):** सजीव अपने वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं।
- **प्रजनन (Reproduction):** सजीव अपनी ही तरह के नए जीव उत्पन्न करते हैं।
इनमें से, **आणविक गति, पोषण, श्वसन, वहन और उत्सर्जन** जैसी जैव प्रक्रम जीवन के लिए सबसे मौलिक और निर्धारणकारी मापदंड हैं, क्योंकि ये निरंतर अनुरक्षण कार्य करते हैं। -
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधे कहाँ से प्राप्त करते हैं?
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधे निम्नलिखित स्रोतों से प्राप्त करते हैं:
- **कार्बन डाइऑक्साइड ($\text{CO}_2$):** पौधे इसे वायुमंडल से प्राप्त करते हैं। पत्तियों की सतह पर उपस्थित छोटे छिद्रों, जिन्हें **पर्णरंध्र (stomata)** कहते हैं, के माध्यम से $\text{CO}_2$ पत्तियों के अंदर प्रवेश करती है।
- **जल ($\text{H}_2\text{O}$):** पौधे इसे मिट्टी से जड़ों द्वारा अवशोषित करते हैं। अवशोषित जल जाइलम ऊतक द्वारा पत्तियों तक पहुँचाया जाता है।
- **सूर्य का प्रकाश:** यह ऊर्जा का स्रोत है और पौधे इसे सीधे सूर्य से प्राप्त करते हैं। पत्तियों में मौजूद क्लोरोफिल प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करता है।
- **क्लोरोफिल:** यह पत्तियों में मौजूद हरा वर्णक है, जो क्लोरोप्लास्ट में पाया जाता है। यह प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करता है। यह कच्ची सामग्री नहीं है बल्कि एक आवश्यक घटक है।
-
हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
हमारे शरीर में वसा का पाचन मुख्य रूप से **क्षुद्रांत्र (छोटी आँत)** में होता है।**पाचन की प्रक्रिया:**
- **पित्त रस का कार्य:** वसा, आमाशय से आने वाले भोजन (जो अम्लीय होता है) में बड़े गोलिकाओं के रूप में होती है। यकृत द्वारा स्रावित **पित्त रस (Bile juice)**, जो क्षुद्रांत्र में आता है, वसा की इन बड़ी गोलिकाओं का **इमल्सीकरण (Emulsification)** करता है। इमल्सीकरण का अर्थ है वसा की बड़ी गोलिकाओं को छोटी-छोटी गोलिकाओं में तोड़ना, जिससे एंजाइमों के लिए क्रिया करने का सतही क्षेत्र बढ़ जाता है। पित्त रस क्षारीय होता है और आमाशय से आए अम्लीय भोजन को भी क्षारीय बनाता है, जो अग्नाशयी एंजाइमों की क्रिया के लिए आवश्यक है।
- **लाइपेज का कार्य:** अग्नाशय से स्रावित होने वाला **अग्नाशयी लाइपेज (Pancreatic lipase)** और छोटी आँत की दीवारों द्वारा स्रावित **आंत्र लाइपेज (Intestinal lipase)** इमल्सीकृत वसा पर कार्य करते हैं। ये एंजाइम वसा को **वसा अम्ल (Fatty acids)** और **ग्लिसरॉल (Glycerol)** में विखंडित कर देते हैं, जो वसा के पाचन के अंतिम उत्पाद हैं।
**यह प्रक्रम कहाँ होता है?**- वसा का मुख्य पाचन **क्षुद्रांत्र (छोटी आँत)** में होता है।
- पित्त रस यकृत से आता है और अग्नाशयी लाइपेज अग्नाशय से। ये दोनों क्षुद्रांत्र में स्रावित होते हैं।
-
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र (छोटी आँत) को अत्यधिक दक्षता से अभिकल्पित किया गया है। इसकी संरचना में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं जो अवशोषण के लिए सतही क्षेत्र को अधिकतम करती हैं:
- **अत्यधिक लंबी (Length):** क्षुद्रांत्र लगभग 6.5 से 7 मीटर लंबी होती है, जिससे भोजन को पूरी तरह से पचने और अवशोषित होने के लिए पर्याप्त समय और सतह मिलती है।
- **अंकुर (Villi):** क्षुद्रांत्र की आंतरिक भित्ति पर लाखों की संख्या में छोटी-छोटी, उंगली जैसी प्रवर्ध होते हैं जिन्हें **अंकुर (Villi)** कहते हैं। ये अंकुर क्षुद्रांत्र के सतही क्षेत्र को हजारों गुना बढ़ा देते हैं, जिससे अवशोषण के लिए विशाल सतह उपलब्ध होती है।
- **सूक्ष्मांकुर (Microvilli):** अंकुरों की सतह पर भी और छोटे-छोटे प्रवर्ध होते हैं जिन्हें **सूक्ष्मांकुर (Microvilli)** कहते हैं, जो सतही क्षेत्र को और अधिक बढ़ाते हैं।
- **रक्त वाहिकाओं का घना जाल:** प्रत्येक अंकुर में रक्त वाहिकाओं (केशिकाओं) का एक घना और विस्तृत जाल होता है। यह नेटवर्क पचे हुए भोजन (जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, वसा अम्ल और ग्लिसरॉल) को सीधे रक्त प्रवाह में अवशोषित करने में मदद करता है और फिर शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाता है।
- **पतली दीवारें:** अंकुरों की दीवारें अत्यंत पतली (केवल एक कोशिका मोटी) होती हैं, जिससे पचे हुए भोजन के अणुओं का रक्त में तेजी से विसरण (diffusion) हो पाता है।
इन सभी विशेषताओं के कारण, क्षुद्रांत्र भोजन के पाचन और अवशोषण के लिए आदर्श अंग है।
अभ्यास (पृष्ठ 110)
-
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में स्थलीय जीव जलीय जीव की अपेक्षा अधिक लाभप्रद होते हैं। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
- **ऑक्सीजन की उपलब्धता:**
- **स्थलीय जीव:** वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा लगभग 21% होती है। वायु में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा से बहुत अधिक होती है।
- **जलीय जीव:** जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, खासकर गर्म जल में।
- **ऑक्सीजन का प्रसार:**
- **स्थलीय जीव:** वायु में ऑक्सीजन का प्रसार तेज और आसान होता है, जिससे श्वसन सतह (जैसे फेफड़े) को लगातार ताजी ऑक्सीजन युक्त वायु मिलती रहती है।
- **जलीय जीव:** जल में ऑक्सीजन का प्रसार बहुत धीमा होता है, जिससे जलीय जीवों को कम ऑक्सीजन मिलती है और उन्हें श्वसन के लिए अधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है (जैसे मछलियों को लगातार अपने गलफड़ों को खोलना और बंद करना पड़ता है)।
- **श्वसन दर:**
- **जलीय जीव:** चूंकि जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है, जलीय जीवों की श्वसन दर (यानी, साँस लेने की दर) स्थलीय जीवों की तुलना में बहुत तेज होती है ताकि वे अपनी ऑक्सीजन की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
- **स्थलीय जीव:** वायु में पर्याप्त ऑक्सीजन होने के कारण, स्थलीय जीवों की श्वसन दर अपेक्षाकृत धीमी होती है।
इसलिए, स्थलीय जीव वायु में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध ऑक्सीजन का कुशलतापूर्वक उपयोग कर पाते हैं, जबकि जलीय जीवों को जल में कम घुलनशील ऑक्सीजन के लिए अधिक प्रयास करना पड़ता है। - **ऑक्सीजन की उपलब्धता:**
-
गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए फुफ्फुस को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
गैसों (ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड) के अधिकतम विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस (फेफड़े) को अत्यधिक कुशल तरीके से अभिकल्पित किया गया है। इसकी संरचनात्मक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- **कुपिकाएँ (Alveoli) - विशाल सतही क्षेत्र:** फेफड़ों के भीतर, श्वसनिकाएँ (bronchioles) अंततः लाखों छोटी-छोटी, गुब्बारे जैसी संरचनाओं में समाप्त होती हैं जिन्हें **कुपिकाएँ (Alveoli)** कहते हैं। ये कुपिकाएँ मिलकर एक विशाल सतही क्षेत्र प्रदान करती हैं (लगभग 80 वर्ग मीटर, एक टेनिस कोर्ट के आकार का), जो गैसों के विनिमय के लिए आवश्यक है। इतना बड़ा सतही क्षेत्र यह सुनिश्चित करता है कि अधिकतम मात्रा में ऑक्सीजन रक्त में विसरित हो सके और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकल सके।
- **पतली दीवारें:** कुपिकाओं की दीवारें और उन्हें घेरने वाली रक्त केशिकाओं की दीवारें अत्यंत पतली होती हैं (केवल एक कोशिका मोटी)। यह पतली परत गैसों के त्वरित और कुशल विसरण (diffusion) को सुविधाजनक बनाती है।
- **रक्त केशिकाओं का घना जाल:** प्रत्येक कुपिका को रक्त केशिकाओं के एक विस्तृत और घने जाल से घेरा होता है। यह नेटवर्क रक्त को कुपिकाओं के बहुत करीब लाता है, जिससे गैसों का आदान-प्रदान (ऑक्सीजन रक्त में और कार्बन डाइऑक्साइड रक्त से कुपिकाओं में) आसानी से हो पाता है।
- **अवशिष्ट आयतन (Residual Volume):** फेफड़ों में हमेशा कुछ अवशिष्ट वायु (residual air) बनी रहती है, भले ही हम साँस छोड़ दें। यह सुनिश्चित करता है कि गैसों के विनिमय के लिए एक निरंतर वायु उपलब्ध हो और रक्त में ऑक्सीजन अवशोषित होने के लिए और कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
इन सभी विशेषताओं के कारण, फुफ्फुस गैसों के आदान-प्रदान के लिए एक आदर्श अंग बन जाते हैं, जो शरीर की ऑक्सीजन आवश्यकताओं को पूरा करने और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने में अत्यंत प्रभावी होते हैं।
अभ्यास (पृष्ठ 118)
-
मानव में वहन तंत्र के घटक कौन से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
मानव में वहन तंत्र को **परिसंचरण तंत्र (Circulatory System)** भी कहते हैं। इसके प्रमुख घटक और उनके कार्य निम्नलिखित हैं:
- **हृदय (Heart):**
- **कार्य:** यह एक पेशीय पंपिंग अंग है जो रक्त को शरीर के सभी भागों में धकेलता है। यह ऑक्सीजन युक्त रक्त को फेफड़ों से शरीर में और ऑक्सीजन रहित रक्त को शरीर से फेफड़ों तक ले जाने के लिए जिम्मेदार है। हृदय में चार कक्ष होते हैं जो ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन रहित रक्त को मिलने से रोकते हैं।
- **रक्त वाहिकाएँ (Blood Vessels):** ये नलिकाओं का एक नेटवर्क हैं जो रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक और वापस हृदय तक ले जाती हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं:
- **धमनियां (Arteries):** ये ऑक्सीजन युक्त रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाती हैं (केवल फुफ्फुसीय धमनी को छोड़कर जो ऑक्सीजन रहित रक्त को फेफड़ों तक ले जाती है)। इनकी दीवारें मोटी और लोचदार होती हैं क्योंकि रक्त उच्च दबाव पर बहता है।
- **शिराएं (Veins):** ये ऑक्सीजन रहित रक्त को शरीर के विभिन्न भागों से हृदय तक वापस लाती हैं (केवल फुफ्फुसीय शिरा को छोड़कर जो ऑक्सीजन युक्त रक्त को फेफड़ों से हृदय तक लाती है)। इनकी दीवारें पतली होती हैं और इनमें वाल्व होते हैं जो रक्त को केवल एक ही दिशा में बहने देते हैं।
- **केशिकाएं (Capillaries):** ये धमनियों और शिराओं को जोड़ने वाली बहुत पतली (एक कोशिका मोटी) रक्त वाहिकाएं होती हैं। यह वह स्थान है जहाँ रक्त और शरीर की कोशिकाओं के बीच पोषक तत्वों, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और अपशिष्ट उत्पादों का वास्तविक आदान-प्रदान होता है।
- **रक्त (Blood):** यह एक तरल संयोजी ऊतक है जो पूरे शरीर में विभिन्न पदार्थों का वहन करता है। इसके प्रमुख घटक और कार्य:
- **प्लाज्मा (Plasma):** यह रक्त का तरल भाग है, जो जल, प्रोटीन, लवण और हार्मोनों से बना होता है। यह भोजन, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट उत्पादों को घुलित रूप में वहन करता है।
- **लाल रक्त कोशिकाएँ (Red Blood Cells - RBCs):** इनमें हीमोग्लोबिन नामक वर्णक होता है जो ऑक्सीजन को फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं तक ले जाता है।
- **श्वेत रक्त कोशिकाएँ (White Blood Cells - WBCs):** ये शरीर को संक्रमण और बीमारियों से बचाने में मदद करती हैं।
- **प्लेटलेट्स (Platelets):** ये रक्त का थक्का बनाने में मदद करते हैं, जिससे चोट लगने पर रक्तस्राव रुक जाता है।
- **लसिका (Lymph):** यह एक और तरल पदार्थ है जो वहन में सहायता करता है।
- **कार्य:** यह ऊतक द्रव (जो कोशिकाओं के बीच रिक्त स्थान में मौजूद होता है) का एक हिस्सा है। यह रक्त प्लाज्मा के समान है लेकिन इसमें कम प्रोटीन होता है। यह पचे हुए वसा को अवशोषित करता है और आंत्र से रक्त में ले जाता है, तथा अतिरिक्त ऊतक द्रव को रक्तप्रवाह में वापस करता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली का भी हिस्सा है।
- **हृदय (Heart):**
-
पादप में जल तथा खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
पादप में जल तथा खनिज लवण का वहन **जाइलम (Xylem)** ऊतक द्वारा होता है। यह प्रक्रिया जड़ों से शुरू होकर पत्तियों तक होती है और मुख्य रूप से **वाष्पोत्सर्जन कर्षण (Transpiration Pull)** और जड़ों द्वारा जल अवशोषण (मूल दाब) के कारण होती है।**जाइलम:** यह एक संवहन ऊतक है जो वाहिकाओं (vessels) और वाहिनिकाओं (tracheids) से बना होता है। यह जड़ों से पत्तियों तक एक निरंतर जल स्तंभ बनाता है।**प्रक्रिया:**
- **जल और खनिज लवणों का अवशोषण (Absorption by Roots):** जड़ों की कोशिकाएँ सक्रिय रूप से मृदा से आयनों (खनिज लवणों) को अवशोषित करती हैं। इससे जड़ में आयन सांद्रता बढ़ जाती है, और परासरण (osmosis) के कारण जल भी जड़ों में प्रवेश करता है। यह एक **मूल दाब (Root Pressure)** बनाता है जो जल को जाइलम में ऊपर की ओर धकेलता है। यह बल रात में महत्वपूर्ण होता है जब वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
- **वाष्पोत्सर्जन कर्षण (Transpiration Pull):** पौधों में जल के वहन के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक **वाष्पोत्सर्जन** है।
- पत्तियों की सतह पर उपस्थित पर्णरंध्रों (stomata) के माध्यम से जल वाष्प के रूप में वायुमंडल में निकलता है। इस प्रक्रिया को **वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)** कहते हैं।
- जैसे-जैसे जल पत्तियों से वाष्पित होता है, यह पत्तियों की कोशिकाओं में एक 'खींच' (कर्षण) पैदा करता है।
- जल के अणुओं के बीच **संसंजन (Cohesion)** बल (जल के अणुओं का एक-दूसरे से चिपकना) और जल के अणुओं तथा जाइलम की दीवारों के बीच **आसंजन (Adhesion)** बल (जल के अणुओं का जाइलम की दीवारों से चिपकना) के कारण, जल का एक निरंतर स्तंभ जड़ों से पत्तियों तक बना रहता है।
- यह वाष्पोत्सर्जन कर्षण बल जल को एक पाइप में खींचने वाले सक्शन की तरह कार्य करता है, जो हजारों मीटर ऊँचे पेड़ों में भी जल को ऊपर खींचने में सक्षम है।
इस प्रकार, मूल दाब और विशेष रूप से वाष्पोत्सर्जन कर्षण, जाइलम के माध्यम से पौधों में जल और खनिज लवणों के वहन के लिए मुख्य बल प्रदान करते हैं।
अभ्यास (पाठ्यपुस्तक के अंत में)
-
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे? (यह प्रश्न पहले भी आया है, लेकिन महत्वपूर्ण होने के कारण दोहराया गया है।)
किसी वस्तु को सजीव निर्धारित करने के लिए हम निम्नलिखित मापदंडों का उपयोग करेंगे:
- **आणविक गति (Molecular Movement):** यह सबसे मूलभूत मापदंड है। जीवित जीव भले ही बाहरी रूप से स्थिर प्रतीत हों, उनके शरीर के अंदर अणु लगातार गतिशील रहते हैं। ये आणविक गतियाँ जीवन की प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक होती हैं और शरीर की टूट-फूट की मरम्मत व रखरखाव में सहायक होती हैं।
- **पोषण (Nutrition):** ऊर्जा प्राप्त करने और शरीर के निर्माण व मरम्मत के लिए पदार्थों को ग्रहण करना और उनका उपयोग करना।
- **श्वसन (Respiration):** भोजन से ऊर्जा मुक्त करने की प्रक्रिया।
- **वहन/परिवहन (Transportation):** शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पदार्थों (पोषक तत्व, ऑक्सीजन, हार्मोन, अपशिष्ट) का स्थानांतरण।
- **उत्सर्जन (Excretion):** शरीर से हानिकारक उपापचयी अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकालना।
- **वृद्धि (Growth):** आकार और द्रव्यमान में वृद्धि।
- **उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया (Response to Stimuli):** पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों को महसूस करना और उनके प्रति प्रतिक्रिया देना।
- **प्रजनन (Reproduction):** अपनी ही तरह के नए जीव उत्पन्न करना।
इनमें से, विशेष रूप से पोषण, श्वसन, वहन और उत्सर्जन को **जैव प्रक्रम** कहा जाता है क्योंकि ये सभी जीव के अनुरक्षण के लिए अनिवार्य हैं। -
अमीबा में पोषण का वर्णन कीजिए।
अमीबा एक एककोशिकीय जीव है जो पूर्णपोषी पोषण (Holozoic nutrition) प्रदर्शित करता है। इसमें पोषण के विभिन्न चरण इस प्रकार हैं:
- **अंतर्ग्रहण (Ingestion):** अमीबा के पास कोई निश्चित मुख नहीं होता है। यह अपने शरीर की सतह से निकलने वाले अस्थायी, उंगली जैसे प्रवर्धों, जिन्हें **कुटपाद (Pseudopodia)** कहते हैं, का उपयोग करके भोजन को घेरता है। जब भोजन कुटपादों के संपर्क में आता है, तो वे भोजन के कण को पूरी तरह से घेर लेते हैं और उसे कोशिका के अंदर एक छोटी थैली, **खाद्यधानी (Food vacuole)** में बंद कर देते हैं।
- **पाचन (Digestion):** खाद्यधानी के अंदर, पाचक एंजाइम स्रावित होते हैं। ये एंजाइम भोजन के जटिल पदार्थों को सरल, घुलनशील पदार्थों में तोड़ देते हैं।
- **अवशोषण (Absorption):** पचे हुए सरल पदार्थ खाद्यधानी से कोशिकाद्रव्य में विसरित (diffuse) हो जाते हैं।
- **स्वांगीकरण (Assimilation):** अवशोषित भोजन का उपयोग अमीबा की वृद्धि, मरम्मत और ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- **बहिष्करण (Egestion):** अपचित (न पचे हुए) और अपशिष्ट पदार्थ खाद्यधानी में ही रहते हैं। खाद्यधानी धीरे-धीरे कोशिका की सतह की ओर बढ़ती है और फट जाती है, जिससे अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
-
मानव में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
**दोहरा परिसंचरण (Double Circulation):** मानव सहित पक्षियों और स्तनधारियों में रक्त हृदय से दो बार गुजरता है ताकि शरीर में एक पूर्ण चक्र पूरा कर सके। इस परिसंचरण को दोहरा परिसंचरण कहते हैं। यह दो भागों में होता है:
- **फुफ्फुसीय परिसंचरण (Pulmonary Circulation):** इसमें रक्त हृदय के दाहिने निलय से फुफ्फुसीय धमनी के माध्यम से फेफड़ों तक जाता है, जहाँ यह कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है और ऑक्सीजन ग्रहण करता है। फिर ऑक्सीजन युक्त रक्त फुफ्फुसीय शिराओं के माध्यम से हृदय के बाएँ आलिंद में वापस आता है।
- **प्रणालीगत परिसंचरण (Systemic Circulation):** इसमें ऑक्सीजन युक्त रक्त हृदय के बाएँ निलय से महाधमनी के माध्यम से शरीर के सभी भागों में पंप किया जाता है। शरीर की कोशिकाओं द्वारा ऑक्सीजन का उपयोग करने और कार्बन डाइऑक्साइड को रक्त में छोड़ने के बाद, ऑक्सीजन रहित रक्त शिराओं के माध्यम से हृदय के दाहिने आलिंद में वापस आता है।
**दोहरा परिसंचरण क्यों आवश्यक है?**- **ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन रहित रक्त का पृथक्करण:** दोहरा परिसंचरण ऑक्सीजन युक्त रक्त को ऑक्सीजन रहित रक्त के साथ मिलने से रोकता है। यह अत्यधिक कुशल ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
- **उच्च ऊर्जा आवश्यकताएँ:** मनुष्य और अन्य स्तनधारियों को अपने शरीर का तापमान बनाए रखने और लगातार शारीरिक गतिविधियों (जैसे दौड़ना, चलना) के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की इस उच्च आवश्यकता को पूरा करने के लिए, शरीर को ऑक्सीजन की निरंतर और कुशल आपूर्ति की आवश्यकता होती है। दोहरे परिसंचरण से यह सुनिश्चित होता है कि प्रत्येक कोशिका को अधिकतम संभव ऑक्सीजन मिले।
- **कुशलता:** यह तंत्र रक्त के परिसंचरण में उच्च दक्षता सुनिश्चित करता है, जिससे ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की प्रभावी आपूर्ति होती है और अपशिष्ट उत्पादों का कुशल निष्कासन होता है।
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)