अध्याय 8: विचित्रः साक्षी (अनोखा गवाह)
परिचय
कक्षा 10 संस्कृत (शेमुषी - द्वितीयो भागः) का यह अध्याय **'विचित्रः साक्षी'** ओड़िशा के प्रख्यात साहित्यकार **ओमप्रकाश ठाकुर** द्वारा रचित कथा 'विचित्रः साक्षी' का संपादित अंश है। यह पाठ इस बात पर केंद्रित है कि **न्याय प्रणाली में सत्य तक पहुँचने के लिए केवल प्रत्यक्ष साक्ष्य ही नहीं, बल्कि अप्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य (circumstantial evidence) भी महत्त्वपूर्ण होते हैं।** कथा में एक गरीब व्यक्ति और एक चोर के बीच विवाद को एक चतुर न्यायाधीश किस प्रकार सुलझाता है, यह दर्शाया गया है। यह पाठ बुद्धिमत्ता, धैर्य और न्याय के महत्व को रेखांकित करता है, और बताता है कि कैसे एक असाधारण गवाह (या परिस्थिति) न्याय दिलाने में सहायक हो सकता है।
---संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद (Sanskrit Text and Hindi Translation)
कश्चन निर्धनः जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चित् वित्तमुपार्जितवान्। तेन वित्तेन स्वपुत्रम् एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलः जातः। सः तत्रैव छात्रावासे निवसति स्म। एकदा सः पिता पुत्रस्य रुग्णतां आकर्ण्य व्याकुलो जातः। पुत्रं द्रष्टुं च प्रस्थितः। परं वित्तहीनतया सः पदयातिरेव प्राचलत्। पदयात्रामेण संचलनकाले सायं समये सः एकाकी ग्रामान्तरं प्राप्तः। तत्रस्थे कस्मिंश्चित् गृहे रात्रिनिवासं कर्तुं निवेदयत्। करुणापरो गृहस्वामी तस्मै आश्रयम् अयच्छत्।
अनुवाद: किसी निर्धन व्यक्ति ने बहुत परिश्रम करके कुछ धन कमाया। उस धन से वह अपने पुत्र को एक महाविद्यालय में प्रवेश दिलाने में सफल हुआ। वह (पुत्र) वहीं छात्रावास में रहता था। एक बार वह पिता पुत्र की बीमारी सुनकर व्याकुल हो गया। और पुत्र को देखने के लिए चल पड़ा। परंतु धनहीनता के कारण वह पैदल ही चल पड़ा। पैदल यात्रा करते हुए, शाम के समय वह अकेला दूसरे गाँव पहुँचा। वहाँ एक घर में रात बिताने के लिए निवेदन किया। दयालु गृहस्वामी ने उसे आश्रय दिया।
विचित्रः खलु दैवगतिः। तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः। तत्र निहिताम् एकाम् मञ्जूषाम् आदाय पलायितः। चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धो अतिथिः चौरशङ्कया तम् अन्वधावत्। अग्राह्णात् च। परं विचित्रम् अघटत। चौरः एव उच्चैः क्रोशितुम् आरभत - “चौरोऽयं चौरोऽयम्” इति। तस्य तारस्वरेण प्रबुद्धाः ग्रामवासिनः स्वगृहात् निष्क्रम्य तत्रागच्छन् वराकमतिथिम् एव चौरं मत्वा अभर्त्सयन्।
अनुवाद: वास्तव में भाग्य की गति विचित्र होती है। उसी रात उस घर में कोई चोर घर के अंदर घुस गया। वहाँ रखी हुई एक पेटी लेकर भाग गया। चोर के पैरों की आवाज से जागा हुआ अतिथि चोर की आशंका से उसके पीछे भागा। और उसे पकड़ लिया। परंतु विचित्र घटना घटी। चोर ने ही ऊँचे स्वर में चिल्लाना शुरू कर दिया - "यह चोर है, यह चोर है!" उसकी तेज आवाज से जागे हुए गाँव वाले अपने घरों से निकलकर वहाँ आए और उस बेचारे अतिथि को ही चोर मानकर डाँटने लगे।
यद्यपि ग्रामप्रमुखः तत्क्षणमेव आगत्य सर्वेषां जनं मनसि विश्वासं स्थापितवान्। तथापि सः निर्धनः जनः रात्रौ एव आरक्षकेण बद्धः, न्यायालये उपस्थापितः च। न्यायाधीशः बंकिमचन्द्रः उभयोः पक्षयोः पृथक्-पृथक् विवरणं श्रुतवान्। सर्वं वृत्तं विज्ञाय सः तम् निर्दोषम् अमंस्त, चौरं च सदोषम्। किन्तु प्रमाणभावात् सः निर्णयं दातुम् नाशक्नोत्।
अनुवाद: यद्यपि ग्रामप्रमुख उसी क्षण आकर सभी लोगों के मन में विश्वास स्थापित कर चुका था। फिर भी वह निर्धन व्यक्ति रात में ही आरक्षक (पुलिसकर्मी) द्वारा पकड़ा गया, और न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। न्यायाधीश बंकिमचंद्र ने दोनों पक्षों का अलग-अलग विवरण सुना। सारा वृत्तांत जानकर उन्होंने उस (निर्धन) को निर्दोष और चोर को दोषी माना। परंतु प्रमाण के अभाव में वह निर्णय देने में असमर्थ थे।
सः तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुमादिशत्। अन्येद्युः तौ न्यायालये उपस्थितौ। न्यायाधीशः तयोः गन्तुमभ्यन्तरे वर्तमाने पदे पदे दूरीकरणार्थं तौ आदिशत् - "युवाभ्यां पदे पदे गन्तव्यम्। यत्किञ्चिद् अस्ति, तत् सर्वं मार्गमध्ये कथनीयम्।" इति। तौ प्रस्थितौ।
अनुवाद: उन्होंने उन दोनों को अगले दिन उपस्थित होने का आदेश दिया। अगले दिन वे दोनों न्यायालय में उपस्थित हुए। न्यायाधीश ने उन दोनों को पैदल ही दूर जाने के लिए आदेश दिया - "तुम दोनों को पैदल ही जाना होगा। रास्ते में जो कुछ भी (घटना) हो, वह सब कहना होगा।" ऐसा। वे दोनों चल पड़े।
अदूरवर्तिनि कस्मिंश्चित् स्थले, एकः श्मशानः आसीत्। तत्र एकः शवः निपत्य आसीत्। आरक्षी प्रसन्नात्मना अवदत् - "भगवन्! सः चौरः अत्रैव म्रियते। अहम् एनं दण्डयामि।" इति। न्यायाधीशः तस्मै आदेशं ददौ - "तम् श्मशानम् नय। शवं च त्वम् स्वस्य कन्धया वह।" इति।
अनुवाद: कुछ ही दूरी पर एक श्मशान था। वहाँ एक शव गिरा पड़ा था। आरक्षी (पुलिसकर्मी) प्रसन्न मन से बोला - "भगवन्! वह चोर यहीं मर जाता है। मैं इसे दंडित करता हूँ।" ऐसा। न्यायाधीश ने उसे (आरक्षी को) आदेश दिया - "उसे श्मशान ले जाओ। और शव को तुम अपने कंधे पर ढोओ।" ऐसा।
निर्धनः जनः स्वस्थदेही आसीत्, भारवाही च। सः शवं सुष्ठु स्कन्धेन निधाय प्राचलत्। आरक्षी तु अशक्तः आसीत्, कृशकायः च। तेन शवं वहनं दुष्करम् आसीत्। सः स्कन्धतः शवं पातयित्वा रोदितुम् आरब्धः। तस्य क्रन्दनं श्रुत्वा न्यायाधीशः अवदत् - "रे दुरात्मन्! ननु तस्मिन् दिने त्वं चौरं चौरम् इति क्रोशन् आसीत्? अधुना किमर्थं रोदिषि?"
अनुवाद: निर्धन व्यक्ति स्वस्थ शरीर वाला और भार ढोने वाला था। उसने शव को अच्छी तरह कंधे पर रखकर चलना शुरू किया। आरक्षी (पुलिसकर्मी) तो अशक्त और दुबले शरीर वाला था। उससे शव ढोना मुश्किल था। उसने कंधे से शव को गिराकर रोना शुरू कर दिया। उसका रोना सुनकर न्यायाधीश बोले - "अरे दुष्ट! क्या उस दिन तुम 'चोर, चोर' चिल्ला रहे थे? अब किसलिए रो रहे हो?"
आरक्षी - "मया अस्य कन्धया शवं वहनं अशक्यम्। अतः रोदिमि।" न्यायाधीशः - "अधुना भवता सत्यम् कथितम्। त्वं चौरं नासि। सः तु दुर्बलः, तेन शवं वहनं अशक्यम्। तस्मात् त्वम् एव चौरः।" एवमुक्त्वा न्यायाधीशः तम् आरक्षिणम् कारागारे क्षिप्तवान्, तम् निर्धनं जनं च ससमानम् मुक्तवान्। अहो! बुद्धिमत्ता! अहो! विचित्रः साक्षी!
अनुवाद: आरक्षी - "मुझसे इस कंधे से शव ढोना असंभव है। इसलिए रो रहा हूँ।" न्यायाधीश - "अब तुमने सत्य कहा। तुम चोर नहीं हो। वह तो कमजोर है, उससे शव ढोना असंभव है। इसलिए तुम ही चोर हो।" ऐसा कहकर न्यायाधीश ने उस आरक्षी को कारागार में डाल दिया, और उस निर्धन व्यक्ति को सम्मान सहित मुक्त कर दिया। अहो! बुद्धिमत्ता! अहो! अनोखा गवाह!
मुख्य बिंदु (Key Points)
- **न्याय की सूक्ष्मता:** यह पाठ बताता है कि न्याय करते समय केवल प्रत्यक्ष साक्ष्य पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि बुद्धिमत्ता और परिस्थितियों का भी विश्लेषण करना चाहिए।
- **परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence):** न्यायाधीश बंकिमचंद्र ने चोर की पहचान करने के लिए एक अद्वितीय युक्ति का प्रयोग किया, जहाँ शारीरिक क्षमता और सहनशीलता ही अप्रत्यक्ष गवाह बन गई।
- **बुद्धिमत्ता का महत्व:** न्यायाधीश की बुद्धिमत्ता और समस्या-समाधान क्षमता इस कथा का मुख्य आकर्षण है।
- **सत्य की विजय:** अंततः सत्य की विजय होती है और निर्दोष को न्याय मिलता है।
- **कठोरता से न्याय:** कभी-कभी न्याय के लिए कुछ अप्रत्याशित और कठिन परीक्षणों का भी सहारा लेना पड़ता है।
व्याकरण-बिंदु (Grammar Points)
1. संधि-विच्छेद (Sandhi-Vichchhed)
- वित्तमुपार्जितवान् = वित्तम् + उपार्जितवान् (व्यंजन संधि)
- महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं = महाविद्यालये + प्रवेशम् + दापयितुम् (विसर्ग, व्यंजन संधि)
- रुग्णतामाकर्ण्य = रुग्णताम् + आकर्ण्य (व्यंजन संधि)
- पदयातिरेव = पदयातिः + एव (विसर्ग संधि)
- ग्रामान्तरं = ग्राम + अन्तरम् (दीर्घ संधि)
- कश्चन = कः + चन (विसर्ग संधि)
- गृहाभ्यन्तरं = गृह + अभ्यन्तरम् (दीर्घ संधि)
- क्रोशितुम् आरभत = क्रोशितुम् + आरभत (व्यंजन संधि)
- चौरोऽयम् = चौरः + अयम् (विसर्ग संधि, पूर्वरूप)
- नोत्थितः = न + उत्थितः (गुण संधि)
- तथैव = तथा + एव (वृद्धि संधि)
- निर्दोषममंस्त = निर्दोषम् + अमंस्त (व्यंजन संधि)
- नाशक्नोत् = न + अशक्नोत् (दीर्घ संधि)
- गन्तुमभ्यन्तरे = गन्तुम् + अभ्यन्तरे (व्यंजन संधि)
- किञ्चिदस्ति = किञ्चित् + अस्ति (व्यंजन संधि)
- तत्रासीत् = तत्र + आसीत् (दीर्घ संधि)
- प्रसन्नात्मना अवदत् = प्रसन्नात्मना + अवदत् (सवर्ण दीर्घ संधि)
- एवमुक्त्वा = एवम् + उक्त्वा (व्यंजन संधि)
2. समास-विग्रह (Samasa-Vigraha)
- **निर्धनः:** निर्गतं धनं यस्मात् सः (बहुव्रीहि)
- **भूरि परिश्रम्य:** भूरि च तत् परिश्रम्य च (कर्मधारय) / भूरी परिश्रमं कृत्वा (विशेषण-कर्मधारय)
- **महाविद्यालये:** महति विद्यालये (कर्मधारय)
- **वित्तहीनतया:** वित्तेन हीनता (तृतीया तत्पुरुष)
- **पदयातिरेव:** पदाभ्यां याति इति (उपपद तत्पुरुष) / पदयातिः एव (नित्य समास)
- **ग्रामान्तरम्:** अन्यः ग्रामः (नित्य समास)
- **गृहस्वामी:** गृहस्य स्वामी (षष्ठी तत्पुरुष)
- **चौरशङ्कया:** चौरस्य शङ्कया (षष्ठी तत्पुरुष)
- **तारस्वरेण:** तारेण स्वरेण (कर्मधारय)
- **ग्रामवासिनः:** ग्रामे वसन्ति ये ते (सप्तमी तत्पुरुष)
- **निर्दोषम्:** निर्गतः दोषः यस्मात् तम् (बहुव्रीहि)
- **कृशकायः:** कृशं कायं यस्य सः (बहुव्रीहि)
- **ससमानम्:** सम्मानेन सहितम् (अव्ययीभाव)
3. प्रत्यय (Pratyaya)
- **परिश्रम्य:** परि + श्रम् + ल्यप् (ल्यप् प्रत्यय)
- **उपार्जितवान्:** उप + ऋज् + क्तवतु (क्तवतु प्रत्यय)
- **दापयितुम्:** दा + णिच् + तुमुन् (णिच्, तुमुन् प्रत्यय)
- **आकर्ण्य:** आ + कृ + ल्यप् (ल्यप् प्रत्यय)
- **द्रष्टुम्:** दृश् + तुमुन् (तुमुन् प्रत्यय)
- **प्रस्थितः:** प्र + स्था + क्त (क्त प्रत्यय)
- **संचलनकाले:** सम् + चर् + ल्युट् + सप्तमी एकवचन (ल्युट् प्रत्यय)
- **प्रविष्टः:** प्र + विश् + क्त (क्त प्रत्यय)
- **निहिताम्:** नि + धा + क्त + टाप् (क्त, टाप् प्रत्यय)
- **आदाय:** आ + दा + ल्यप् (ल्यप् प्रत्यय)
- **प्रबुद्धः:** प्र + बुध् + क्त (क्त प्रत्यय)
- **अन्वधावत्:** अनु + धाव् + लङ् (लङ् लकार)
- **अभर्त्सयन्:** अभि + भर्त्स + लङ् (लङ् लकार)
- **विज्ञाय:** वि + ज्ञा + ल्यप् (ल्यप् प्रत्यय)
- **दातुम्:** दा + तुमुन् (तुमुन् प्रत्यय)
- **उपस्थातुम्:** उप + स्था + तुमुन् (तुमुन् प्रत्यय)
- **कथनीयम्:** कथ् + अनीयर् (अनीयर् प्रत्यय)
- **निपत्य:** नि + पत् + ल्यप् (ल्यप् प्रत्यय)
- **श्रुत्वा:** श्रु + क्त्वा (क्त्वा प्रत्यय)
- **उक्त्वा:** वच् + क्त्वा (क्त्वा प्रत्यय)
- **क्षिप्तवान्:** क्षिप् + क्तवतु (क्तवतु प्रत्यय)
- **मुक्तवान्:** मुच् + क्तवतु (क्तवतु प्रत्यय)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)
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निर्धनः जनः कथं वित्तमुपार्जितवान्?
भूरिपरिश्रम्य
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पितुः रुग्णताम् आकर्ण्य कः व्याकुलो जातः?
पुत्रः
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अतिथिना किम् दृष्टम्?
चौरम्
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चौरस्य तारस्वरेण के प्रबुद्धाः?
ग्रामवासिनः
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न्यायाधीशः कः आसीत्?
बंकिमचन्द्रः
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दें)
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जनः किं दृष्टुं प्रस्थितः?
जनः पुत्रस्य रुग्णताम् आकर्ण्य पुत्रं द्रष्टुं प्रस्थितः।
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अतिथिः कस्मिन् गृहे रात्रिनिवासं कर्तुं निवेदयत्?
अतिथिः ग्रामान्तरे स्थितं कस्मिंश्चित् गृहे रात्रिनिवासं कर्तुं निवेदयत्।
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चौरः उच्चैः क्रोशितुम् आरभत, किमर्थम्?
चौरः उच्चैः क्रोशितुम् आरभत - "चौरोऽयं चौरोऽयम्" इति, यतः सः अतिथिना गृहीतः आसीत्, अतः स्वस्य दोषं गोप्तुम्।
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न्यायाधीशः प्रमाणभावात् किं कर्तुं नाशक्नोत्?
न्यायाधीशः प्रमाणभावात् निर्णयं दातुम् नाशक्नोत्।
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आरक्षी शवं स्कन्धतः किमर्थं पातितवान्?
आरक्षी अशक्तः कृशकायः च आसीत्, तेन शवं वहनं दुष्करम् आसीत्, अतः सः शवं स्कन्धतः पातितवान्।
सन्धिं/सन्धिच्छेदं कुरुत (संधि/संधि विच्छेद करें)
- ग्रामान्तरम् = **ग्राम + अन्तरम्**
- चौरोऽयम् = **चौरः + अयम्**
- निर्दोषममंस्त = **निर्दोषम् + अमंस्त**
- प्रमाणभावात् + सः = **प्रमाणभावात्सः**
- यत्किञ्चित् = **यत् + किञ्चित्**
- एवमुक्त्वा = **एवम् + उक्त्वा**
- नादिशत् = **न + आदिशत्**
- रात्रिनिवासम् = **रात्रि + निवासम्**
अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के पर्यायवाची शब्द पाठ से चुनकर लिखें)
- कष्टेन = **परिश्रम्य**
- निशि = **रात्रौ**
- चौरः = **तस्करः** (पाठ में 'चौर' शब्द ही प्रयुक्त है, पर यह पर्यायवाची है)
- निर्णयः = **निर्णयम्**
- कण्ठेन = **कन्धया**
- दीनः = **निर्धनः**
- अन्यायः = **दोषः** (या सदोषम्)
अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखें)
- निर्धनः × **सधनः** (पाठ में सीधा नहीं, पर 'धनहीनतया' का विपरीत)
- दुर्बलः × **स्वस्थदेही** (या बलवान्)
- अज्ञानी × **बुद्धिमत्ता** (भावार्थ)
- रात्रौ × **दिने**
- क्रोधितः × **प्रसन्नः**
- समानम् × **असमानम्** (या पृथक्-पृथक्)
रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (रेखांकित पद के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)
- निर्धनः जनः **पुत्रस्य** रुग्णताम् आकर्ण्य व्याकुलो जातः।
निर्धनः जनः **कस्य** रुग्णताम् आकर्ण्य व्याकुलो जातः?
- अतिथिः **चौरशङ्कया** तम् अन्वधावत्।
अतिथिः **कया** तम् अन्वधावत्?
- न्यायाधीशः **अग्रिमे दिने** उपस्थातुमादिशत्।
न्यायाधीशः **कदा** उपस्थातुमादिशत्?
- आरक्षी **शवं** स्कन्धेन वहति।
आरक्षी **किम्** स्कन्धेन वहति?
- तस्य **तारस्वरेण** प्रबुद्धाः ग्रामवासिनः आगच्छन्।
तस्य **कीदृशेन स्वरेण** प्रबुद्धाः ग्रामवासिनः आगच्छन्?
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)