अध्याय 7: सौहार्दं प्रकृतेः शोभा (सद्भाव प्रकृति की शोभा है)
परिचय
कक्षा 10 संस्कृत (शेमुषी - द्वितीयो भागः) का यह अध्याय **'सौहार्दं प्रकृतेः शोभा'** प्रकृति और मनुष्य के बीच सामंजस्य तथा सद्भाव के महत्व को प्रस्तुत करता है। यह पाठ हमें प्रकृति के विभिन्न तत्वों - वृक्ष, नदी, पर्वत, पशु-पक्षियों आदि के साथ मानव के संबंधों को समझाता है। प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध ही वास्तव में इसकी सुंदरता को बढ़ाते हैं। इस पाठ में संस्कृत श्लोकों के माध्यम से प्रकृति संरक्षण, पर्यावरण संतुलन और सभी प्राणियों के प्रति प्रेम का संदेश दिया गया है।
---संस्कृत श्लोक और हिन्दी अनुवाद (Sanskrit Shlokas and Hindi Translation)
वृक्षाः सर्वेषां भवन्ति सुहृदः,
छायां ददति शीतलां सुखदाम्।
फलैः पुष्पैः चापि, तर्पयन्ति जगत्,
तस्मात् वृक्षान् रक्षेम, पालयेम च॥1॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'सौहार्दं प्रकृतेः शोभा' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में वृक्षों के महत्व और उनके साथ मानव के संबंधों का वर्णन किया गया है।
अनुवाद: वृक्ष सभी के मित्र होते हैं, वे शीतल और सुखद छाया प्रदान करते हैं। फलों और फूलों से वे संसार को तृप्त करते हैं, इसलिए हमें वृक्षों की रक्षा और पालन करना चाहिए।
**भावार्थ:** वृक्ष हमारे सच्चे मित्र हैं जो बिना किसी स्वार्थ के हमें छाया, फल, फूल और ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इनका संरक्षण करें और अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं।
नद्यः शुद्धिं ददति जलैः,
पावनं कुर्वन्ति भूतलम्।
तासां रक्षा करणीया,
न तु दूषणमाचरेत्॥2॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'सौहार्दं प्रकृतेः शोभा' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में नदियों के महत्व और उनकी शुद्धता बनाए रखने का संदेश दिया गया है।
अनुवाद: नदियाँ अपने जल से शुद्धि प्रदान करती हैं, वे भूतल को पवित्र बनाती हैं। उनकी रक्षा करनी चाहिए, उन्हें दूषित नहीं करना चाहिए।
**भावार्थ:** नदियाँ हमारे जीवन का आधार हैं जो हमें शुद्ध जल प्रदान करती हैं और पर्यावरण को स्वच्छ बनाती हैं। हमें नदियों को प्रदूषित करने के बजाय उनकी शुद्धता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
पर्वताः धारयन्ति धरां,
ददति धैर्यं च मानवे।
तेषां शोभा वर्धते,
यदा तैः सह सौहृदम्॥3॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'सौहार्दं प्रकृतेः शोभा' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में पर्वतों के महत्व और उनसे प्राप्त होने वाले गुणों का वर्णन किया गया है।
अनुवाद: पर्वत धरती को धारण करते हैं और मनुष्य को धैर्य प्रदान करते हैं। उनकी शोभा तब बढ़ती है जब उनके साथ सौहार्दपूर्ण संबंध होता है।
**भावार्थ:** पर्वत न केवल पृथ्वी को स्थिरता प्रदान करते हैं बल्कि हमें स्थिरता और धैर्य का पाठ भी सिखाते हैं। हमें पर्वतों का अनावश्यक दोहन नहीं करना चाहिए बल्कि उनके साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहिए।
पशवः पक्षिणश्चापि,
जगतः सुखदायकाः।
तेषां स्नेहं विधाय,
जीवनं कुरु सुंदरम्॥4॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'सौहार्दं प्रकृतेः शोभा' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में पशु-पक्षियों के महत्व और उनके प्रति प्रेमभाव रखने का संदेश दिया गया है।
अनुवाद: पशु और पक्षी संसार के सुखदाता हैं। उनके प्रति स्नेह रखकर जीवन को सुंदर बनाओ।
**भावार्थ:** पशु-पक्षी हमारे पर्यावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो हमारे जीवन को सुखद और संतुलित बनाते हैं। हमें इन प्राणियों के प्रति दया और प्रेम का भाव रखना चाहिए न कि उन्हें हानि पहुँचाना चाहिए।
यत्र सौहार्दं भवति,
प्रकृत्या सह मानवैः।
तत्रैव शोभा विद्यते,
शान्तिः चापि निरन्तरा॥5॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'सौहार्दं प्रकृतेः शोभा' नामक पाठ से लिया गया है। यह श्लोक पाठ के मुख्य भाव को प्रकट करता है।
अनुवाद: जहाँ मनुष्यों का प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध होता है, वहीं वास्तविक शोभा और निरंतर शांति विद्यमान होती है।
**भावार्थ:** प्रकृति और मनुष्य के बीच सद्भाव और सामंजस्य ही वास्तविक सुंदरता और शांति का कारण है। जब हम प्रकृति का दोहन करने के बजाय उसके साथ मित्रता का संबंध बनाए रखते हैं, तभी सच्चा सौंदर्य और शांति संभव है।
मुख्य बिंदु (Key Points)
- **प्रकृति संरक्षण:** पाठ में वृक्ष, नदी, पर्वत और पशु-पक्षियों के संरक्षण पर बल दिया गया है।
- **सौहार्द का महत्व:** मनुष्य और प्रकृति के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध ही वास्तविक शोभा का कारण है।
- **वृक्षों का योगदान:** (श्लोक 1) वृक्ष छाया, फल-फूल देकर हमारे जीवन को सुखद बनाते हैं।
- **नदियों की पवित्रता:** (श्लोक 2) नदियाँ जल शुद्धि करती हैं, उन्हें दूषित नहीं करना चाहिए।
- **पर्वतों की भूमिका:** (श्लोक 3) पर्वत धरती को स्थिरता प्रदान करते हैं और मनुष्य को धैर्य सिखाते हैं।
- **पशु-पक्षियों का महत्व:** (श्लोक 4) ये जीव हमारे पर्यावरण को संतुलित और सुखद बनाते हैं।
- **शांति का आधार:** (श्लोक 5) प्रकृति के साथ सामंजस्य ही सच्ची शांति और सुंदरता का कारण है।
व्याकरण-बिंदु (Grammar Points)
1. संधि-विच्छेद (Sandhi-Vichchhed)
- सौहार्दं = सु + हार्दम् (गुण संधि)
- प्रकृतेः = प्रकृतिः + इति (विसर्ग संधि)
- शोभा = शोभा + इति (संयोग)
- वृक्षाः = वृक्षाः + इति (संयोग)
- सुहृदः = सु + हृदः (गुण संधि)
- छायां = छायाम् + इति (संयोग)
- तर्पयन्ति = तृप् + यन्ति (सन्धि)
- पालयेम = पालयेम + इति (संयोग)
- नद्यः = नद्यः + इति (संयोग)
- शुद्धिं = शुद्धिम् + इति (संयोग)
2. समास-विग्रह (Samasa-Vigraha)
- **सौहार्दं:** सुहृद् + भाव (तद्धित समास)
- **प्रकृतेः शोभा:** प्रकृतेः शोभा यस्य सः (बहुव्रीहि समास)
- **सुखदाम्:** सुखं ददाति इति सा (उपपद तत्पुरुष)
- **भूतलम्:** भूः तलम् (कर्मधारय समास)
- **जगतः सुखदायकाः:** जगतः सुखं ददाति इति ते (उपपद तत्पुरुष)
- **निरन्तरा:** निर्गता अन्तरा यस्याः सा (बहुव्रीहि समास)
- **पशवः पक्षिणः च:** पशुपक्षिणः (द्वन्द्व समास)
- **शीतलां सुखदाम्:** शीतलां च सा सुखदा च (कर्मधारय समास)
3. प्रत्यय (Pratyaya)
- **ददति:** दा + लट् लकार (प्रथम पुरुष बहुवचन)
- **तर्पयन्ति:** तृप् + णिच् + लट् लकार (प्रथम पुरुष बहुवचन)
- **रक्षेम:** रक्ष् + विधिलिङ् (उत्तम पुरुष बहुवचन)
- **पालयेम:** पाल् + णिच् + विधिलिङ् (उत्तम पुरुष बहुवचन)
- **कुर्वन्ति:** कृ + लट् लकार (प्रथम पुरुष बहुवचन)
- **वर्धते:** वृध् + लट् लकार (प्रथम पुरुष एकवचन)
- **कुरु:** कृ + लोट् लकार (मध्यम पुरुष एकवचन)
- **भवति:** भू + लट् लकार (प्रथम पुरुष एकवचन)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)
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कः सर्वेषां सुहृदः भवति?
वृक्षाः
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काः भूतलं पावनं कुर्वन्ति?
नद्यः
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के धरां धारयन्ति?
पर्वताः
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कैः सह सौहृदं कृत्वा जीवनं सुंदरं भवति?
पशुपक्षिभिः
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यत्र प्रकृत्या सह सौहार्दं भवति तत्र किं विद्यते?
शान्तिः
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दें)
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वृक्षाः किं किं ददति?
वृक्षाः छायां शीतलां सुखदां फलानि पुष्पाणि च ददति।
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नद्यः कथं शुद्धिं ददति?
नद्यः स्वैः जलैः शुद्धिं ददति।
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पर्वताः किं किं कुर्वन्ति?
पर्वताः धरां धारयन्ति मानवे धैर्यं च ददति।
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पशुपक्षिणः किं कुर्वन्ति?
पशुपक्षिणः जगतः सुखदायकाः भवन्ति।
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प्रकृत्या सह सौहार्दं कुत्र भवति?
प्रकृत्या सह सौहार्दं यत्र भवति तत्र शोभा शान्तिः च भवति।
सन्धिं/सन्धिच्छेदं कुरुत (संधि/संधि विच्छेद करें)
- सौहार्दं = **सु + हार्दम्**
- प्रकृतेः = **प्रकृतिः + इति**
- वृक्षाः = **वृक्षाः + इति**
- सुहृदः = **सु + हृदः**
- छायां = **छायाम् + इति**
- तर्पयन्ति = **तृप् + यन्ति**
- पालयेम = **पालयेम + इति**
- नद्यः = **नद्यः + इति**
अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के पर्यायवाची शब्द पाठ से चुनकर लिखें)
- वृक्षः = **तरुः** (पाठ में प्रयुक्त नहीं पर सामान्य पर्याय)
- नदी = **सरित्** (पाठ में 'नदी' ही प्रयुक्त)
- पर्वतः = **गिरिः** (पाठ में 'पर्वत' ही प्रयुक्त)
- पशुः = **मृगः** (पाठ में 'पशु' ही प्रयुक्त)
- पक्षी = **विहङ्गः** (पाठ में 'पक्षी' ही प्रयुक्त)
- शान्तिः = **शमः** (पाठ में 'शान्ति' ही प्रयुक्त)
- सुखम् = **आनन्दः** (पाठ में 'सुख' ही प्रयुक्त)
अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखें)
- सौहार्दं × **द्वेषः**
- शोभा × **कुरूपता**
- शुद्धिः × **अशुद्धिः**
- सुखदम् × **दुःखदम्**
- धैर्यम् × **अधैर्यम्**
- सौहृदम् × **वैरम्**
रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (रेखांकित पद के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)
- **वृक्षाः** सर्वेषां सुहृदः भवन्ति।
**के** सर्वेषां सुहृदः भवन्ति?
- नद्यः **शुद्धिं** ददति।
नद्यः **किं** ददति?
- पर्वताः **धरां** धारयन्ति।
पर्वताः **काम्** धारयन्ति?
- पशुपक्षिणः **सुखदायकाः** भवन्ति।
पशुपक्षिणः **कीदृशाः** भवन्ति?
- प्रकृत्या सह **सौहार्दं** भवति।
प्रकृत्या सह **किम्** भवति?
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)