अध्याय 12: अन्योक्तयः (अन्य उक्तियाँ)
परिचय
कक्षा 10 संस्कृत (शेमुषी - द्वितीयो भागः) का यह अध्याय **'अन्योक्तयः'** संस्कृत साहित्य की एक विशेष काव्य शैली को प्रस्तुत करता है, जिसे **अन्योक्ति** कहते हैं। अन्योक्ति का अर्थ है - 'अन्य के प्रति कही गई उक्ति', यानी जहाँ किसी अप्रत्यक्ष वस्तु, व्यक्ति या घटना का वर्णन करके किसी नैतिक, सामाजिक या दार्शनिक सत्य को अभिव्यक्त किया जाता है। इन अन्योक्तियों में कोयल, हंस, मेघ, तालाब, सूर्य और हंस के माध्यम से मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं, गुणों और अवगुणों पर प्रकाश डाला गया है। यह पाठ छात्रों को जीवन के गूढ़ रहस्यों और नैतिक शिक्षाओं को समझने में मदद करता है।
---संस्कृत श्लोक और हिन्दी अनुवाद (Sanskrit Shlokas and Hindi Translation)
एकलः कोऽपि कोकिलः, नीरसेन यथा तथा।
मधुमासं यावद् तिष्ठ, निजं मौनं प्रसादय।
यावत् सन्ततिरुत्कृष्टा, सर्वेषां मनःप्रीतिदा॥1॥
संदर्भ: प्रस्तुत अन्योक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'अन्योक्तयः' नामक पाठ से ली गई है। इस श्लोक में कोयल के माध्यम से धैर्य और शुभ अवसर की प्रतीक्षा का महत्व बताया गया है।
अनुवाद: हे कोयल! (तुम्हारे लिए) नीरस (सूखे) समय में जैसे-तैसे (अपना समय) बिताओ। जब तक मधुर मास (वसंत ऋतु) न आए, अपनी चुप्पी (मौन) बनाए रखो। (तब) तक (तुम्हारे) उत्कृष्ट संतान (मधुर ध्वनि) सभी के मन को प्रसन्न करने वाली होगी।
**भावार्थ:** विपरीत परिस्थितियों में मौन और धैर्य धारण करना चाहिए। सही समय आने पर ही अपने गुणों का प्रदर्शन करना चाहिए, तभी वे प्रभावी और प्रशंसनीय होते हैं।
रे राजहंस! रम्यम् इदं सरोवरं, तेन राजते भवान्।
तस्मात् त्वदीयसंबन्धात्, शोभां गतः अयं सरः।
उपकारमपि त्वां विना, सोऽपि न कुर्यात्।॥2॥
संदर्भ: प्रस्तुत अन्योक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'अन्योक्तयः' नामक पाठ से ली गई है। इस श्लोक में हंस और सरोवर के माध्यम से एक श्रेष्ठ व्यक्ति और उसके स्थान के परस्पर संबंध का वर्णन किया गया है।
अनुवाद: हे राजहंस! यह सुंदर सरोवर तुमसे ही शोभायमान होता है। तुम्हारे संबंध से ही यह सरोवर शोभा को प्राप्त हुआ है। तुम्हारे बिना यह (सरोवर) भी उपकार (लाभदायक) नहीं हो सकता।
**भावार्थ:** जिस प्रकार हंस से सरोवर की शोभा बढ़ती है, उसी प्रकार श्रेष्ठ व्यक्ति के होने से ही किसी स्थान या कुल की गरिमा बढ़ती है। श्रेष्ठ व्यक्तियों का संबंध ही किसी स्थान को महिमामंडित करता है।
भ्रामन् भ्रमन् वा किं रे मरु! क्व गच्छसि? त्वं क्षीणोऽसि।
पश्य सरोवराणि शुष्कानि, जलानि च विरलानि।
तस्मात् त्वं मा गच्छ, मा गच्छ, मा गच्छ।॥3॥
संदर्भ: प्रस्तुत अन्योक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'अन्योक्तयः' नामक पाठ से ली गई है। इस श्लोक में बादल (मेघ) के माध्यम से उपकार करने वाले व्यक्ति को सही पात्र को दान देने का उपदेश दिया गया है।
अनुवाद: हे बादल! इधर-उधर भटकते हुए क्यों जा रहे हो? तुम तो स्वयं क्षीण (थोड़े जल वाले) हो गए हो। देखो, सरोवर सूख गए हैं, और जल भी (बहुत) कम है। इसलिए तुम मत जाओ, मत जाओ, मत जाओ।
**भावार्थ:** अपनी क्षमता कम होने पर भी व्यक्ति को व्यर्थ में भटकना या दान देना नहीं चाहिए। उसे केवल योग्य और सचमुच आवश्यकता वाले पात्रों को ही अपनी सीमित क्षमता के अनुसार देना चाहिए। बिना विचार किए दान देने से अपनी प्रतिष्ठा भी कम होती है।
नायन्ते परितः केऽपि, तडागाः तव सन्निधौ।
त्वत्तोऽधिकाः केऽपि न स्युः, जलदाः नैव सन्ति।
तस्मात् अत्रैव निवसेयं, यदि भद्रं तव स्यात्।॥4॥
संदर्भ: प्रस्तुत अन्योक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'अन्योक्तयः' नामक पाठ से ली गई है। इस श्लोक में तालाब के माध्यम से धैर्य और अपनी शक्ति पर विश्वास रखने का उपदेश दिया गया है।
अनुवाद: हे (तालाब)! तुम्हारे पास कोई अन्य तालाब नहीं लाए जाते। तुमसे अधिक कोई भी नहीं है। बादल (जल देने वाले) भी नहीं हैं। इसलिए मैं यहीं निवास करूँगा, यदि तुम्हारा कल्याण हो।
**भावार्थ:** व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य और स्थिति को जानना चाहिए। यदि वह शक्तिशाली और समर्थ है, तो उसे अपनी जगह पर स्थिर रहना चाहिए और किसी अन्य पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अपनी सामर्थ्य से ही दूसरों का भला होता है।
अतिसूक्ष्मं वापीं मा द्रक्ष्य, मा द्रक्ष्य च महान् सरो।
मा कुरु अपमानं, यदि तुच्छं भवत्सरः।
भवतो हि जलं पीत्वा, तृषार्तः न जीवति कश्चन।॥5॥
संदर्भ: प्रस्तुत अन्योक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'अन्योक्तयः' नामक पाठ से ली गई है। इस श्लोक में छोटे तालाब के माध्यम से किसी की हीनता को अपमानित न करने का उपदेश दिया गया है।
अनुवाद: (हे हंस)! छोटी बावड़ी (कुआँ) को मत देखो, और न ही विशाल सरोवर को मत देखो। यदि तुम्हारा सरोवर तुच्छ (छोटा) है, तो अपमान मत करो। तुम्हारे जल को पीकर कोई प्यासा जीवित नहीं रह पाता है।
**भावार्थ:** हमें किसी की छोटी या बड़ी स्थिति पर अभिमान या तिरस्कार नहीं करना चाहिए। महत्वपूर्ण यह है कि व्यक्ति दूसरों के लिए कितना उपयोगी है। अपनी सीमाएँ जानने वाला और उन सीमाओं में भी परोपकार करने वाला व्यक्ति प्रशंसनीय होता है।
कोकिलायाः मधुर ध्वनिः, भ्रमरस्य च गुञ्जनम्।
पुष्पस्य च सुगन्धं, यत् तेषां स्वभावतः।
तस्मात् तेषां प्रशंसा स्यात्, न हि केवलं रूपतः।॥6॥
संदर्भ: प्रस्तुत अन्योक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'अन्योक्तयः' नामक पाठ से ली गई है। इस श्लोक में कोयल, भौंरा और पुष्प के माध्यम से गुणों के महत्व पर बल दिया गया है, न कि केवल बाहरी रूप पर।
अनुवाद: कोयल की मधुर ध्वनि, और भौंरे का गुंजन, तथा पुष्प की सुगंध, यह सब उनका स्वाभाविक गुण है। इसलिए उनकी प्रशंसा उनके गुणों से होती है, न कि केवल उनके रूप से।
**भावार्थ:** व्यक्ति की वास्तविक पहचान उसके गुणों और कर्मों से होती है, न कि उसके बाहरी सौंदर्य या दिखावे से। गुणवान व्यक्ति ही समाज में आदर और प्रशंसा पाता है।
मुख्य बिंदु (Key Points)
- **अन्योक्ति का स्वरूप:** पाठ अन्योक्ति काव्य शैली का परिचय देता है, जहाँ अप्रत्यक्ष रूप से उपदेश दिए जाते हैं।
- **धैर्य और समय का महत्व:** (श्लोक 1: कोयल) सही समय की प्रतीक्षा और धैर्य से ही सफलता मिलती है।
- **गुणी व्यक्ति का प्रभाव:** (श्लोक 2: हंस) गुणी व्यक्ति जहाँ रहता है, उस स्थान को भी गौरवान्वित करता है।
- **सावधान परोपकार:** (श्लोक 3: मेघ) अपनी क्षमता को जानकर ही दूसरों की सहायता करनी चाहिए, और सही पात्र को ही देना चाहिए।
- **आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान:** (श्लोक 4: तालाब) अपनी सामर्थ्य पर विश्वास रखना चाहिए और अनावश्यक रूप से दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
- **किसी का अपमान न करें:** (श्लोक 5: छोटी बावड़ी) किसी की छोटी स्थिति या सीमित क्षमता को देखकर उसका अनादर नहीं करना चाहिए, क्योंकि हर कोई अपनी जगह पर उपयोगी होता है।
- **रूप से अधिक गुण का महत्व:** (श्लोक 6: कोयल, भौंरा, पुष्प) व्यक्ति का वास्तविक मूल्य उसके गुणों में होता है, न कि उसके बाहरी स्वरूप में।
व्याकरण-बिंदु (Grammar Points)
1. संधि-विच्छेद (Sandhi-Vichchhed)
- कोऽपि = कः + अपि (विसर्ग संधि, पूर्वरूप)
- नीरसेन = निः + रसेन (विसर्ग संधि)
- यावत् सन्ततिरुत्कृष्टा = यावत् + सन्ततिः + उत्कृष्टा (व्यंजन, विसर्ग, गुण संधि)
- मनःप्रीतिदा = मनसः + प्रीतिदा (विसर्ग संधि)
- रम्यम् इदं = रम्यम् + इदम् (व्यंजन संधि)
- त्वदीयसंबन्धात् = त्वदीय + संबन्धात् (दीर्घ संधि)
- कश्चन = कः + चन (विसर्ग संधि)
- मा गच्छेत = मा + गच्छेत (संयोग)
- अत्रैव = अत्र + एव (वृद्धि संधि)
- यत् तेषां = यत् + तेषाम् (व्यंजन संधि)
- न हि = न + हि (संयोग)
- प्रसन्नात्मना अवदत् = प्रसन्नात्मना + अवदत् (सवर्ण दीर्घ संधि)
- अधुना भवता = अधुना + भवता (संयोग)
2. समास-विग्रह (Samasa-Vigraha)
- **मधुमासं:** मधोः मासः (षष्ठी तत्पुरुष) (वसंत ऋतु)
- **मनःप्रीतिदा:** मनसः प्रीतिं ददाति इति सा (षष्ठी तत्पुरुष, उपपद तत्पुरुष)
- **राजहंस:** राजा हंसः इव (कर्मधारय) / राजा चासौ हंसः च (कर्मधारय)
- **जलदाः:** जलं ददन्ति इति ते (उपपद तत्पुरुष) (बादल)
- **तुल्यवत्सला:** तुल्यं वत्सलं यस्याः सा (बहुव्रीहि)
- **स्वभावतः:** स्वस्य भावः तस्मात् (षष्ठी तत्पुरुष)
- **तृषार्तः:** तृषायाम् आर्तः (सप्तमी तत्पुरुष)
- **महान् सरोवरः:** महान् च असौ सरोवरः च (कर्मधारय)
3. प्रत्यय (Pratyaya)
- **भ्रामन्:** भ्रम् + शतृ (शतृ प्रत्यय)
- **गच्छसि:** गम् + लट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन (क्रियापद)
- **तिष्ठ:** स्था + लोट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन (क्रियापद)
- **कृतम्:** कृ + क्त (क्त प्रत्यय)
- **पीत्वा:** पा + क्त्वा (क्त्वा प्रत्यय)
- **आदाय:** आ + दा + ल्यप् (ल्यप् प्रत्यय)
- **विज्ञाय:** वि + ज्ञा + ल्यप् (ल्यप् प्रत्यय)
- **श्रुत्वा:** श्रु + क्त्वा (क्त्वा प्रत्यय)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)
-
कः नीरसेन यथा तथा तिष्ठति?
कोकिलः
-
राजहंसः केन राजते?
सरोवरेण
-
कस्य गुञ्जनं भवति?
भ्रमरस्य
-
मा कुरु अपमानं, यदि तुच्छं भवत्सरः। कः कं ब्रवीति?
हंसः वापिं ब्रवीति। (अथवा, कविः लघुजनम् प्रति)
-
तृषार्तः कस्य जलं पीत्वा न जीवति?
वाप्याः (छोटी बावड़ी का)
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दें)
-
कः मधुमासं यावद् मौनं प्रसादयति?
कोकिलः मधुमासं यावद् मौनं प्रसादयति।
-
राजहंसस्य कया सरोवरस्य शोभा भवति?
राजहंसस्य संबन्धात् सरोवरस्य शोभा भवति।
-
मरुः कुत्र कुत्र भ्राम्यति?
मरुः सर्वत्र (इधर-उधर) भ्राम्यति।
-
जलदाः किं कुर्वन्ति?
जलदाः जलं ददन्ति।
-
पुष्पस्य का विशेषता अस्ति?
पुष्पस्य सुगन्धः विशेषता अस्ति।
सन्धिं/सन्धिच्छेदं कुरुत (संधि/संधि विच्छेद करें)
- कोऽपि = **कः + अपि**
- नीरसेन = **निः + रसेन**
- यथा तथा = **यथा + तथा**
- मनःप्रीतिदा = **मनसः + प्रीतिदा**
- सन्ततिरुत्कृष्टा = **सन्ततिः + उत्कृष्टा**
- अत्रैव = **अत्र + एव**
- त्वदीयसंबन्धात् = **त्वदीय + संबन्धात्**
- मा गच्छेत = **मा + गच्छेत**
अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के पर्यायवाची शब्द पाठ से चुनकर लिखें)
- कोकिलः = **पिकः** (पाठ में पिक शब्द का प्रयोग सीधे नहीं है, पर यह कोयल का सामान्य पर्यायवाची है)
- सरोवरः = **सरः, तडागः**
- भ्रमरः = **मधुकरः** (पाठ में भ्रमर ही प्रयुक्त है)
- नीरम् = **जलम्**
- सूर्यः = **दिवाकरः** (पाठ में 'सूर्य' के संदर्भ में सीधा नहीं है, पर 'प्रकाश' के भाव से संबंधित है)
- मेघः = **जलदः**
- अहम् = **अस्मि** (क्रियापद, भाव से)
अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखें)
- मधुरम् × **नीरसम्**
- स्थूलम् × **सूक्ष्मम्**
- श्रेष्ठः × **तुच्छम्** (हीनः)
- प्रकाशः × **अन्धकारः** (पाठ में सीधा नहीं, पर भाव से)
- उत्कृष्टा × **निकृष्टा**
- अल्पम् × **भूरि** (अधिक)
रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (रेखांकित पद के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)
- **कोकिलः** मधुमासं यावद् मौनं प्रसादयति।
**कः** मधुमासं यावद् मौनं प्रसादयति?
- **राजहंसस्य** संबन्धात् सरोवरस्य शोभा भवति।
**कस्य** संबन्धात् सरोवरस्य शोभा भवति?
- मेघः **क्षीणः** अस्ति।
मेघः **कीदृशः** अस्ति?
- **पुष्पस्य** सुगन्धं प्रशंसन्ति।
**कस्य** सुगन्धं प्रशंसन्ति?
- अतिसूक्ष्मं **वापीं** मा द्रक्ष्य।
अतिसूक्ष्मं **काम्** मा द्रक्ष्य?
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)