अध्याय 11: प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद् (प्राणों से भी प्यारा मित्र)
परिचय
कक्षा 10 संस्कृत (शेमुषी - द्वितीयो भागः) का यह अध्याय **'प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद्'** सच्ची मित्रता के महत्व को दर्शाता है। यह पाठ हमें बताता है कि एक सच्चा मित्र जीवन में कितना महत्वपूर्ण होता है और कैसे वह प्राणों से भी अधिक प्रिय हो सकता है। इस अध्याय में मित्रता के विभिन्न पहलुओं, सच्चे मित्र के गुणों और मित्रता के महत्व को विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से समझाया गया है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में मित्रता को बहुत महत्व दिया जाता था और इसे जीवन का एक अनिवार्य अंग माना जाता था।
---संस्कृत श्लोक और हिन्दी अनुवाद (Sanskrit Shlokas and Hindi Translation)
प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद्, यः सदा हितकारकः।
सुखे दुःखे च संविभक्ता, स मित्रं परमं मतम्॥1॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में सच्चे मित्र की परिभाषा दी गई है।
अनुवाद: जो मित्र प्राणों से भी अधिक प्रिय है, जो सदा हितकारी है, सुख-दुःख में समान रूप से साथ देने वाला है, वही परम मित्र माना जाता है।
**भावार्थ:** सच्चा मित्र वही है जो हर परिस्थिति में साथ देता है, जिसका स्नेह प्राणों से भी अधिक होता है और जो हमेशा हमारे हित की बात सोचता है।
एकाकी न सुखं भुङ्क्ते, न दुःखं चापि विन्दति।
सुहृदां सङ्गमात् सर्वं, सुखदुःखं विभज्यते॥2॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में मित्रों के साथ की महत्ता बताई गई है।
अनुवाद: अकेला व्यक्ति न तो सुख भोग पाता है और न ही दुःख पाता है। मित्रों के साथ मिलकर ही सभी सुख-दुःख बाँटे जाते हैं।
**भावार्थ:** मानव जीवन में मित्रों का होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि वे ही हमारे सुख-दुःख को सार्थक बनाते हैं। अकेलेपन में जीवन नीरस हो जाता है।
धनानि जीवितं चैव, परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेत्।
स्निग्धभावं न जह्यात्, सर्वस्वं तस्य रक्षति॥3॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में मित्र के लिए त्याग की भावना का वर्णन है।
अनुवाद: धन और जीवन को भी दूसरों के हित के लिए त्याग देना चाहिए, किंतु स्नेहभाव को नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि वही सब कुछ बचा लेता है।
**भावार्थ:** सच्ची मित्रता में त्याग की भावना होती है, परंतु स्नेह का बंधन कभी नहीं टूटना चाहिए क्योंकि यही संबंधों को सुरक्षित रखता है।
सुहृदः सुहृदो ज्ञात्वा, सुहृद्भिः सह संवसेत्।
दुर्जनं परिहर्यैव, सज्जनं शरणं व्रजेत्॥4॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में अच्छे और बुरे मित्रों के बारे में बताया गया है।
अनुवाद: सच्चे मित्रों को पहचानकर उनके साथ रहना चाहिए। दुर्जनों से दूर रहकर सज्जनों की शरण में जाना चाहिए।
**भावार्थ:** मनुष्य को चाहिए कि वह अच्छे मित्रों को पहचाने और उनके साथ समय बिताए, जबकि बुरे लोगों से दूर रहे।
यः सुहृन्न विमुञ्चति, विपदि प्रीतिमान् सदा।
स एव पुरुषः श्रेष्ठः, स एव हि मम प्रियः॥5॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में विपत्ति में साथ देने वाले मित्र की महिमा बताई गई है।
अनुवाद: जो मित्र विपत्ति में भी साथ नहीं छोड़ता, जो सदा प्रेमभाव रखता है, वही श्रेष्ठ पुरुष है और वही मेरा प्रिय है।
**भावार्थ:** सच्चा मित्र वही है जो मुसीबत के समय में भी साथ नहीं छोड़ता और हमेशा प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है।
सुहृदां हृदयान्येक, दुःखितानां समानि च।
तेषां संसर्गमात्रेण, सुखं जीवितमुत्तमम्॥6॥
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'प्राणभ्योऽपि प्रियः सुहृद्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में मित्रों के हृदय की एकता का वर्णन है।
अनुवाद: सच्चे मित्रों के हृदय एक समान होते हैं और दुःखी होने पर भी समान भाव रखते हैं। उनके संसर्ग मात्र से ही जीवन उत्तम सुखमय हो जाता है।
**भावार्थ:** सच्चे मित्रों के बीच हृदय की एकता होती है और उनका साथ ही जीवन को सुखमय बना देता है।
मुख्य बिंदु (Key Points)
- **सच्ची मित्रता की परिभाषा:** प्राणों से भी प्रिय, हितकारी और सुख-दुःख में साथ देने वाला (श्लोक 1)
- **मित्रों का महत्व:** अकेले जीवन नीरस, मित्रों के साथ सुख-दुःख बाँटने योग्य (श्लोक 2)
- **त्याग की भावना:** धन-जीवन का त्याग कर सकें पर स्नेह न छोड़ें (श्लोक 3)
- **मित्र चयन:** सज्जनों की संगति, दुर्जनों से दूरी (श्लोक 4)
- **विपत्ति में साथ:** संकट में न छोड़ने वाला मित्र ही श्रेष्ठ (श्लोक 5)
- **हृदय की एकता:** सच्चे मित्रों के भाव समान (श्लोक 6)
- **प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण:** मित्रता को जीवन का अनिवार्य अंग मानना
- **नैतिक शिक्षा:** सच्ची मित्रता का महत्व और उसके गुण
व्याकरण-बिंदु (Grammar Points)
1. संधि-विच्छेद (Sandhi-Vichchhed)
- प्राणभ्योऽपि = प्राणभ्यः + अपि (विसर्ग संधि)
- सुहृद् = सु + हृद् (स्वर संधि)
- हितकारकः = हित + कारकः (व्यंजन संधि)
- संविभक्ता = सम् + विभक्ता (व्यंजन संधि)
- एकाकी = एक + अकी (सवर्ण दीर्घ संधि)
- भुङ्क्ते = भुज् + ते (व्यंजन संधि)
- सङ्गमात् = सङ्गम + आत् (व्यंजन संधि)
- विभज्यते = वि + भज्यते (व्यंजन संधि)
- परार्थे = पर + अर्थे (सवर्ण दीर्घ संधि)
- उत्सृजेत् = उत् + सृजेत् (व्यंजन संधि)
2. समास-विग्रह (Samasa-Vigraha)
- **प्राणभ्योऽपि:** प्राणेभ्यः + अपि (षष्ठी तत्पुरुष)
- **हितकारकः:** हितं करोति इति (उपपद तत्पुरुष)
- **सुखदुःखं:** सुखं च दुःखं च (द्वन्द्व समास)
- **परार्थे:** परस्य अर्थः (षष्ठी तत्पुरुष)
- **स्निग्धभावं:** स्निग्धः भावः (कर्मधारय समास)
- **सर्वस्वं:** सर्वं स्वम् (कर्मधारय समास)
- **दुर्जनं:** दुः + जनः (नञ् तत्पुरुष)
- **सज्जनं:** सत् + जनः (कर्मधारय समास)
- **प्रीतिमान्:** प्रीतिः अस्ति अस्य (बहुव्रीहि समास)
- **हृदयान्येक:** हृदयानि एकानि (कर्मधारय समास)
3. प्रत्यय (Pratyaya)
- **भुङ्क्ते:** भुज् + लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- **विन्दति:** विद् + लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- **विभज्यते:** वि + भज् + यक् प्रत्यय (कर्मणि प्रयोग)
- **उत्सृजेत्:** उत् + सृज् + विधिलिङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- **जह्यात्:** हा + विधिलिङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- **रक्षति:** रक्ष् + लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- **ज्ञात्वा:** ज्ञा + क्त्वा प्रत्यय
- **संवसेत्:** सम् + वस् + विधिलिङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- **व्रजेत्:** व्रज् + विधिलिङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- **विमुञ्चति:** वि + मुच् + लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)
-
कः प्राणभ्योऽपि प्रियः उच्यते?
सुहृद्
-
कस्य संसर्गमात्रेण जीवितमुत्तमं भवति?
सुहृदाम्
-
किं परिहर्य सज्जनं शरणं व्रजेत्?
दुर्जनं
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कः विपदि अपि प्रीतिं न त्यजति?
सुहृद्
-
कीदृशं जीवितं उत्तमं उच्यते?
सुखं
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दें)
-
सुहृदः कीदृशः भवति?
सुहृदः प्राणभ्योऽपि प्रियः, सदा हितकारकः, सुखे दुःखे च संविभक्ता भवति।
-
एकाकी किं न भुङ्क्ते?
एकाकी न सुखं भुङ्क्ते, न दुःखं चापि विन्दति।
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प्राज्ञः किं उत्सृजेत्?
प्राज्ञः धनानि जीवितं चैव परार्थे उत्सृजेत्।
-
सुहृदां हृदयानि कीदृशानि भवन्ति?
सुहृदां हृदयान्येकं, दुःखितानां समानि च भवन्ति।
-
श्रेष्ठः पुरुषः कीदृशः भवति?
श्रेष्ठः पुरुषः यः सुहृन्न विमुञ्चति, विपदि प्रीतिमान् सदा भवति।
सन्धिं/सन्धिच्छेदं कुरुत (संधि/संधि विच्छेद करें)
- प्राणभ्योऽपि = **प्राणभ्यः + अपि**
- सुहृद् = **सु + हृद्**
- हितकारकः = **हित + कारकः**
- संविभक्ता = **सम् + विभक्ता**
- एकाकी = **एक + अकी**
- भुङ्क्ते = **भुज् + ते**
- सङ्गमात् = **सङ्गम + आत्**
- विभज्यते = **वि + भज्यते**
- परार्थे = **पर + अर्थे**
- उत्सृजेत् = **उत् + सृजेत्**
अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के पर्यायवाची शब्द पाठ से चुनकर लिखें)
- सुहृद् = **मित्रम्**
- प्राणाः = **जीवितम्**
- हितकारकः = **कल्याणकृत्**
- संविभक्ता = **सहभागी**
- एकाकी = **अकेलः**
- दुर्जनः = **खलः**
- सज्जनः = **साधुः**
अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखें)
- प्रियः × **अप्रियः**
- सुखं × **दुःखम्**
- हितकारकः × **अहितकारकः**
- सुहृद् × **दुर्हृद्**
- सज्जनः × **दुर्जनः**
- प्रीतिमान् × **विरक्तः**
- उत्तमम् × **अधमम्**
रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (रेखांकित पद के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)
- **प्राणभ्योऽपि** प्रियः सुहृद्।
**कस्मात्** प्रियः सुहृद्?
- सुहृदः **हितकारकः** भवति।
सुहृदः **कीदृशः** भवति?
- एकाकी न **सुखं** भुङ्क्ते।
एकाकी न **किम्** भुङ्क्ते?
- सुहृद्भिः सह **संवसेत्**।
सुहृद्भिः सह **किं** कुर्यात्?
- स एव **मम** प्रियः।
स एव **कस्य** प्रियः?
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)