अध्याय 1: शुचिपर्यावरणम् (स्वच्छ पर्यावरण)

परिचय

कक्षा 10 संस्कृत (शेमुषी - द्वितीयो भागः) का यह अध्याय **'शुचिपर्यावरणम्'** आधुनिक जीवनशैली के कारण बढ़ते प्रदूषण और उसके हानिकारक प्रभावों पर प्रकाश डालता है, और एक स्वच्छ तथा स्वस्थ पर्यावरण की आवश्यकता पर जोर देता है। यह पाठ पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर समस्या और मानव जीवन पर इसके नकारात्मक प्रभावों को दर्शाता है। श्लोकों के माध्यम से कवि हरिदत्त शर्मा ने महानगरीय जीवन की व्यस्तता और प्रदूषण से उत्पन्न हुई विकट स्थिति का वर्णन किया है और हमें शुद्ध पर्यावरण की ओर लौटने का आह्वान किया है।

---

श्लोकों का ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद (Shlokas with Reference and Hindi Translation)

दुर्वाहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥1॥

संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'शुचिपर्यावरणम्' नामक पाठ से लिया गया है। इस पाठ में महानगरीय जीवन में बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के प्रति चिंता व्यक्त की गई है।

अनुवाद: इस संसार में (अत्र) जीवन (जीवितं) कठिन (दुर्वाहम) हो गया है। प्रकृति ही (प्रकृतिरेव) एकमात्र शरण (शरणम्) है। (अतः) स्वच्छ पर्यावरण (शुचि-पर्यावरणम्) ही उपाय है।

महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।
मनः शोषयत् तनुः पेषयत् भ्रमति सदा वक्रम्।
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥2॥

संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'शुचिपर्यावरणम्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में महानगरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण उत्पन्न भयावह स्थिति का वर्णन किया गया है।

अनुवाद: महानगरों के मध्य (महानगरमध्ये) दिन-रात (अहनिशं) चलता हुआ लोहे का पहिया (कालायसचक्रम्) मन को सुखाता हुआ (मनः शोषयत्) और शरीर को पीसता हुआ (तनुः पेषयत्) सदा टेढ़ा (वक्रम्) घूमता है। इसके (अमुना) भयंकर (दुर्दान्तैः) दाँतों से (दशनैः) मनुष्यों का विनाश (जनग्रसनम्) न हो जाए (स्यान्नैव)। (अतः) स्वच्छ पर्यावरण (शुचि-पर्यावरणम्) ही उपाय है।

कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्।
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥3॥

संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'शुचिपर्यावरणम्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में वाहनों से होने वाले प्रदूषण और भीड़भाड़ का वर्णन किया गया है।

अनुवाद: सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ (शतशकटीयानम्) काजल सा मैला (कज्जलमलिनं) धुआँ (धूमं) छोड़ती हैं (मुञ्चति)। रेलगाड़ियों की पंक्ति (वाष्पयानमाला) ध्वनि करती हुई (ध्वानम् वितरन्ती) दौड़ रही है (संधावति)। वाहनों की पंक्तियाँ (यानानां पङ्क्तयः हि) वास्तव में (हि) अनगिनत (अनन्ताः) हैं, जिससे चलना (संसरणम्) कठिन (कठिनं) हो गया है। (अतः) स्वच्छ पर्यावरण (शुचि-पर्यावरणम्) ही उपाय है।

वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलम् जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्।
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धिकरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥4॥

संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'शुचिपर्यावरणम्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में वायु, जल और खाद्य पदार्थों में व्याप्त प्रदूषण का वर्णन किया गया है।

अनुवाद: वायुमंडल (वायुमण्डलं) बहुत अधिक (भृशं) दूषित (दूषितं) हो गया है। जल (जलम्) निर्मल (निर्मलम्) नहीं है (न हि)। खाद्य पदार्थ (भक्ष्यं) बुरी वस्तुओं से (कुत्सितवस्तुमिश्रितं) मिश्रित हैं। पृथ्वी की सतह (धरातलम्) मैली (समलं) हो गई है। संसार में (जगति तु) बाहर (बहिः) और भीतर (अन्तः) बहुत अधिक (बहु) शुद्धिकरण (शुद्धिकरणम्) करना आवश्यक है (करणीयं)। (अतः) स्वच्छ पर्यावरण (शुचि-पर्यावरणम्) ही उपाय है।

कञ्चित्कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम्।
कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥5॥

संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'शुचिपर्यावरणम्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि महानगरीय जीवन से दूर प्रकृति के शांत वातावरण में जाने की इच्छा व्यक्त कर रहा है।

अनुवाद: मुझे (माम्) कुछ समय के लिए (कञ्चित्कालं) इस नगर से (अस्मात् नगरात्) बहुत दूर (बहुदूरम्) ले चलो (नय)। मैं (अहं) गाँव की सीमा पर (ग्रामान्ते) झरने (निर्झर), नदी (नदी) और पानी के तालाब (पयःपूरम्) को देखना चाहता हूँ (प्रपश्यामि)। जंगल में (कान्तारे) भी मेरा (मे) एक क्षण के लिए (क्षणमपि) घूमना (सञ्चरणम्) हो जाए (स्यात्)। (अतः) स्वच्छ पर्यावरण (शुचि-पर्यावरणम्) ही उपाय है।

हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसुमावलिः समीरचलिता स्यान्मे वरणीया।
नवमालिका रसाल मिलिता रुचिरं संगमनम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥6॥

संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'शुचिपर्यावरणम्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है और प्रकृति से जुड़ने का आह्वान किया गया है।

अनुवाद: हरे-भरे वृक्षों की (हरिततरूणां) और सुंदर लताओं की (ललितलतानां) सुंदर माला (माला रमणीया) (होनी चाहिए)। हवा से हिलती हुई (समीरचलिता) फूलों की पंक्ति (कुसुमावलिः) मेरे लिए (मे) चुनने योग्य (वरणीया) हो (स्यात्)। नवमालिका (एक प्रकार का चमेली का फूल) आम से (रसाल) मिली हुई (मिलिता) सुंदर संगम (रुचिरं संगमनम्) बनाती है। (अतः) स्वच्छ पर्यावरण (शुचि-पर्यावरणम्) ही उपाय है।

अयि बन्धो! खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशम्।
पुर-कलरव-सम्मोहित-जन-धृत-सुख-सन्देशम्।
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥7॥

संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी - द्वितीयो भागः' के 'शुचिपर्यावरणम्' नामक पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि नगर के शोरगुल से दूर पक्षियों के कलरव वाले वन प्रदेश में जाने का आग्रह कर रहा है।

अनुवाद: हे मित्र (अयि बन्धो)! पक्षियों के समूह के कलरव से (खगकुलकलरव) गुंजित वन प्रदेश में (गुञ्जितवनदेशम्) चलो। नगर के शोरगुल से (पुर-कलरव) भ्रमित हुए (सम्मोहित) लोगों के लिए (जन-धृत) सुख का संदेश (सुख-सन्देशम्) धारण करो। चकाचौंध भरी दुनिया (चाकचिक्यजालं) हमारे जीवन के रस का (जीवितरसहरणम्) हरण न करे (नो कुर्यात्)। (अतः) स्वच्छ पर्यावरण (शुचि-पर्यावरणम्) ही उपाय है।

---

मुख्य बिंदु (Key Points)

---

व्याकरण-बिंदु (Grammar Points)

1. संधि-विच्छेद (Sandhi-Vichchhed)

2. समास-विग्रह (Samasa-Vigraha)

3. प्रत्यय (Pratyaya)

---

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)

  1. अत्र जीवितं कीदृशं जातम्?

    दुर्वाहम

  2. अहनिशं महानगरमध्ये किं चलति?

    कालायसचक्रम्

  3. कुत्सितवस्तुमिश्रितं किम् अस्ति?

    भक्ष्यम्

  4. अहं कस्मै जीवनाय कामये?

    मानवाय

  5. केषां माला रमणीया?

    हरिततरूणां ललितलतानाम्

पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर दें)

  1. कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति?

    कविः ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरं प्रपश्यन्, कान्तारे क्षणमपि सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति।

  2. स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?

    स्वस्थजीवनाय शुचि-पर्यावरणे भ्रमणीयम्।

  3. अन्ते कविः काम् कामनां करोति?

    अन्ते कविः कामनां करोति यत् चाकचिक्यजालं जीवितरसहरणं न कुर्यात्, अपितु स्वच्छं पर्यावरणं स्यात्।

  4. प्रदूषणकारणानि कानि सन्ति?

    प्रदूषणकारणानि सन्ति - महानगरेषु चलत् कालायसचक्रम्, शतशकटीयानैः मुञ्चमानं कज्जलमलिनं धूमम्, वाष्पयानमालायाः ध्वानम्, कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यम्, समलं धरातलम् च।

  5. कविः किमर्थं प्रकृतिः शरणम् इति मन्यते?

    कविः मन्यते यत् महानगरेषु जीवितं दुर्वाहम जातम् अस्ति, वायुमण्डलं भृशं दूषितं, जलं च निर्मलम् न अस्ति। अतः एतेभ्यः दोषेभ्यः मुक्तये प्रकृतिरेव शरणम् अस्ति।

सन्धिं/सन्धिच्छेदं कुरुत (संधि/संधि विच्छेद करें)

  1. प्रकृतिः + एव = **प्रकृतिरेव**
  2. स्यात् + न + एव = **स्यान्नैव**
  3. हि + अनन्ताः = **ह्यनन्ताः**
  4. बहिः + अन्तः + जगति = **बहिरन्तर्जगति**
  5. अस्मात् + नगरात् = **अस्मान्नगरात्**
  6. सञ्चरणम् = सम् + चरणम्
  7. धूमम् + मुञ्चति = धूमं मुञ्चति
  8. जगत् + तु = जगत्तु
  9. च + एव = चैव

अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के पर्यायवाची शब्द पाठ से चुनकर लिखें)

  1. सलिलम् = **जलम्**
  2. आम्रम् = **रसालम्**
  3. वनम् = **कान्तारम्**
  4. शरीरम् = **तनुः**
  5. कठिनम् = **दुर्वाहम**
  6. शृगालः = **(पाठ में नहीं है, शायद 'काकः' या 'खगः' हो, पर यहाँ 'खग' उपयुक्त)**
  7. पषाणः = **अश्म** (श्लोक में नहीं है, लेकिन सामान्यतः 'पाषाण' का पर्याय 'अश्म' होता है)

टिप्पणी: प्रश्न 25 और 26 के पर्यायवाची शब्द सीधे पाठ में उपलब्ध नहीं हैं, हालाँकि 'खग' (पक्षी) श्लोक में है, जो 'शृगाल' (सियार) का पर्याय नहीं है। 'पाषाण' (पत्थर) के लिए पाठ में सीधा पर्याय नहीं है, लेकिन 'अश्म' सामान्य संस्कृत में इसका पर्याय है। यह संभव है कि ये प्रश्न पाठ से संबंधित न होकर सामान्य संस्कृत ज्ञान पर आधारित हों, या पाठ में कुछ अप्रत्यक्ष संदर्भ हो।

अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत (निम्नलिखित पदों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखें)

  1. सुकरम् × **दुर्वाहम**
  2. दूषितम् × **शुचि/निर्मलम्**
  3. गृह्णन्ती × **मुञ्चति**
  4. निर्मलम् × **समलम्**
  5. दानवाय × **मानवाय**

उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु प्रकृति-प्रत्ययं विभागं कुरुत (उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय को अलग करें)

उदाहरण: सञ्चरणम् = सम् + चर् + ल्युट्

  1. दुर्वाहम = दुः + वह् + अनीयर्
  2. दूषितम् = दूष् + क्त
  3. करणीयम् = कृ + अनीयर्
  4. भक्ष्यम् = भक्ष् + यत् (या भुज + ण्यत्)
  5. रमणीयम् = रम् + अनीयर्
  6. प्रेषयत् = प्र + इष् + णिच् + शतृ (या पिष् + णिच् + शतृ)
  7. मिलिता = मिल् + क्त + टाप्

विशेषण-विशेष्य मेलनम् कुरुत (विशेषण-विशेष्य का मिलान करें)

विशेषण विशेष्य
खगकुलकलरव वनदेशम्
पिष्टम् कान्तारे
समलम् धरातलम्
रमणीया माला
दुर्दान्तैः दशनैः
शुचि पर्यावरणम्

**सही मिलान:**

विशेषण विशेष्य
**खगकुलकलरव** **वनदेशम्**
**समलम्** **धरातलम्**
**रमणीया** **माला**
**दुर्दान्तैः** **दशनैः**
**शुचि** **पर्यावरणम्**
(टिप्पणी: 'पिष्टम्' और 'कान्तारे' का यहाँ सीधा मिलान नहीं है। 'पिष्टम्' किसी और संदर्भ में विशेषण हो सकता है, जबकि 'कान्तारे' एक स्थानवाचक पद है।)

अधोलिखितानां वाक्यानां निर्देशानुसारं वाच्यपरिवर्तनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों का निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन करें)

  1. **कविः प्रकृतिः शरणम् इति मन्यते।** (कर्मवाच्ये)

    कविना प्रकृतिः शरणम् इति मन्यते।

  2. **अहं वृक्षान् रोपयामि।** (कर्मवाच्ये)

    मया वृक्षाः रोप्यन्ते।

  3. **मया हि अनन्ताः पङ्क्तयः दृश्यन्ते।** (कर्तृवाच्ये)

    अहं हि अनन्ताः पङ्क्तयः पश्यामि।

  4. **छात्राः विज्ञानस्य प्रदर्शनीं पश्यन्ति।** (कर्मवाच्ये)

    छात्रैः विज्ञानस्य प्रदर्शनी दृश्यते।

  5. **जनैः जलं निर्मलम् न लभ्यते।** (कर्तृवाच्ये)

    जनाः जलं निर्मलम् न लभन्ते।

रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (रेखांकित पद के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)

  1. **शक्तियानम्** कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।

    **किं** कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति?

  2. उद्याने **पक्षिणाम्** कलरवं चेतः प्रसादयति।

    उद्याने **केषाम्** कलरवं चेतः प्रसादयति?

  3. पाषाणी सभ्यतायां लतातरुगुल्माः **प्रस्तरतले** पिष्टाः सन्ति।

    पाषाणी सभ्यतायां लतातरुगुल्माः **कुत्र** पिष्टाः सन्ति?

  4. महानगरेषु **वाहनानाम्** अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति।

    महानगरेषु **केषाम्** अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति?

  5. प्रकृत्याः सन्निधौ **वास्तविकं** सुखं विद्यते।

    प्रकृत्याः सन्निधौ **कीदृशं** सुखं विद्यते?

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)