अध्याय 3: लखनवी अंदाज़
यशपाल
परिचय
‘लखनवी अंदाज़’ यशपाल द्वारा लिखी गई एक व्यंग्यात्मक कहानी है। यह कहानी दिखावे और कृत्रिमता से भरे जीवन शैली पर कटाक्ष करती है। लेखक इस कहानी के माध्यम से ऐसे लोगों पर व्यंग्य करते हैं जो अपनी झूठी शान और नवाबी अंदाज़ को बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपनी स्वाभाविक ज़रूरतों को भी नकारना पड़े। कहानी में नवाब साहब के खीरा खाने के अनूठे अंदाज़ का वर्णन कर समाज की दिखावटीपन की प्रवृत्ति को उजागर किया गया है।
कहानी का सारांश
कहानी की शुरुआत में लेखक (यशपाल) ट्रेन की सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करने के लिए चढ़ते हैं, क्योंकि वे भीड़ से बचकर अपनी नई कहानी के विषय में सोचना चाहते थे। उन्होंने सोचा कि भीड़ से दूर एकांत में बैठकर कुछ नया लिख पाएंगे। जब वे डिब्बे में पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ पहले से ही एक सज्जन बैठे हुए थे। ये सज्जन एक **नवाबी नस्ल के सफेदपोश नवाब साहब** थे, जो पालथी मारे बैठे थे। उनके सामने तौलिए पर दो चिकने, ताजे खीरे रखे हुए थे।
लेखक के डिब्बे में प्रवेश करते ही नवाब साहब ने उन्हें देखा और फिर खीरों की ओर देखने लगे, मानो वे अनमने हों। लेखक को देखकर नवाब साहब ने कोई खास उत्सुकता नहीं दिखाई। लेखक ने भी उनके प्रति कोई रुचि नहीं दिखाई और चुपचाप उनके सामने वाली बर्थ पर बैठ गए।
कुछ देर बाद नवाब साहब ने लेखक को **खीरा खाने के लिए पूछा**। लेखक ने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया, क्योंकि वे पहले ही डकार ले चुके थे (यानी खाने का मन नहीं था)। नवाब साहब ने भी शायद अपनी नवाबी शान बनाए रखने के लिए खीरा खाने की अपनी इच्छा दबा ली, क्योंकि उन्हें लगा होगा कि अगर वे लेखक के सामने खीरा खाएंगे तो उनकी नवाबी कम हो जाएगी, या शायद वे आम आदमी की तरह खीरा खाते हुए शर्म महसूस कर रहे होंगे।
इसके बाद नवाब साहब ने खीरों को बहुत एहतियात (सावधानी) से काटना शुरू किया। उन्होंने पहले खीरों को धोया, फिर उन्हें तौलिए से पोंछा। उसके बाद बड़े सलीके से खीरे के सिरे काटे, और रगड़कर झाग निकाले। फिर खीरे को छीलकर उसकी फाँकों को करीने से तौलिए पर सजाया। इसके बाद उन्होंने खीरे की फाँकों पर **नमक, मिर्च और जीरा** बड़ी सावधानी से छिड़का, मानो कोई विशेष व्यंजन तैयार कर रहे हों। यह सारी क्रिया इतनी सावधानी और दिखावे के साथ की गई कि लेखक को लगा, नवाब साहब शायद अब खीरा खाने के लिए आमंत्रित करेंगे।
नवाब साहब ने एक बार फिर लेखक से पूछा, "लखनवी खीरा है, शौक फरमाइए।" लेखक ने दोबारा मना कर दिया। अब नवाब साहब ने एक-एक करके खीरे की फाँकों को उठाया। उन्होंने पहले एक फाँक को अपने होंठों तक ले गए, उसे सूँघा, नाक के पास ले जाकर उसकी गंध का आनंद लिया। उनके मुँह में पानी आ गया। लेकिन उन्होंने उस फाँक को खाया नहीं, बल्कि उसे सँभालकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसी तरह उन्होंने एक-एक कर सभी फाँकों को सूँघा और बाहर फेंकते चले गए।
सभी खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकने के बाद, नवाब साहब ने तौलिए से हाथ पोंछे और बड़े आराम से लेट गए। उन्होंने लेखक की ओर देखकर एक गर्व से भरी हुई आँखें दिखाईं, मानो कह रहे हों कि यह है नवाबी अंदाज़। उनके चेहरे पर संतोष का भाव था, जैसे कि उन्होंने कोई बड़ा काम कर दिया हो।
यह देखकर लेखक को आश्चर्य हुआ। उन्होंने सोचा कि बिना खाए खीरे का स्वाद कैसे लिया जा सकता है? लेकिन तभी उनके मन में एक विचार कौंधा – जब बिना खीरा खाए, केवल उसकी गंध से पेट भरा जा सकता है और डकार आ सकती है, तो बिना विचार, घटना और पात्रों के क्या कहानी नहीं लिखी जा सकती? लेखक ने महसूस किया कि यह नवाब साहब का दिखावटीपन और 'अमूर्त' (बिना आधार के) संतुष्टि प्राप्त करने का तरीका था। इस घटना ने लेखक को अपनी नई कहानी लिखने का आधार दिया: कि **बिना कथ्य, पात्र और घटना के भी कहानी लिखी जा सकती है, जैसे नवाब साहब ने बिना खीरा खाए संतुष्टि पाई।** यह एक नए 'नवाबी अंदाज़' की कहानी का जन्म था, जो आज के समाज के दिखावेपन पर तीखा व्यंग्य करता है।
मुख्य पात्र
- लेखक (यशपाल): कहानी के स्वयं कथावाचक, जो एक नई कहानी के विषय में सोचने के लिए यात्रा कर रहे हैं और नवाब साहब के दिखावेपन के साक्षी बनते हैं। वे समाज के पाखंड को समझने वाले और व्यंग्यात्मक दृष्टि रखने वाले व्यक्ति हैं।
- नवाब साहब: कहानी के केंद्र बिंदु, जो अपनी नवाबी शान और कृत्रिमता का प्रदर्शन करते हैं। वे एक सफेदपोश (शराफत का दिखावा करने वाले) व्यक्ति हैं जो अपनी झूठी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए खीरे को खाने के बजाय सिर्फ सूँघकर फेंक देते हैं।
मुख्य विषय
- दिखावा और कृत्रिमता (फर्जीपन): कहानी का मुख्य विषय समाज में फैले दिखावे और बनावटीपन पर गहरा व्यंग्य है। नवाब साहब का खीरा खाने का अंदाज़ इसी दिखावे का प्रतीक है।
- नवाबी संस्कृति का पतन: यह कहानी एक ऐसी पतित नवाबी संस्कृति की ओर इशारा करती है जहाँ वास्तविकता और व्यावहारिकता का स्थान झूठी शान और बेतुकी आदतों ने ले लिया है।
- अमूर्त संतुष्टि: कहानी इस बात पर भी व्यंग्य करती है कि कुछ लोग बिना किसी वास्तविक आधार या परिश्रम के ही संतुष्टि प्राप्त करने का ढोंग करते हैं।
- लेखक की सर्जनात्मकता: कहानी यह भी दर्शाती है कि लेखक किस प्रकार अपने आस-पास के वातावरण और घटनाओं से प्रेरणा लेकर नई रचनाएँ कर सकता है। नवाब साहब की हरकत लेखक के लिए एक नए साहित्यिक विचार का स्रोत बन जाती है।
- सामाजिक कटाक्ष: यह व्यंग्य उन लोगों पर है जो अपने अंदर कुछ और होते हैं और बाहर कुछ और दिखाने का प्रयास करते हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
प्रश्न अभ्यास (पृष्ठ संख्या 86-87)
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लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए उत्सुक नहीं हैं?
लेखक को नवाब साहब के निम्नलिखित हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए उत्सुक नहीं हैं:
- लेखक के डिब्बे में प्रवेश करते ही नवाब साहब ने उन्हें देखा, पर तुरंत ही उनकी नजरें खीरों की ओर लौट गईं, जिससे लगा कि वे लेखक की ओर ध्यान नहीं देना चाहते।
- उन्होंने लेखक को देखकर कोई उत्सुकता नहीं दिखाई, और कोई शिष्टाचार का अभिवादन भी नहीं किया।
- वे अपनी पालथी मारकर बैठे रहे और अपनी नज़रें झुकाए रहे, मानो लेखक वहाँ है ही नहीं।
- उनके चेहरे पर एक तरह की अनमनी उदासीनता थी, जिससे लगा कि वे अकेले रहना पसंद कर रहे हैं।
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नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके किस स्वभाव को दर्शाता है?
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, और अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा निम्नलिखित कारणों से किया होगा:
- दिखावा और नवाबी शान: वे लेखक के सामने अपनी नवाबी शान का प्रदर्शन करना चाहते थे। वे यह जताना चाहते थे कि खीरा जैसी साधारण वस्तु उनके स्तर की नहीं है, जिसे खाया जाए।
- कृत्रिमता: वे अपनी बनावटी जीवनशैली को बनाए रखना चाहते थे। उन्हें लगा होगा कि यदि वे सहयात्री (लेखक) के सामने खीरा खाएंगे तो उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाएगी, क्योंकि खीरा आम आदमी खाता है।
- अनापत्ति: शायद उन्होंने लेखक को खीरा देने की पेशकश की थी, जिसे लेखक ने मना कर दिया। अब वे स्वयं भी खीरा खाने की अपनी स्वाभाविक इच्छा को दबाना चाहते थे ताकि वे 'आम आदमी' न दिखें।
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बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
यशपाल ने नवाब साहब के खीरा सूँघकर फेंकने की घटना के बाद व्यंग्यपूर्वक यह विचार प्रस्तुत किया कि "जब खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना मात्र से पेट भर सकता है, तो बिना विचार, घटना और पात्रों के क्या कहानी नहीं लिखी जा सकती?"
मैं यशपाल के इस विचार से **पूरी तरह सहमत नहीं हूँ**, लेकिन उनके व्यंग्य के पीछे के तर्क को समझता हूँ।
**असहमति का कारण:**- **कहानी का मूल ढाँचा:** किसी भी कहानी के लिए विचार (विषय-वस्तु), घटनाक्रम (प्लाट), और पात्र (जो कहानी को आगे बढ़ाते हैं) आवश्यक होते हैं। इनके बिना कहानी एक नीरस वर्णन या कल्पना मात्र रह जाएगी, उसमें गति और गहराई नहीं होगी।
- **पाठक का जुड़ाव:** पात्रों के बिना पाठक किसी से जुड़ नहीं पाता, घटनाओं के बिना कहानी आगे नहीं बढ़ती, और विचार के बिना कहानी का कोई संदेश या उद्देश्य नहीं होता।
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नवाब साहब द्वारा खीरा खाने के तरीके को अपने शब्दों में लिखिए।
नवाब साहब ने खीरा खाने का एक अत्यंत ही विलक्षण और दिखावटी तरीका अपनाया। उन्होंने पहले खीरों को पानी से धोया, फिर तौलिए से बहुत एहतियात से पोंछा। इसके बाद उन्होंने खीरे के दोनों सिरे काटे और उन्हें रगड़कर झाग निकाला, मानो वे बहुत ही मूल्यवान चीज़ हों। फिर उन्होंने बड़े सलीके से खीरों को छीला और उनकी फाँकों को करीने से तौलिए पर सजा दिया। इसके बाद उन्होंने प्रत्येक फाँक पर नमक, मिर्च और जीरा बड़ी सावधानी से छिड़का। जब सारा खीरा तैयार हो गया, तो उन्होंने लेखक को एक बार फिर से खीरा खाने के लिए पूछा। लेखक के मना करने पर, नवाब साहब ने एक-एक करके खीरे की फाँकों को उठाया, उसे अपने होंठों तक ले गए, सूँघा और नाक के पास ले जाकर उसकी गंध का आनंद लिया। उनके मुँह में पानी आ गया, लेकिन उन्होंने उस फाँक को खाया नहीं, बल्कि उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस प्रकार, उन्होंने सभी फाँकों को एक-एक करके सूँघा और बाहर फेंकते चले गए। अंत में, उन्होंने तौलिए से अपने हाथ पोंछे और संतोष के साथ लेट गए, जैसे कि उन्होंने खीरा खा लिया हो। यह पूरा तरीका उनकी दिखावटी और नवाबी सोच को दर्शाता है।
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आप इस कहानी को और क्या नाम देना चाहेंगे?
मैं इस कहानी को कुछ अन्य नाम देना चाहूँगा, जो इसके केंद्रीय विषय (दिखावा और व्यंग्य) को उजागर करते हैं:
- **दिखावे की दुनिया**
- **आडंबरों का सच**
- **फर्जीपन का अंदाज़**
- **सूँघने से पेट भरता है?**
- **नवाब का पाखंड**
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