अध्याय 14: कन्यादान

कवि: ऋतुराज

कवि परिचय

**ऋतुराज** (जन्म: 1940, भरतपुर, राजस्थान) हिंदी कविता के एक महत्वपूर्ण कवि हैं। उनकी कविताओं में सामाजिक विसंगतियों, मानवीय संवेदनाओं और जीवन के यथार्थ का गहरा चित्रण मिलता है। उन्होंने अपनी कविताओं में आम आदमी के जीवन के संघर्षों और अनुभवों को सरल भाषा में व्यक्त किया है। उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में 'पुल पर पानी', 'एक मरणधर्मा और अन्य', 'सूरत निरत' आदि शामिल हैं। 'कन्यादान' उनकी एक मार्मिक कविता है जो स्त्री जीवन की जटिलताओं और सामाजिक रूढ़ियों पर प्रकाश डालती है।

कविता का सार

**'कन्यादान'** कविता कवि **ऋतुराज** द्वारा रचित एक मार्मिक और विचारोत्तेजक रचना है। यह कविता बेटी के विवाह के समय एक माँ की व्यथा, चिंता और उसे दी जाने वाली सीख पर आधारित है। कवि ने पारंपरिक 'कन्यादान' की रस्म के पीछे छिपी सामाजिक वास्तविकता और स्त्री जीवन के प्रति संवेदनशीलता को उजागर किया है।

कविता की शुरुआत में माँ की पीड़ा का वर्णन है। माँ के लिए उसकी बेटी उसका **अंतिम पूँजी** थी। अंतिम पूँजी इसलिए क्योंकि उसके जीवन के सारे सुख-दुख, उम्मीदें और अनुभव बेटी से जुड़े थे। बेटी को दान करते समय माँ को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अपना **सर्वस्व** खो रही है। कवि कहता है कि बेटी अभी इतनी सयानी नहीं हुई थी कि वह सांसारिक कठिनाइयों को समझ सके। वह अभी भोली और नादान थी। उसे समाज की कुटिलताओं और शोषण का ज्ञान नहीं था।

माँ को अपनी बेटी एक **धुँधले प्रकाश** की तरह लगती थी, जो केवल सुखों को देखती थी और दुखों या जिम्मेदारियों को नहीं समझती थी। उसे लगता था कि शादी के बाद का जीवन सिर्फ खुशियों से भरा होगा। वह **पार्टिका** (पढ़ने वाली) तो थी, लेकिन उसे **दुख बाँचना** (दुख पढ़ना या समझना) नहीं आता था। उसे सुखों की कल्पना थी, पर जीवन के यथार्थ और चुनौतियों का भान नहीं था।

माँ अपनी बेटी को विवाह के बाद के जीवन के लिए कुछ **अमूल्य सीख** देती है। वह उसे सावधान करती है कि ससुराल में जीवन हमेशा वैसा नहीं होता जैसा दिखता है। वह उसे **आग से सतर्क रहने** को कहती है, क्योंकि आग खाना पकाने के लिए होती है, जलने के लिए नहीं। यह संकेत दहेज के लिए जलाए जाने वाली नवविवाहिताओं की ओर है। वह उसे **वस्त्रों और आभूषणों के मोह** में न फँसने की सलाह देती है, क्योंकि ये सभी बंधन हैं जो स्त्रियों को अपनी सुंदरता और आकर्षण में उलझाकर कमजोर बनाते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण सीख जो माँ अपनी बेटी को देती है, वह है कि वह **लड़की जैसी दिखाई दे, लेकिन लड़की जैसी दुर्बल न बने**। इसका अर्थ है कि वह स्त्री के स्वाभाविक गुणों – कोमलता, शालीनता, विनम्रता – को बनाए रखे, लेकिन अत्याचार और शोषण के खिलाफ कमजोर न पड़े। उसे अपनी आवाज उठानी चाहिए और अन्याय का सामना करना चाहिए। माँ चाहती है कि उसकी बेटी आत्मनिर्भर और सशक्त बने, न कि सामाजिक रूढ़ियों और शोषण का शिकार हो।

यह कविता **स्त्री-विमर्श** पर केंद्रित है। यह बताती है कि कैसे परंपरागत रूप से कन्यादान के माध्यम से बेटी को पराया धन मानकर उसे त्याग दिया जाता है, जबकि माँ उसे जीवन की कटु सच्चाइयों से अवगत कराकर उसे सशक्त बनाने का प्रयास करती है। यह कविता समाज में व्याप्त स्त्री-शोषण और दहेज प्रथा जैसी बुराइयों पर भी व्यंग्य करती है, साथ ही स्त्रियों को आत्मनिर्भर और साहसी बनने का संदेश देती है।

एक भारतीय विवाह में बेटी को आशीर्वाद देते हुए माँ-बाप और बेटी को विदा करते हुए।

मुख्य बिंदु

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

I. विचार करें और उत्तर दें (पृष्ठ XX - काल्पनिक)

  1. कवि ने 'माँ की अंतिम पूँजी' किसे कहा है और क्यों?

    कवि ने **बेटी** को 'माँ की अंतिम पूँजी' कहा है। ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि माँ के जीवन का सारा सुख, दुख, आशाएँ और अनुभव उसकी बेटी से जुड़े होते हैं। बेटी ही माँ के जीवन का केंद्र होती है, जिसके साथ वह अपने मन की हर बात साझा कर सकती है। बेटी के चले जाने के बाद माँ का जीवन खाली-सा हो जाता है, जैसे उसने अपना सर्वस्व खो दिया हो। वह अपनी सबसे प्रिय वस्तु, अपने जीवन के सबसे बड़े अवलंब को दान कर रही होती है, इसलिए वह उसकी 'अंतिम पूँजी' कहलाती है।

  2. माँ ने बेटी को किन-किन बातों से सावधान किया है? 'आग', 'वस्त्र और आभूषण' के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

    माँ ने बेटी को निम्नलिखित बातों से सावधान किया है:

    • **आग से सावधान रहने को कहा:** इसका अर्थ है कि ससुराल में आग का उपयोग केवल रोटी सेंकने के लिए करें, जलने के लिए नहीं। यह अप्रत्यक्ष रूप से दहेज के लिए जलाए जाने वाली नवविवाहिताओं की ओर संकेत है। माँ चाहती है कि बेटी किसी भी प्रकार के शोषण या अत्याचार का शिकार न बने।
    • **वस्त्र और आभूषण के मोह में न फँसने को कहा:** माँ कहती है कि वस्त्र और आभूषण शाब्दिक अर्थों में तो सुंदरता बढ़ाते हैं, लेकिन ये स्त्रियों के लिए बंधन बन सकते हैं। इनका अत्यधिक मोह स्त्रियों को कमजोर और परनिर्भर बना सकता है। माँ चाहती है कि बेटी ऊपरी सुंदरता के बजाय अपने आंतरिक गुणों और आत्मनिर्भरता पर ध्यान दे।
    इनके माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि स्त्रियाँ सामाजिक रूढ़ियों, शोषण और ऊपरी चकाचौंध से स्वयं को बचाकर रखें। उन्हें अपनी अस्मिता और स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहिए।

  3. 'लड़की जैसी दिखाई देती है, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना' - इस पंक्ति में माँ अपनी बेटी को क्या सीख दे रही है?

    इस पंक्ति में माँ अपनी बेटी को बहुत गहरी और महत्वपूर्ण सीख दे रही है। 'लड़की जैसी दिखाई देती है' का अर्थ है कि वह स्त्री के स्वाभाविक गुणों – **कोमलता, शालीनता, विनम्रता, संवेदनशीलता** – को बनाए रखे। वह अपनी स्त्री सुलभ पहचान न खोए।

    लेकिन 'पर लड़की जैसी दिखाई मत देना' का अर्थ है कि वह **लड़की जैसी दुर्बल, असहाय और कमजोर न बने**। वह अत्याचार, अन्याय या शोषण का चुपचाप शिकार न हो। उसे अपनी आवाज उठानी चाहिए, अन्याय का सामना करना चाहिए और स्वयं को कमजोर न पड़ने देना चाहिए। माँ चाहती है कि उसकी बेटी समाज में एक सशक्त और आत्मविश्वासी व्यक्ति के रूप में स्थापित हो, जो अपनी गरिमा की रक्षा कर सके और किसी भी चुनौती का सामना डटकर कर सके।

  4. कविता में 'धुँधले प्रकाश' और 'दुख बाँचना' जैसे प्रतीकों का प्रयोग क्यों किया गया है?

    कविता में 'धुँधले प्रकाश' और 'दुख बाँचना' जैसे प्रतीकों का प्रयोग बेटी की नादानी, अनुभवहीनता और भविष्य के प्रति अज्ञानता को दर्शाने के लिए किया गया है।

    • **'धुँधले प्रकाश'**: बेटी को अभी तक जीवन का पूरा सच नहीं पता था। उसे वैवाहिक जीवन केवल सुखमय लग रहा था, जिसमें कोई कठिनाई नहीं होती। उसका अनुभव कच्चा था, जैसे धुँधला प्रकाश जिसमें चीजें स्पष्ट नहीं दिखतीं। वह सुखों को तो जानती थी, पर दुखों और जिम्मेदारियों के प्रति अनभिज्ञ थी।
    • **'दुख बाँचना'**: इसका अर्थ है दुख को पढ़ना या समझना। बेटी अभी इतनी सयानी नहीं हुई थी कि वह जीवन के दुखों, कठिनाइयों, सामाजिक कुरीतियों और शोषण को समझ सके। वह केवल अपने माता-पिता के प्यार भरे वातावरण में पली-बढ़ी थी, जहाँ उसे दुखों का सामना नहीं करना पड़ा था। यह प्रतीक बेटी की भोली-भाली प्रकृति और संसार के कठोर अनुभवों से उसकी दूरी को दर्शाता है।
    ये प्रतीक बेटी की अज्ञानता और माँ की चिंता को प्रभावी ढंग से व्यक्त करते हैं।

  5. कविता में वर्णित माँ की चिंताएँ आज के समाज में कितनी प्रासंगिक हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

    कविता में वर्णित माँ की चिंताएँ आज के समाज में भी पूरी तरह से प्रासंगिक हैं। दहेज प्रथा, स्त्री-शोषण और महिलाओं की आत्मनिर्भरता का मुद्दा आज भी एक बड़ी सामाजिक चुनौती है।

    • **दहेज प्रथा और शोषण:** आज भी देश के कई हिस्सों में दहेज के लिए नवविवाहिताओं को प्रताड़ित किया जाता है और कई बार जला दिया जाता है। माँ की 'आग से सतर्क रहने' की सीख आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
    • **वस्त्र और आभूषण का मोह:** आधुनिक समाज में भी महिलाएँ अक्सर बाहरी दिखावे और भौतिक वस्तुओं के मोह में फंसकर अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान से समझौता कर लेती हैं। यह उन्हें कमजोर बनाता है।
    • **स्त्री की दुर्बलता का लाभ:** 'लड़की जैसी दिखाई देती है, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना' का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है। समाज में आज भी महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर मानकर उन पर अत्याचार करने की प्रवृत्ति है। महिलाओं को अपनी कोमलता बनाए रखते हुए भी अन्याय के विरुद्ध मजबूत खड़ा होना सिखाना आज भी आवश्यक है।
    भले ही शिक्षा और जागरूकता बढ़ी है, लेकिन पितृसत्तात्मक सोच और स्त्री-शोषण की घटनाएँ अभी भी समाज में मौजूद हैं। इसलिए, यह कविता आज भी प्रत्येक माँ को अपनी बेटी को सशक्त बनाने और उसे जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने का मार्ग दिखाती है।



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