अध्याय 13: संगतकार

कवि: मंगलेश डबराल

कवि परिचय

**मंगलेश डबराल** (जन्म: 1948, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड; मृत्यु: 2020, दिल्ली) हिंदी कविता के महत्वपूर्ण समकालीन कवि थे। वे अपनी जनपक्षधरता, सरल भाषा और गहन मानवीय संवेदना के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविताओं में हाशिये पर पड़े लोगों, मेहनतकशों और समाज के उपेक्षित वर्गों का स्वर सुनाई देता है। उन्हें 2000 में उनके काव्य संग्रह 'हम जो देखते हैं' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में 'पहाड़ पर लालटेन', 'घर का रास्ता', 'कवि का अकेलापन' आदि शामिल हैं। 'संगतकार' उनकी एक प्रसिद्ध कविता है जो मुख्य कलाकार के पीछे छिपे सहायक की महत्ता को उजागर करती है।

कविता का सार

**'संगतकार'** कविता कवि **मंगलेश डबराल** द्वारा रचित एक ऐसी रचना है जो मुख्य कलाकार के साथ मिलकर अपनी कला को निखारने वाले **सहयोगी कलाकारों** की महत्ता को रेखांकित करती है। यह कविता उन सभी गुमनाम चेहरों को समर्पित है जो किसी भी क्षेत्र में किसी बड़े व्यक्ति या संस्थान की सफलता के पीछे रीढ़ की हड्डी की तरह खड़े होते हैं, लेकिन उनका योगदान अक्सर अनदेखा रह जाता है।

कविता में एक **गायक (मुख्य कलाकार)** और उसके **संगतकार (सहायक गायक)** के रिश्ते का वर्णन है। जब मुख्य गायक अपनी **तारसप्तक (उच्चतम स्वर)** में गाते हुए थक जाता है या उसकी आवाज़ में लड़खड़ाहट आती है, तो संगतकार ही अपनी आवाज़ से उसे **संभालता** है। संगतकार हमेशा मुख्य गायक के पीछे-पीछे चलता है, यानी उसका अनुसरण करता है और उसकी ध्वनि में अपनी ध्वनि मिलाकर उसे सहारा देता है।

संगतकार की आवाज़ में एक खास तरह की **हिचक** या संकोच होता है। वह कभी भी मुख्य गायक से आगे निकलने की कोशिश नहीं करता। वह जानता है कि उसे कब और कितनी ऊँची आवाज़ में गाना है ताकि वह मुख्य गायक के प्रभाव को कम न करे। वह हमेशा मुख्य गायक के सुर को **संभालकर रखता** है, भले ही वह खुद कभी प्रसिद्ध न हो पाए। उसकी यह हिचक, उसकी **मानवता** का प्रतीक है, न कि उसकी कमजोरी का। वह अपनी कला को प्रस्तुत करते समय मुख्य गायक की गरिमा का पूरा ध्यान रखता है।

कवि बताता है कि कभी-कभी मुख्य गायक बहुत ऊँचे सुरों में गाते हुए **भटक जाता** है या अपने ही सुर में खो जाता है, या फिर उसे अपने अतीत की यादें (जैसे रियाज़ की हुई पुरानी बंदिशें) घेर लेती हैं। ऐसे मुश्किल समय में संगतकार ही होता है जो मुख्य गायक को **स्थायित्व** प्रदान करता है और उसे भटकने से रोकता है। वह मुख्य गायक के बिखरे हुए स्वरों को समेटता है और उसे फिर से मुख्य लय पर वापस ले आता है।

संगतकार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अपनी आवाज़ को कभी भी मुख्य गायक की आवाज़ से **ऊँचा नहीं उठाता**। यह उसका त्याग और समर्पण है। कवि कहता है कि यह उसकी **असफलता** नहीं, बल्कि **मनुष्यता** है। यानी, वह जानबूझकर अपनी आवाज़ को धीमा रखता है ताकि मुख्य गायक की पहचान बनी रहे। यह उसका नैतिक कर्तव्य और महानता है कि वह स्वयं को मुख्य कलाकार के पीछे रखता है।

यह कविता केवल संगीत के क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह **हर उस क्षेत्र में लागू होती है जहाँ कोई व्यक्ति किसी बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पर्दे के पीछे रहकर काम करता है।** चाहे वह वैज्ञानिक हो, सैनिक हो, सामाजिक कार्यकर्ता हो, या किसी टीम का सदस्य – ऐसे सभी संगतकार होते हैं जो अपनी निस्वार्थ सेवा से दूसरों को सफल बनाते हैं। कवि इन गुमनाम नायकों को सम्मान दिलाना चाहता है।

एक गायक मंच पर माइक्रोफोन के सामने गा रहा है, और उसके पीछे एक संगतकार हारमोनियम बजा रहा है।

मुख्य बिंदु

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

I. विचार करें और उत्तर दें (पृष्ठ XX - काल्पनिक)

  1. संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?

    संगतकार के माध्यम से कवि उन सभी **गुमनाम और निस्वार्थ सहायक व्यक्तियों** की ओर संकेत करना चाह रहा है जो किसी भी क्षेत्र में मुख्य या प्रमुख व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनका योगदान अक्सर अनदेखा रह जाता है। ये ऐसे लोग होते हैं जो पर्दे के पीछे रहकर काम करते हैं, मुख्य व्यक्ति को सहारा देते हैं, उसकी कमियों को छिपाते हैं और उसकी प्रतिष्ठा को बनाए रखते हैं। चाहे वह संगीत, खेल, विज्ञान, राजनीति या किसी भी अन्य क्षेत्र में हो, हर सफल व्यक्ति के पीछे एक या अनेक संगतकार होते हैं, जिनकी मेहनत और त्याग से ही सफलता संभव हो पाती है।

  2. संगतकार की 'अहिचक' या 'झिझक' उसकी कमजोरी है या मनुष्यता? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

    संगतकार की अपनी आवाज़ को मुख्य गायक से ऊँचा न उठाने की 'अहिचक' या 'झिझक' उसकी **कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी मनुष्यता और महानता** है। इसके पक्ष में तर्क इस प्रकार हैं:

    • **त्याग और समर्पण:** संगतकार जानबूझकर अपनी आवाज़ को कम रखता है ताकि मुख्य गायक का महत्व बना रहे। यह उसका निस्वार्थ त्याग और कला के प्रति समर्पण है।
    • **गरिमा का सम्मान:** वह मुख्य गायक की गरिमा और प्रतिष्ठा का सम्मान करता है। यदि वह मुख्य गायक से आगे निकल जाए तो मुख्य प्रदर्शन का संतुलन बिगड़ जाएगा।
    • **सहयोग की भावना:** यह उसकी सहयोगी भावना को दर्शाता है। वह स्वयं चमकने के बजाय पूरी टीम या प्रदर्शन को सफल बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • **नैतिकता:** उसकी यह 'झिझक' नैतिक मूल्यों का प्रतीक है कि वह अपने गुरु या मुख्य कलाकार के सम्मान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता।
    अतः, यह उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसके **महान मानवीय गुणों** का प्रमाण है।

  3. किसी भी क्षेत्र में संगतकार जैसी भूमिका निभाने वाले व्यक्ति किस प्रकार अपनी पहचान बनाते हैं या अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं?

    किसी भी क्षेत्र में संगतकार जैसी भूमिका निभाने वाले व्यक्ति अपनी पहचान सीधे तौर पर प्रसिद्धि पाकर नहीं, बल्कि अपने **निस्वार्थ योगदान, समर्पण और सहयोग** के माध्यम से बनाते हैं। वे अपनी भूमिका का निर्वाह निम्नलिखित प्रकार से करते हैं:

    • **समर्थन और सहारा:** वे मुख्य व्यक्ति या टीम को कठिन परिस्थितियों में भावनात्मक, तकनीकी या व्यावहारिक सहायता प्रदान करते हैं।
    • **गुणों का विकास:** वे अपने स्वयं के कौशल और प्रतिभा को विकसित करते हैं, लेकिन उसे मुख्य भूमिका में चमकने वाले के साथ समेट कर रखते हैं।
    • **आत्म-संयम:** वे कभी भी मुख्य व्यक्ति से आगे निकलने या उसकी प्रसिद्धि छीनने की कोशिश नहीं करते। उनमें आत्म-नियंत्रण और धैर्य होता है।
    • **ईमानदारी और विश्वसनीयता:** उनकी ईमानदारी और विश्वसनीय उपस्थिति ही उन्हें अपरिहार्य बनाती है। मुख्य कलाकार उन पर भरोसा कर सकता है।
    • **पर्दे के पीछे की शक्ति:** भले ही वे सीधे सुर्खियों में न हों, लेकिन उनकी उपस्थिति के बिना मुख्य कलाकार का प्रदर्शन अधूरा रह सकता है। वे एक अदृश्य शक्ति के रूप में कार्य करते हैं।
    इस प्रकार, वे अपनी पहचान अपनी निस्वार्थता और गुणवत्तापूर्ण समर्थन से बनाते हैं, जो अंततः मुख्य कलाकार की सफलता का आधार बनती है।

  4. कविता में मुख्य गायक के किन-किन क्षणों में संगतकार उसे सहारा देता है?

    कविता में संगतकार मुख्य गायक को निम्नलिखित क्षणों में सहारा देता है:

    • जब मुख्य गायक **उच्चतम स्वर (तारसप्तक)** में गाते हुए अपनी आवाज़ खोने लगता है, तो संगतकार उसकी बिखरी हुई आवाज़ को सहारा देता है।
    • जब मुख्य गायक का गला बैठ जाता है, या उसकी आवाज़ में **लड़खड़ाहट** आती है, तब संगतकार उसके स्वर में अपना स्वर मिलाकर उसे बल देता है।
    • जब मुख्य गायक गाते-गाते **भटक जाता है** और अपने सुर से अलग हो जाता है, तब संगतकार उसे फिर से मुख्य सुर पर वापस लाता है।
    • जब मुख्य गायक को अपने **अतीत की यादें (रियाज़ की पुरानी बंदिशें)** घेर लेती हैं और वह खो-सा जाता है, तब संगतकार उसे वास्तविकता में वापस लाता है।
    • जब मुख्य गायक निराश हो जाता है या उसकी हिम्मत टूटने लगती है, तब संगतकार अपने धीमे और स्पष्ट स्वर से उसे **साहस** देता है और महसूस कराता है कि वह अकेला नहीं है।
    इन सभी क्षणों में संगतकार मुख्य गायक के लिए एक मजबूत स्तंभ की तरह खड़ा रहता है।

  5. इस कविता में कवि ने संगतकार की किन-किन विशेषताओं का वर्णन किया है?

    इस कविता में कवि ने संगतकार की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है:

    • **समर्पण और निस्वार्थता:** वह मुख्य गायक को पूरी तरह समर्पित है और अपनी पहचान की परवाह किए बिना उसका सहयोग करता है।
    • **सहयोग की भावना:** वह हमेशा मुख्य गायक के साथ खड़ा रहता है, उसे सहारा देता है और उसकी कमियों को छिपाता है।
    • **आत्म-नियंत्रण:** वह अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ से ऊँचा नहीं उठाता, जो उसके आत्म-नियंत्रण का प्रमाण है।
    • **मानवता:** उसकी यह 'झिझक' या 'हिचक' कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी महान मनुष्यता का प्रतीक है।
    • **कला का ज्ञान:** वह कला और संगीत की गहरी समझ रखता है, तभी वह मुख्य गायक के सुरों को सही समय पर संभाल पाता है।
    • **धैर्य और निरंतरता:** वह बिना किसी प्रसिद्धि की चाह के लगातार अपनी भूमिका का निर्वाह करता रहता है।
    • **पीछे रहने की कला:** वह जानता है कि उसकी भूमिका मुख्य कलाकार को पूर्णता प्रदान करने की है, न कि स्वयं चमकेगी।
    ये सभी विशेषताएँ मिलकर संगतकार को एक महत्वपूर्ण और पूजनीय पात्र बनाती हैं।



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