अध्याय 11: उत्साह और अट नहीं रही है
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
कवि-परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (1899-1961) हिंदी साहित्य के **छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों** में से एक हैं। उनका जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल गाँव में हुआ था। निराला को मुक्त छंद का प्रणेता माना जाता है। उन्होंने कविता, उपन्यास, कहानी, निबंध आदि अनेक विधाओं में रचनाएँ कीं। निराला की कविताओं में **क्रांति, विद्रोह, प्रेम, प्रकृति चित्रण और दार्शनिकता** का अद्भुत संगम मिलता है। वे रूढ़ियों के विरोधी और मुक्ति के पक्षधर थे। उनकी काव्य भाषा में संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ बोलचाल के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग मिलता है। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ 'अनामिका', 'परिमल', 'गीतिका', 'तुलसीदास', 'कुकुरमुत्ता', 'नए पत्ते', 'बेला', 'अपरा' आदि हैं। 'राम की शक्तिपूजा' और 'सरोज स्मृति' उनकी लंबी और महत्त्वपूर्ण कविताएँ हैं।
प्रस्तुत पाठ में निराला की दो कविताएँ शामिल हैं:
- **'उत्साह'**: यह एक **आह्वान गीत** है जो बादलों को संबोधित है। बादल यहाँ एक ओर **पीडि़त-प्यास से व्याकुल जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने वाले** हैं, तो दूसरी ओर वे **क्रांति और नव-जीवन लाने वाले** भी हैं। कविता में जीवन की निराशाओं से जूझने और क्रांति के माध्यम से नव-परिवर्तन लाने का आह्वान किया गया है।
- **'अट नहीं रही है'**: यह कविता **फागुन मास की सुंदरता** का वर्णन करती है। फागुन (फरवरी-मार्च) में प्रकृति की शोभा इतनी अद्भुत और मनमोहक होती है कि वह कहीं समा नहीं पाती। कवि ने इस कविता में प्रकृति के सौंदर्य को मानवीय भावनाओं और सौंदर्य से जोड़कर प्रस्तुत किया है।
कविता 1: उत्साह
भावार्थ
बादल, गरजो! घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ! ललित ललित, काले घुँघराले, बाल कल्पना के से पाले। विद्युत-छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले! वज्र छिपा नूतन कविता फिर भर दो बादल, गरजो!
भावार्थ:
कवि बादलों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि **"हे बादल, गरजो (बादल, गरजो!)!"** तुम इस **भयंकर और विस्तृत आकाश को चारों ओर से घेर लो (घेर घेर घोर गगन)**, **हे जल बरसाने वाले बादल (धाराधर ओ!)!**
कवि बादलों के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि तुम **सुंदर-सुंदर (ललित ललित)** हो, तुम्हारे रंग **काले (काले)** हैं और तुम्हारी आकृति **घुँघराले (घुँघराले)** बालों जैसी है। तुम ऐसे लगते हो जैसे **बच्चों की कल्पनाएँ पल रही हों (बाल कल्पना के से पाले)**। (यहाँ बादलों की तुलना बच्चों की कल्पनाओं से की गई है, जो नित्य नई और मनमोहक होती हैं।)
कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम्हारे **हृदय में बिजली की चमक (विद्युत-छवि उर में)** है, **हे कवि, तुम नया जीवन प्रदान करने वाले हो (कवि, नवजीवन वाले!)!** तुम्हारे अंदर **वज्र (कठोरता, शक्ति) छिपा हुआ (वज्र छिपा)** है, तुम **एक नई कविता (नूतन कविता)** के समान हो। तुम फिर से **सब में जोश भर दो (फिर भर दो)**।
और अंत में, कवि फिर से आह्वान करते हैं, **"हे बादल, गरजो (बादल, गरजो!)!"** (यहाँ 'गरजो' केवल आवाज नहीं, बल्कि शक्ति, क्रांति और परिवर्तन का प्रतीक है। कवि बादलों से भीषण गर्जना के साथ क्रांति लाने का आह्वान कर रहे हैं।)
काव्य-सौंदर्य / विशेष:
- **भाषा:** खड़ी बोली हिंदी, संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग। ओजपूर्ण और गतिशील भाषा।
- **शैली:** आह्वानपरक, उद्बोधनात्मक।
- **रस:** वीर रस (क्रांति के लिए), रौद्र रस (गरजने में)।
- **अलंकार:**
- **पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार:** 'घेर घेर', 'ललित ललित' (शब्दों की पुनरावृत्ति से सौंदर्य और बल)।
- **उपमा अलंकार:** 'बाल कल्पना के से पाले' (बादलों की तुलना बाल कल्पना से)।
- **रूपक अलंकार:** 'विद्युत-छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले!' (बादलों को कवि का रूप देना)।
- **मानवीकरण अलंकार:** बादलों को गरजने, नया जीवन देने के लिए कहना।
- **अनुप्रास अलंकार:** 'घेर घेर घोर गगन', 'Lalit Lalit', 'वज्र छिपा नूतन कविता'।
- **प्रतीक:**
- **बादल:** क्रांति, उत्साह, नया जीवन, शक्ति, शोषण के विरुद्ध आवाज।
- **गरजना:** क्रांति का बिगुल, विद्रोह का स्वर, परिवर्तन का आह्वान।
- **विद्युत-छवि:** क्रांति की चमक, नई चेतना।
- **वज्र:** विध्वंसकारी शक्ति, कठोरता, अत्याचार का नाश करने वाली शक्ति।
- **नूतन कविता:** नया समाज, नया युग, नव-जागरण।
- कविता में **ओज गुण** की प्रधानता है।
- बादलों को केवल जल बरसाने वाला नहीं, बल्कि **क्रांति का प्रतीक** माना गया है।
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन! तप्त धरा जल से फिर शीतल कर दो– बादल, गरजो!
भावार्थ:
कवि कहते हैं कि **सारे संसार के लोग (विश्व के सकल जन)** बहुत **विकल (परेशान, बेचैन)** और **उन्मन (उदासीन, कहीं मन न लगने वाले)** थे। वे सब **गर्मी (निदाघ)** से परेशान थे। (यहाँ 'निदाघ' केवल गर्मी का नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय, शोषण और निराशा का भी प्रतीक है, जिससे संसार के लोग व्याकुल हैं)।
कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि **हे अनंत आकाश से आए हुए बादल (आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!)!** तुम इस **तपी हुई धरती को (तप्त धरा)** अपने **जल से फिर से शीतल कर दो (जल से फिर शीतल कर दो)**।
और फिर कवि आह्वान करते हैं, **"हे बादल, गरजो (बादल, गरजो!)!"** (यहाँ कवि सामाजिक रूप से पीड़ित और शोषित लोगों की बेचैनी को दूर करने के लिए बादलों से शांति और क्रांति दोनों की अपेक्षा कर रहे हैं। बादल एक ओर जल बरसाकर शांति प्रदान करते हैं, तो दूसरी ओर अपनी गर्जना से क्रांति का बिगुल बजाते हैं)।
काव्य-सौंदर्य / विशेष:
- **भाषा:** खड़ी बोली, संस्कृतनिष्ठ शब्दावली।
- **शैली:** आह्वानपरक, प्रतीकात्मक।
- **रस:** शांत रस (जल से शीतलता), वीर रस (क्रांति के लिए)।
- **अलंकार:**
- **पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार:** 'विकल विकल', 'उन्मन उन्मन'।
- **अनुप्रास अलंकार:** 'विश्व के निदाघ के सकल जन', 'तप्त धरा जल से'।
- **प्रतीकात्मकता:** 'निदाघ' (गर्मी/दुख), 'तप्त धरा' (पीड़ित धरती/समाज), 'जल' (शांति/नवजीवन)।
- **सामाजिक संदर्भ:** कविता सामाजिक क्रांति और परिवर्तन की आवश्यकता पर बल देती है।
- **मानवीय पीड़ा:** कवि ने लोगों की निराशा और बेचैनी को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।
- बादलों को **जीवनदाता और क्रांति का अग्रदूत** दोनों रूपों में दिखाया गया है।
कविता 2: अट नहीं रही है
भावार्थ
अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।
भावार्थ:
कवि कहते हैं कि **फागुन (फरवरी-मार्च) महीने की सुंदरता (आभा फागुन की)** इतनी अधिक है कि वह **कहीं समा नहीं पा रही है (अट नहीं रही है)**। प्रकृति के **शरीर में (तन)** इतनी अधिक सुंदरता है कि वह **ठीक से समा नहीं पा रही है (सट नहीं रही है)**।
इन पंक्तियों में कवि फागुन मास की अत्यधिक सुंदरता का वर्णन कर रहे हैं, जो प्रकृति में इस कदर व्याप्त है कि उसे कहीं भी समा पाना संभव नहीं लग रहा। यह फागुन के महीने में प्रकृति की अनुपम शोभा, उसके उल्लास और रंगों की भरमार को दर्शाता है।
काव्य-सौंदर्य / विशेष:
- **भाषा:** खड़ी बोली हिंदी, सरल, प्रवाहमयी और संगीतात्मक।
- **शैली:** मुक्त छंद, चित्रात्मक, वर्णनात्मक।
- **रस:** श्रृंगार रस (प्रकृति सौंदर्य)।
- **अलंकार:**
- **पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार:** 'अट नहीं रही है', 'सट नहीं रही है' (ध्वन्यात्मक सौंदर्य और बल पर)।
- **मानवीकरण अलंकार:** 'आभा फागुन की तन सट नहीं रही है' (फागुन को शरीर वाला प्राणी मानना)।
- **अनुप्रास अलंकार:** 'अट नहीं रही है', 'सट नहीं रही है', 'आभा फागुन की तन'।
- **बिम्ब-विधान:** दृश्य बिम्ब (प्रकृति की सुंदरता का स्पष्ट चित्रण)।
- कविता का नामकरण 'अट नहीं रही है' इसी केंद्रीय भाव पर आधारित है।
कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो, उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो, आँख हटाता हूँ तो हट नहीं रही है।
भावार्थ:
कवि फागुन मास को संबोधित करते हुए कहते हैं कि **हे फागुन, तुम जहाँ कहीं भी साँस लेते हो (कहीं साँस लेते हो)**, वहाँ अपनी सुगंध और सुंदरता से **हर घर को भर देते हो (घर-घर भर देते हो)**। (यहाँ फागुन की सर्वव्यापकता और उसके आनंदमय प्रभाव का वर्णन है, मानो फागुन एक जीवित प्राणी हो जो अपनी खुशबू बिखेर रहा हो)।
क कवि आगे कहते हैं कि तुम आकाश में **उड़ने के लिए हर जीव को पंख प्रदान कर देते हो (उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो)**। (अर्थात्, फागुन के महीने में वातावरण इतना आनंदमय और ऊर्जावान हो जाता है कि हर कोई मुक्त होकर उड़ना चाहता है, जैसे प्रकृति और जीवों में नई चेतना और स्फूर्ति भर जाती है)।
कवि कहते हैं कि फागुन की यह सुंदरता इतनी मनमोहक है कि **मैं अपनी आँखें उससे हटाना भी चाहता हूँ (आँख हटाता हूँ)**, तो भी वे **हट नहीं रही हैं (तो हट नहीं रही है)**। (अर्थात्, फागुन का सौंदर्य इतना captivating है कि उससे नज़रें हटा पाना असंभव है, वह मन को पूरी तरह मोह लेता है)।
काव्य-सौंदर्य / विशेष:
- **भाषा:** खड़ी बोली, सरल, मधुर और प्रवाहमयी।
- **शैली:** संबोधन शैली, चित्रात्मक।
- **रस:** श्रृंगार रस (प्रकृति सौंदर्य)।
- **अलंकार:**
- **मानवीकरण अलंकार:** 'कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो', 'पर-पर कर देते हो' (फागुन का मानवीकरण)।
- **पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार:** 'घर-घर', 'पर-पर'।
- **अनुप्रास अलंकार:** 'घर-घर भर', 'पर-पर कर'।
- **अतिशयोक्ति अलंकार:** सौंदर्य का इतना अतिशय वर्णन कि आँख न हटे।
- **दृश्य और गंध बिम्ब:** 'घर-घर भर देते हो' (सुगंध), 'आँख हटाता हूँ तो हट नहीं रही है' (दृश्य)।
- फागुन की **सर्वव्यापकता और मोहकता** का वर्णन।
- कवि के मन पर फागुन के प्रभाव का चित्रण।
पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल, कहीं पड़ी है उr में मंद गंध पुष्प-माल, पाट-पाट शोभा श्री पट नहीं रही है।
भावार्थ:
कवि फागुन मास में प्रकृति के विविध रूपों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि इस समय पेड़ों की **डालियाँ पत्तों से पूरी तरह लदी हुई हैं (पत्तों से लदी डाल)**। ये पत्ते **कहीं हरे (कहीं हरी)** हैं तो **कहीं नए निकले लाल रंग के (कहीं लाल)** हैं। (यह बसंत के आगमन और नई कोपलों के निकलने का संकेत है)।
कवि आगे कहते हैं कि फागुन के सौंदर्य से ऐसा लगता है मानो प्रकृति के **हृदय में (उर में)** धीमी-धीमी **खुशबू वाली फूलों की माला (मंद गंध पुष्प-माल)** पड़ी हुई हो। (अर्थात, पेड़ों पर खिले हुए सुगंधित फूल ऐसे लग रहे हैं जैसे प्रकृति ने अपने गले में कोई माला पहन रखी हो)।
कवि अंत में कहते हैं कि हर जगह, **हर स्थान पर (पाट-पाट)** इतनी अधिक **सौंदर्य-संपदा (शोभा श्री)** फैली हुई है कि वह **समा नहीं पा रही है (पट नहीं रही है)**।
इन पंक्तियों में फागुन की प्राकृतिक सुंदरता, उसके रंगों, सुगंधों और सर्वव्यापकता का सजीव चित्रण किया गया है।
काव्य-सौंदर्य / विशेष:
- **भाषा:** खड़ी बोली, सरल, संगीतात्मक। तत्सम शब्दों का सुंदर प्रयोग ('मंद गंध पुष्प-माल', 'शोभा श्री')।
- **शैली:** चित्रात्मक, वर्णनात्मक।
- **रस:** श्रृंगार रस (प्रकृति सौंदर्य)।
- **अलंकार:**
- **पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार:** 'पाट-पाट' (शब्द की पुनरावृत्ति से हर जगह होने का भाव)।
- **मानवीकरण अलंकार:** 'कहीं पड़ी है उर में मंद गंध पुष्प-माल' (प्रकृति का मानवीकरण)।
- **अनुप्रास अलंकार:** 'पत्तों से लदी डाल', 'कहीं हरी, कहीं लाल', 'पाट-पाट शोभा श्री पट नहीं रही है'।
- **बिम्ब-विधान:** दृश्य बिम्ब ('हरी', 'लाल पत्ते'), गंध बिम्ब ('मंद गंध पुष्प-माल')।
- फागुन के **रंगों और सुगंध** का अनुपम चित्रण।
- **प्रकृति के सौंदर्य की असीमता** को दर्शाया गया है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
उत्साह (पृष्ठ संख्या 70)
-
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर 'गरजने' के लिए क्यों कहता है?
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर **'गरजने'** के लिए इसलिए कहता है क्योंकि:
- **क्रांति का प्रतीक:** कवि बादलों को क्रांति का प्रतीक मानता है। 'गरजना' क्रांति और बदलाव का आह्वान है, जो समाज में सोई हुई चेतना को जगाता है और अन्याय के विरुद्ध विद्रोह के लिए प्रेरित करता है। फुहार या रिमझिम से केवल शांति और कोमलता का भाव आता है, जबकि कवि समाज में एक बड़े परिवर्तन की कामना करता है।
- **शक्ति और ओज का भाव:** गर्जना में शक्ति, ओज और प्रचंडता का भाव निहित है। यह दबी हुई आवाजों को बुलंद करने और दमनकारी शक्तियों को चुनौती देने का प्रतीक है।
- **नूतन सृजन का आह्वान:** कवि चाहता है कि बादल अपनी भीषण गर्जना से जड़ता को तोड़ें और नवजीवन का संचार करें। वज्रपात जैसी गर्जना से ही पुराने का विध्वंस और नए का सृजन संभव है।
- **सामाजिक परिवर्तन की इच्छा:** कवि शोषण और अन्याय से त्रस्त समाज में एक व्यापक और तीव्र परिवर्तन लाना चाहता है। यह परिवर्तन धीरे-धीरे फुहार की तरह नहीं, बल्कि गर्जना की तरह प्रभावशाली और त्वरित होना चाहिए।
-
कविता का शीर्षक 'उत्साह' क्यों रखा गया है?
कविता का शीर्षक **'उत्साह'** इसलिए रखा गया है क्योंकि:
- **क्रांति का आह्वान:** यह कविता बादलों के माध्यम से समाज में **क्रांति और परिवर्तन का आह्वान** करती है। क्रांति के लिए अदम्य उत्साह और जोश की आवश्यकता होती है।
- **नवजीवन का संचार:** कवि बादलों से गरजने और बरसने का आग्रह कर रहा है ताकि वे पीड़ित और प्यासे लोगों (सामाजिक रूप से शोषित) में **नया उत्साह, नई ऊर्जा और नवजीवन** का संचार कर सकें।
- **प्रेरणा और स्फूर्ति:** यह कविता लोगों को निराशा और जड़ता से बाहर निकालकर उनमें **आशा, प्रेरणा और स्फूर्ति** भरने का कार्य करती है। बादलों की गर्जना और बिजली की चमक इस उत्साह को जगाती है।
- **शोषण के विरुद्ध आवाज:** यह शीर्षक उस जोश और हिम्मत को दर्शाता है जो अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए आवश्यक है।
- **अंधकार से मुक्ति:** 'उत्साह' शीर्षक अंधकार (अज्ञान, निराशा, अन्याय) से मुक्ति और एक नए, प्रकाशमय युग की स्थापना के लिए प्रेरित करता है।
-
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
कविता में बादल निम्नलिखित विभिन्न अर्थों की ओर संकेत करता है:
- **जल बरसाने वाला:** यह बादलों का सबसे सामान्य अर्थ है। वे गर्मी से तप्त धरती को जल से शीतल करते हैं और जीवन प्रदान करते हैं। यह दुख-पीड़ा से त्रस्त लोगों को राहत देने का प्रतीक है।
- **क्रांति का अग्रदूत:** बादल अपनी गर्जना से क्रांति और विद्रोह का आह्वान करते हैं। वे अन्याय, शोषण और जड़ता को समाप्त करने वाली शक्ति के प्रतीक हैं।
- **नवजीवन और आशा का संचारक:** जैसे बादल वर्षा कर सूख चुकी धरती पर नया जीवन लाते हैं, वैसे ही वे समाज में नई आशा, नई चेतना और नवजागरण का संचार करते हैं।
- **विनाश और सृजन का दोहरा रूप:** बादल एक ओर वज्र छिपाकर विध्वंसकारी शक्ति का परिचय देते हैं (जो बुराइयों का नाश करती है), तो दूसरी ओर जल बरसाकर सृजन का कार्य करते हैं।
- **कवि:** कवि बादलों को 'कवि' भी कहता है, क्योंकि जिस प्रकार कवि अपनी कविता से समाज में नया उत्साह, चेतना और परिवर्तन लाते हैं, उसी प्रकार बादल भी अपनी गर्जना से क्रांति लाते हैं।
-
कवि को 'नवजीवन वाले' क्यों कहा गया है?
कवि को **'नवजीवन वाले'** इसलिए कहा गया है क्योंकि:
- **नया जीवन देने वाला:** कवि बादलों को संबोधित करते हुए उन्हें 'कवि' और 'नवजीवन वाले' कहते हैं। जिस प्रकार बादल वर्षा कर धरती पर नया जीवन लाते हैं, उसी प्रकार कवि अपनी प्रेरणादायक, क्रांतिकारी कविताओं के माध्यम से समाज में **नवजीवन का संचार** करते हैं।
- **चेतना जगाने वाला:** कवि समाज में व्याप्त निराशा, जड़ता और अन्याय के विरुद्ध अपनी रचनाओं से लोगों की **सोई हुई चेतना को जगाते हैं**। वे उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
- **आशा का संचार:** अपनी कविताओं से कवि लोगों में **आशा और उत्साह** भरते हैं, जिससे वे अपने दुखों और मुश्किलों का सामना कर सकें और एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकें।
- **क्रांति का प्रेरणास्रोत:** कवि अपनी ओजस्वी वाणी और क्रांतिकारी विचारों से समाज में **परिवर्तन और क्रांति की भावना** उत्पन्न करते हैं, जिससे एक नए और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण हो सके।
अट नहीं रही है (पृष्ठ संख्या 70)
-
कवि ने 'अट नहीं रही है' कविता में प्रकृति के किस रूप का वर्णन किया है?
कवि ने **'अट नहीं रही है'** कविता में फागुन मास (बसंत ऋतु) में प्रकृति के **अत्यंत मनमोहक, सर्वव्यापी और उल्लासपूर्ण सौंदर्य** का वर्णन किया है। इस कविता में प्रकृति का आलंबनगत सौंदर्य प्रस्तुत किया गया है, जहाँ फागुन की सुंदरता इतनी अधिक है कि वह कहीं समा नहीं पा रही है।
- **व्यापक सौंदर्य:** फागुन का सौंदर्य किसी एक स्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हर जगह बिखरा हुआ है—पेड़ों की डालियों पर, फूलों की खुशबू में और आकाश में उड़ने वाले पक्षियों में।
- **रंग-बिरंगा रूप:** पत्तों का हरा और लाल होना, फूलों का खिलना—ये सब फागुन के रंग-बिरंगे रूप को दर्शाते हैं।
- **सुगंधित वातावरण:** मंद-मंद खुशबू से भरा वातावरण फागुन के सौंदर्य को और भी बढ़ा देता है।
- **उल्लास और उमंग:** प्रकृति में हर जगह एक उल्लास, उमंग और मस्ती का माहौल दिखाई देता है, जो मन को भी प्रफुल्लित कर देता है।
- **मानवीय भावनाओं का आरोपण:** कवि ने फागुन मास का मानवीकरण करते हुए दिखाया है कि वह कहीं साँस लेता है, कहीं घर-घर भर देता है, और उड़ने को पर-पर कर देता है। इससे प्रकृति सजीव और मानवीय भावनाओं से युक्त प्रतीत होती है।
-
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
फागुन (फरवरी-मार्च) का महीना बसंत ऋतु का एक हिस्सा होता है और इसमें ऐसा बहुत कुछ होता है जो इसे बाकी ऋतुओं से भिन्न बनाता है:
- **सर्वव्यापी सौंदर्य:** फागुन में प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है। पेड़-पौधे नए पत्तों, फूलों और कलियों से भर जाते हैं। हर जगह हरियाली और फूलों के रंग बिखरे होते हैं, जो मन को मोह लेते हैं।
- **सुगंधित वातावरण:** हवा में फूलों की भीनी-वीनी खुशबू घुली होती है, जिससे पूरा वातावरण मादक हो जाता है। यह खुशबू अन्य ऋतुओं में इतनी प्रबल नहीं होती।
- **समशीतोष्ण मौसम:** फागुन में न तो भीषण गर्मी होती है और न ही कड़ाके की ठंड। मौसम सुहावना और मनभावन होता है, जो बाहर घूमने और प्रकृति का आनंद लेने के लिए आदर्श होता है।
- **पक्षियों का कलरव:** इस महीने में पक्षियों का कलरव बढ़ जाता है। वे चहकते और फुदकते हुए दिखाई देते हैं, जिससे वातावरण में मधुरता घुल जाती है।
- **उल्लास और उमंग:** फागुन होली के त्योहार का महीना भी होता है। इसलिए, इसमें प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ एक सामाजिक और सांस्कृतिक उल्लास भी जुड़ा होता है, जो लोगों के मन में उमंग और खुशी भर देता है।
- **पुराने का त्याग और नए का आगमन:** पतझड़ के बाद फागुन में नए पत्तों और फूलों का आगमन होता है, जो पुराने को छोड़कर नए के स्वागत का प्रतीक है।
-
'अट नहीं रही है' कविता में कवि ने प्रकृति के किन उपादानों का चित्रण किया है?
'अट नहीं रही है' कविता में कवि ने फागुन मास में प्रकृति के निम्नलिखित उपादानों (तत्वों) का चित्रण किया है:
- **फागुन की आभा/शोभा श्री:** केंद्रीय उपादान फागुन का संपूर्ण सौंदर्य है जो इतना अधिक है कि कहीं समा नहीं पा रहा।
- **हवा/साँस:** फागुन के साँस लेने का मानवीकरण किया गया है, जिससे घर-घर सुगंध भर जाती है।
- **आकाश (नभ):** उड़ने की कल्पना में आकाश का जिक्र है, जहाँ पंखों के द्वारा विचरण किया जा सकता है।
- **पेड़-पौधे/डालियाँ:** पत्तों से लदी डालियाँ, जो कहीं हरी तो कहीं लाल रंग की हैं, पेड़ों की नई कोपलों का चित्रण करती हैं।
- **फूल/पुष्प-माल:** मंद सुगंध वाले फूलों का उल्लेख किया गया है, जो प्रकृति के गले में माला की तरह प्रतीत होते हैं।
- **सुगंध:** फूलों की मंद-मंद खुशबू का वर्णन है जो वातावरण को मादक बना देती है।
-
'अट नहीं रही है' कविता में कवि के मन पर फागुन का क्या प्रभाव पड़ता है?
'अट नहीं रही है' कविता में कवि के मन पर फागुन का बहुत गहरा और मंत्रमुग्ध कर देने वाला प्रभाव पड़ता है:
- **मनोहरता में डूब जाना:** कवि फागुन के अनुपम सौंदर्य में पूरी तरह डूब जाता है। उसे फागुन की आभा इतनी मनमोहक लगती है कि वह उससे अपनी आँखें हटा नहीं पाता।
- **विस्मय और आनंद:** कवि फागुन की सुंदरता को देखकर विस्मय और आनंद से भर उठता है। वह प्रकृति के इस अद्भुत रूप को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है।
- **सर्वव्यापी प्रभाव का अनुभव:** कवि अनुभव करता है कि फागुन की सुंदरता और मादकता हर जगह फैली हुई है, हर घर में व्याप्त है, और आकाश में उड़ने की चाह भर देती है।
- **असीमता का अनुभव:** कवि को फागुन का सौंदर्य इतना असीमित लगता है कि वह कहीं समा नहीं पा रहा। यह अनुभव कवि के मन को विशालता प्रदान करता है।
- **सृजनात्मकता का उद्वेलन:** फागुन की सुंदरता कवि के मन में सृजनात्मकता को उद्वेलित करती है, तभी वह इतने सुंदर और बिम्बात्मक शब्दों में इसका वर्णन कर पाता है।
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