अध्याय 10: आत्मकथ्य
कवि: जयशंकर प्रसाद
कवि परिचय
**जयशंकर प्रसाद** (जन्म: 1889, वाराणसी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु: 1937, वाराणसी, उत्तर प्रदेश) हिंदी साहित्य के **छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों** में से एक हैं। उन्हें 'ब्रजभाषा' और 'खड़ी बोली' दोनों में दक्षता प्राप्त थी। वे एक महान कवि, नाटककार, उपन्यासकार और निबंधकार थे। उनकी रचनाओं में प्रेम, सौंदर्य, राष्ट्रीय चेतना और दार्शनिक विचारों का अद्भुत समन्वय मिलता है। 'कामायनी' उनका महाकाव्य है, जो हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में 'झरना', 'आँसू', 'लहर' आदि; नाटकों में 'चंद्रगुप्त', 'स्कंदगुप्त', 'ध्रुवस्वामिनी' आदि; और कहानियों में 'आकाशदीप', 'इंद्रजाल' आदि शामिल हैं। 'आत्मकथ्य' उनकी एक प्रसिद्ध कविता है जिसमें उन्होंने अपनी आत्मकथा न लिखने के कारणों को स्पष्ट किया है।
---कविता का सार: 'आत्मकथ्य'
**'आत्मकथ्य'** कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक ऐसी मार्मिक रचना है जिसमें कवि ने अपनी **आत्मकथा न लिखने के कारणों** को स्पष्ट किया है। यह कविता उस समय लिखी गई थी जब उनके मित्रों ने उनसे अपनी आत्मकथा लिखने का अनुरोध किया था। प्रसाद जी अपनी आत्मकथा लिखने से बचते रहे और इस कविता के माध्यम से अपनी असमर्थता और संकोच को व्यक्त किया।
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, सुनते-सुनते क्या तुम भली-भाँति अभी भी? थक गए हो क्या तुम, सुन-सुन कर व्यथा पुरानी। गंभीर अनंतिम नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास यह लो करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य मलिन उपहास। तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती। किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले। यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं। भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं। उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की। मिली कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया। जिसके अरुण कपोलों की सुंदर छाया में अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग। उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। सीवन को उधेड़ कर देखोगे मेरी कंथा की? छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ? सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा? अभी समय भी नहीं थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
कवि कहता है कि उसका मन रूपी भौंरा गुन-गुन करके अपनी कौन-सी कहानी कह रहा है, जिसे लोग सुनते-सुनते कभी नहीं थकते थे। वह अपने मित्रों से पूछता है कि क्या वे उसकी पुरानी व्यथा (दुःख भरी कहानी) सुनकर थक नहीं गए हैं? संसार के इस अनंत, गंभीर आकाश में असंख्य लोगों के जीवन इतिहास हैं, जो अपने ही मलिन उपहास (कमजोरियों) का व्यंग्य करते रहते हैं।
फिर भी मित्र चाहते हैं कि वह अपनी बीती हुई दुर्बलताओं को बताए। कवि को लगता है कि उसकी आत्मकथा सुनकर लोग क्या सुख पाएंगे? वे देखेंगे कि उसकी जीवन रूपी **गागर (घड़ा) बिल्कुल रीती (खाली)** है। उसे डर है कि कहीं ऐसा न हो कि लोग उसे ही अपने जीवन की खाली गागर को भरने वाला (अपने दुःख साझा करने वाला) समझ लें और यह भी समझें कि उन्होंने ही कवि का रस (आनंद) छीन लिया है।
कवि को यह **विडंबना** (दुःखद स्थिति) लगती है कि वह अपनी सरलता का उपहास करे। वह सोचता है कि क्या वह अपनी भूलों को बताए या दूसरों द्वारा दी गई धोखेबाजी (प्रवंचना) को उजागर करे? वह अपनी **उज्ज्वल गाथा** (प्रेम भरी मधुर चाँदनी रातों की बातें) कैसे गा सकता है, जब उसे वह सुख ही नहीं मिला जिसका वह स्वप्न देखता था और जो उसके आलिंगन में आते-आते ही मुस्कुराकर भाग गया।
कवि अपनी उस प्रेमिका के लाल-लाल गालों की सुंदर छाया का स्मरण करता है, जहाँ प्रेममयी उषा (सुबह) अपना सुहाग लेती थी। उस प्रेमिका की स्मृति ही अब उसके थके हुए जीवन पथ का **पाथेय** (रास्ते का भोजन/सहारा) बनी है। कवि पूछता है कि क्या लोग उसकी जीवन रूपी गुदड़ी (कंथा) की सिलाई (सीवन) उधेड़कर उसके अंदर के सारे दुःख और राज देखना चाहते हैं?
कवि अंत में कहता है कि उसके **छोटे से जीवन** की कैसे कोई बड़ी कथा कही जा सकती है? क्या यह अच्छा नहीं कि वह दूसरों की कहानी सुने और स्वयं चुप रहे? उसकी यह **भोली आत्मकथा** सुनकर भला कोई क्या करेगा? वह महसूस करता है कि अभी अपनी व्यथा कहने का **सही समय भी नहीं** है, क्योंकि उसकी मौन व्यथा अभी सोई हुई है और उसे जगाना नहीं चाहता।
मुख्य बिंदु
- कविता में कवि **जयशंकर प्रसाद** ने अपनी **आत्मकथा न लिखने के कारणों** को बताया है।
- कवि का मानना है कि उसका जीवन दुखों और अभावों से भरा रहा है, जिसे बताकर वह दूसरों को दुखी नहीं करना चाहता।
- वह अपने जीवन की गागर को **रीती (खाली)** मानता है और उसे दूसरों के सामने उजागर नहीं करना चाहता।
- कवि को अपनी **सरलता** का उपहास करने में विडंबना महसूस होती है।
- वह अपने **प्रेम जीवन के सुखद पलों** को भी निजी मानता है और उन्हें दूसरों के सामने उजागर नहीं करना चाहता, क्योंकि वे अधूरे रह गए थे।
- अपनी प्रेमिका की स्मृति को ही वह अपने जीवन का **'पाथेय'** मानता है।
- कवि का मानना है कि उसके छोटे से जीवन की कोई बड़ी कथा नहीं है, और वह **मौन** रहना पसंद करता है।
- कविता में कवि की **विनम्रता, संकोच, वेदना और जीवन के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण** झलकता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
I. विचार करें और उत्तर दें (पृष्ठ XX - काल्पनिक)
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कवि ने अपनी आत्मकथा न लिखने के लिए क्या-क्या तर्क दिए हैं?
कवि ने अपनी आत्मकथा न लिखने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए हैं:
- **जीवन की दुर्बलता और अभाव:** कवि का जीवन दुखों, अभावों और असफलताओं से भरा रहा है। वह अपनी दुर्बलताओं और कमियों को उजागर कर दूसरों को हँसी का पात्र नहीं बनाना चाहता।
- **दूसरों को दुखी न करना:** कवि को डर है कि उसकी दुःख भरी कहानी सुनकर कहीं लोग दुखी न हो जाएँ या उसे अपने दुःख साझा करने वाला न समझ लें।
- **'गागर रीती' का डर:** वह अपने जीवन रूपी घड़े को खाली मानता है, जिसमें बताने लायक कोई महान उपलब्धि या सुखद अनुभव नहीं है। वह इस खालीपन को दूसरों के सामने उजागर नहीं करना चाहता।
- **सरलता का उपहास:** कवि अपनी सहज और सरल प्रकृति को अपनी आत्मकथा में व्यक्त कर उसका उपहास नहीं उड़ाना चाहता।
- **निजी सुखों को गुप्त रखना:** कवि अपने प्रेम जीवन के मधुर, परंतु अधूरे रह गए क्षणों को निजी मानता है और उन्हें सार्वजनिक कर उनका अनादर नहीं करना चाहता। वह उन्हें अपनी 'उज्ज्वल गाथा' कहता है।
- **दूसरों द्वारा मिली प्रवंचना (धोखा):** कवि को यह भी डर है कि आत्मकथा लिखने पर उसे दूसरों द्वारा दी गई धोखेबाजी को भी उजागर करना पड़ेगा, जो वह नहीं चाहता।
- **मौन रहना बेहतर:** कवि का मानना है कि उसके छोटे से जीवन की कोई बड़ी कथा नहीं है और दूसरों की कथाएँ सुनकर चुप रहना ही अधिक श्रेयस्कर है।
- **असमर्थता और समय का अभाव:** कवि कहता है कि अभी उसकी मौन व्यथा सोई हुई है और उसे जगाना ठीक नहीं है, न ही उसके पास इतनी बड़ी कथा कहने का समय है।
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'उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की' - इस पंक्ति में कवि किस ओर संकेत कर रहा है?
इस पंक्ति में कवि अपने **प्रेम जीवन के सुखद, उज्ज्वल और निजी पलों** की ओर संकेत कर रहा है। 'मधुर चाँदनी रातें' प्रेम के कोमल, एकांत और आनंदमय क्षणों का प्रतीक हैं। कवि का मानना है कि प्रेम के ऐसे पल अत्यंत निजी और पवित्र होते हैं। यद्यपि उसके जीवन में प्रेम आया, पर वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सका, वह 'आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर भाग गया'। इसलिए, कवि ऐसे अधूरे और निजी अनुभवों को सार्वजनिक रूप से अपनी आत्मकथा में व्यक्त कर उनका उपहास नहीं करना चाहता। वह उन्हें अपनी पवित्र स्मृति के रूप में ही सहेजना चाहता है।
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कवि अपनी 'स्मृति' को 'पाथेय' क्यों मानता है?
कवि अपनी **प्रेमिका की स्मृति** को 'पाथेय' मानता है क्योंकि:
- **जीवन का सहारा:** 'पाथेय' का अर्थ है रास्ते का भोजन या सहारा। जिस प्रकार यात्री रास्ते में भूख लगने पर पाथेय का सहारा लेता है, उसी प्रकार कवि अपने दुःखमय और थके हुए जीवन-पथ पर आगे बढ़ने के लिए अपनी प्रेमिका की मधुर स्मृतियों को ही एकमात्र सहारा मानता है।
- **प्रेरणा स्रोत:** ये स्मृतियाँ उसे निराशा में भी जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। उसके जीवन में भले ही वास्तविक सुख न मिला हो, लेकिन उन प्रेम भरे पलों की यादें उसे हिम्मत देती हैं।
- **अंतिम पूंजी:** भौतिक सुखों के अभाव में, ये स्मृतियाँ ही कवि के लिए भावनात्मक रूप से सबसे कीमती 'पूंजी' हैं, जिन्हें वह दूसरों के सामने उजागर कर कम नहीं करना चाहता।
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कवि ने अपने 'छोटे से जीवन' को 'बड़ी कथाएँ' क्यों नहीं कहा?
कवि ने अपने 'छोटे से जीवन' को 'बड़ी कथाएँ' इसलिए नहीं कहा क्योंकि:
- **अभावों और दुखों से भरा:** कवि का जीवन सुख, सफलता और महान उपलब्धियों के बजाय, दुखों, अभावों और संघर्षों से भरा रहा है। उसे नहीं लगता कि इसमें ऐसी कोई 'बड़ी' या प्रेरणादायक बात है जिसे दूसरों के सामने रखा जाए।
- **विनम्रता और आत्म-संकोच:** कवि स्वभाव से अत्यंत विनम्र और आत्म-संकोची थे। वे स्वयं को महान या विशेष नहीं मानते थे कि उनके जीवन पर कोई बड़ी कथा लिखी जाए।
- **आत्मकथा की आवश्यकता पर प्रश्न:** कवि को आत्मकथा लिखने की आवश्यकता ही नहीं महसूस होती, क्योंकि उसे लगता है कि उसके जीवन में ऐसा कुछ नहीं है जो समाज को कोई विशेष संदेश दे सके।
- **निजी दुःख का सार्वजनिक न होना:** वह अपने निजी दुखों को सार्वजनिक कर 'बड़ी कथा' बनाने से बचना चाहते थे, क्योंकि इससे उन्हें और दूसरों को भी पीड़ा हो सकती थी।
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इस कविता में कवि की कौन-सी विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं?
इस कविता में कवि जयशंकर प्रसाद की निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं:
- **विनम्रता और आत्म-संकोच:** कवि अपनी दुर्बलताओं और अभावों को स्वीकार करते हुए आत्मकथा लिखने से हिचकते हैं, जो उनकी विनम्रता को दर्शाता है।
- **यथार्थवादी दृष्टिकोण:** कवि अपने जीवन के सुखों के अभाव और दुखों को स्वीकार करते हैं, जो उनके यथार्थवादी दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।
- **संवेदनशीलता:** वे अपनी कथा बताकर दूसरों को दुखी नहीं करना चाहते, यह उनकी संवेदनशीलता का प्रमाण है।
- **दर्शनिक सोच:** जीवन की नश्वरता और दुखों की अनिवार्यता पर उनकी सोच में एक दार्शनिक गहराई है।
- **स्वाभिमान:** वे दूसरों की दया या सहानुभूति प्राप्त करने के लिए अपने दुखों का बखान नहीं करना चाहते।
- **गंभीरता और मौन प्रियता:** कवि अपनी व्यथा को 'मौन' और 'सोई' हुई बताते हैं, जो उनकी गंभीर और मौन प्रिय प्रकृति को दर्शाता है।
- **निजीपन का सम्मान:** वे अपने प्रेम जीवन के निजी पलों को सार्वजनिक करने से बचते हैं, जो उनके निजी जीवन के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)