अध्याय 5: मैं क्यों लिखता हूँ?
लेखक: सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
लेखक परिचय
**सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'** (जन्म: 1911, कसिया, उत्तर प्रदेश; मृत्यु: 1987, दिल्ली) हिंदी साहित्य के एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। वे एक कवि, कथाकार, निबंधकार, पत्रकार और आलोचक के रूप में प्रसिद्ध हैं। 'अज्ञेय' को प्रयोगवाद और नई कविता का प्रवर्तक माना जाता है। उन्हें 1978 में उनके काव्य संग्रह 'कितनी नावों में कितनी बार' के लिए **ज्ञानपीठ पुरस्कार** से सम्मानित किया गया था। उनकी प्रमुख रचनाओं में 'शेखर: एक जीवनी', 'नदी के द्वीप', 'हरी घास पर क्षण भर', 'आँगन के पार द्वार' आदि शामिल हैं। 'मैं क्यों लिखता हूँ?' उनका एक प्रसिद्ध निबंध है, जिसमें वे लेखन के आंतरिक और बाह्य कारणों पर विचार करते हैं।
पाठ का सार
अज्ञेय द्वारा लिखित निबंध **'मैं क्यों लिखता हूँ?'** एक आत्म-चिंतनशील और विचारोत्तेजक रचना है। इस निबंध में लेखक ने अपने लेखन के कारणों, प्रेरणाओं और प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डाला है। लेखक बताते हैं कि कोई भी लेखक **दो कारणों** से लिखता है:
- **आंतरिक विवशता या प्रेरणा (भीतरी दबाव):** लेखक के अनुसार, यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है। जब लेखक के मन में कोई अनुभूति इतनी तीव्र हो जाती है कि उसे व्यक्त किए बिना वह चैन नहीं पा सकता, तब वह लिखता है। यह एक प्रकार का **आत्म-प्रकाशन** है, जिसमें लेखक को स्वयं को जानने और समझने का अवसर मिलता है। लेखक ने उदाहरण दिया है कि जब कोई चीज व्यक्ति को **भीतर से आंदोलित** करती है, तो उसे बाहर निकालने का माध्यम लेखन ही बनता है।
- **बाह्य दबाव या बाहरी प्रेरणा:** इसके अंतर्गत वे कारण आते हैं जो लेखक को बाहर से लिखने के लिए प्रेरित करते हैं, जैसे:
- **संपादक का आग्रह:** किसी पत्रिका या समाचार पत्र के संपादक द्वारा लेख या कहानी लिखने का अनुरोध।
- **प्रकाशक का आग्रह:** किसी पुस्तक या संग्रह के लिए प्रकाशक का दबाव।
- **आर्थिक लाभ:** लेखन के माध्यम से धन कमाना।
- **ख्याति या प्रशंसा की इच्छा:** नाम कमाने या प्रशंसा पाने की लालसा।
- **जनता की माँग:** पाठकों की विशेष प्रकार की सामग्री की अपेक्षा।
लेखक स्पष्ट करते हैं कि बाह्य दबाव के कारण लिखे गए लेखन में भी आंतरिक विवशता की कुछ मात्रा हो सकती है, लेकिन वह मुख्य रूप से बाहरी कारणों से होता है। वे मानते हैं कि **सच्चा लेखन** वही है जो आंतरिक विवशता से जन्मा हो, क्योंकि उसमें लेखक की **ईमानदारी और संवेदनशीलता** निहित होती है।
लेखक ने हिरोशिमा पर लिखे अपने निबंध का उदाहरण दिया है। वे कहते हैं कि हिरोशिमा पर उन्होंने जापान जाकर ही लिखा, लेकिन उसकी मूल प्रेरणा युद्ध की विभीषिका के प्रति उनकी **भीतरी अनुभूति** थी। उन्होंने उस अनुभव को **पत्थर पर उभरी हुई मानव छाया** के रूप में देखा और उन्हें लगा कि यह अनुभव लिखने के लिए मजबूर कर रहा है। यह उनके **संवेदनशीलता और प्रत्यक्ष अनुभव** का परिणाम था, जो उन्हें लिखने को विवश करता है।
कुल मिलाकर, निबंध लेखन के पीछे की जटिल प्रेरणाओं का विश्लेषण करता है, यह बताता है कि कलाकार या लेखक अपनी कलाकृति का निर्माण क्यों करता है। अज्ञेय का मानना है कि लेखक का **आंतरिक सत्य और अनुभव** ही उसके लेखन का असली आधार होता है।
मुख्य बिंदु
- लेखक के अनुसार, लेखन के दो मुख्य कारण हैं: **आंतरिक विवशता** और **बाह्य दबाव**।
- **आंतरिक विवशता** ही सच्चे और मौलिक लेखन का आधार है, जहाँ लेखक को स्वयं को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता महसूस होती है।
- **बाह्य दबाव** में संपादक/प्रकाशक का आग्रह, आर्थिक लाभ, ख्याति की इच्छा आदि शामिल हैं।
- लेखक ने **हिरोशिमा** के अपने अनुभव का उदाहरण दिया है, जहाँ उन्होंने एक पत्थर पर उभरी मानव छाया को देखकर अनुभव किया कि यह अनुभव ही उन्हें लिखने को विवश कर रहा है।
- यह निबंध लेखक की **संवेदनशीलता, ईमानदारी और आत्माभिव्यक्ति की आवश्यकता** पर ज़ोर देता है।
- अज्ञेय यह स्पष्ट करते हैं कि लेखन केवल बौद्धिक गतिविधि नहीं, बल्कि **गहरी मानवीय अनुभूति** का परिणाम है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
I. विचार करें और उत्तर दें (पृष्ठ XX - काल्पनिक)
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लेखक के अनुसार, प्रत्यक्ष अनुभव और अनुभूति में क्या अंतर है?
लेखक के अनुसार, **प्रत्यक्ष अनुभव** वह होता है जिसे हम सीधे अपनी इंद्रियों से देखते, सुनते या महसूस करते हैं, जैसे हिरोशिमा में बम गिरने की घटना के बारे में पढ़ना या सुनना। यह जानकारी का एक स्रोत है। जबकि **अनुभूति** उस प्रत्यक्ष अनुभव को आत्मसात करने, उस पर मनन करने और उसे व्यक्तिगत रूप से महसूस करने की प्रक्रिया है। अनुभूति में अनुभव का **आंतरिकीकरण** होता है, जिससे लेखक का हृदय और आत्मा प्रभावित होती है। लेखक का मानना है कि केवल प्रत्यक्ष अनुभव से कोई नहीं लिखता, बल्कि जब वह अनुभव अनुभूति बनकर लेखक के भीतर घुल जाता है, तभी वह लिखने के लिए विवश होता है।
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लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का **भोक्ता (भुगतने वाला)** सीधे विस्फोट के समय नहीं, बल्कि जापान जाकर हिरोशिमा में एक **पत्थर पर उभरी हुई मानव छाया** देखकर महसूस किया। यह छाया बम विस्फोट के दौरान वहाँ खड़े व्यक्ति के भाप बन जाने और उसके शरीर की बाधा के कारण विकिरणों को आगे न बढ़ पाने से बनी थी। इस दृश्य को देखकर लेखक के मन में उस विभीषिका की **अनुभूति** इतनी तीव्र हो गई कि उन्हें लगा कि मानो स्वयं उन्होंने उस दर्द को भोगा हो। यह अनुभूति इतनी गहरी थी कि उसने उन्हें हिरोशिमा पर लिखने के लिए विवश कर दिया।
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लेखक को क्यों लगता है कि 'बाध्यता' और 'विवशता' लेखक की भीतरी प्रेरणा को भीतरी दबाव में बदल देती है?
लेखक को लगता है कि जब कोई लेखक किसी **बाहरी दबाव या बाध्यता** (जैसे संपादक का आग्रह, आर्थिक लाभ, ख्याति की इच्छा) के कारण लिखता है, तो उसकी **भीतरी प्रेरणा** (जो स्वाभाविक होती है) दब जाती है या एक **भीतरी दबाव** में बदल जाती है। इस स्थिति में लेखक स्वतंत्र रूप से अपनी अनुभूति को व्यक्त नहीं कर पाता, बल्कि उसे बाहरी आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने की कोशिश करता है। इससे उसका लेखन उतना मौलिक और सच्चा नहीं रह जाता, जितना कि वह आंतरिक विवशता से उपजा होता। बाहरी बाध्यता एक प्रकार से लेखक की रचनात्मक स्वतंत्रता को सीमित कर देती है।
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अज्ञेय के अनुसार, लेखन का मूल कारण क्या है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
अज्ञेय के अनुसार, लेखन का मूल कारण **आंतरिक विवशता या भीतरी प्रेरणा** है। लेखक तभी लिखता है जब उसके भीतर कोई अनुभूति इतनी तीव्र हो जाती है कि उसे व्यक्त किए बिना वह रह नहीं पाता। यह एक प्रकार का **आत्म-प्रकाशन** है जहाँ लेखक को स्वयं को जानने और समझने का अवसर मिलता है।
उदाहरण के लिए, लेखक हिरोशिमा पर हुई बमबारी के बारे में पढ़ते या सुनते रहे थे, लेकिन यह केवल **ज्ञान** था। जब वे जापान गए और हिरोशिमा में एक **पत्थर पर उभरी मानव की काली छाया** देखी, तो उनके मन में उस विस्फोट की विभीषिका की **गहरी अनुभूति** हुई। उन्हें लगा कि वह दर्द उन्होंने स्वयं भोगा है। यह अनुभूति इतनी शक्तिशाली थी कि इसने उन्हें हिरोशिमा पर कविता लिखने के लिए विवश कर दिया। उनका यह लेखन किसी बाहरी दबाव का परिणाम नहीं, बल्कि इसी आंतरिक विवशता का प्रतिफल था।
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इस पाठ में लेखक ने जापान के किन प्रसंगों का उल्लेख किया है? वे क्यों महत्वपूर्ण हैं?
इस पाठ में लेखक ने जापान के निम्नलिखित प्रसंगों का उल्लेख किया है:
- **हिरोशिमा पर बमबारी का अप्रत्यक्ष अनुभव:** लेखक ने हिरोशिमा पर हुए बम विस्फोट के बारे में पुस्तकों में पढ़ा था, जिससे उन्हें घटना का ज्ञान तो था, लेकिन उसकी भयावहता की गहरी अनुभूति नहीं थी।
- **हिरोशिमा की यात्रा और पत्थर पर मानव छाया देखना:** लेखक जब जापान गए और हिरोशिमा में उस पत्थर को देखा जिस पर विस्फोट से भाप बने व्यक्ति की छाया अंकित हो गई थी, तब उन्हें उस विभीषिका की सच्ची अनुभूति हुई। यह उनके लेखन की मूल प्रेरणा बनी।
- **जापान के संस्कृति और लोगों की संवेदनशीलता:** लेखक ने जापानियों की संवेदनशीलता और प्रकृति से उनके जुड़ाव का भी उल्लेख किया है, जो परोक्ष रूप से उनके लेखन को प्रभावित करता है।
ये प्रसंग महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे लेखक के **आंतरिक प्रेरणा के सिद्धांत** को पुष्ट करते हैं। हिरोशिमा की यात्रा और उस मानव छाया को देखने के अनुभव ने ही लेखक के ज्ञान को **गहरी अनुभूति** में बदला, जिसने उन्हें 'हिरोशिमा' कविता लिखने के लिए विवश किया। यह दर्शाता है कि लेखक का प्रत्यक्ष अनुभव, जब अनुभूति में बदलता है, तभी वह सृजन का आधार बनता है।
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