अध्याय 2: जॉर्ज पंचम की नाक
कमलेश्वर
लेखक-परिचय
कमलेश्वर (1932-2007) हिंदी साहित्य के एक बहुमुखी और महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। नई कहानी आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में से एक कमलेश्वर ने उपन्यास, कहानी, नाटक, यात्रा-वृत्तांत, संस्मरण और पत्रकारिता सहित विभिन्न विधाओं में लेखन किया। उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन की विसंगतियाँ, शहरी अकेलेपन और सामाजिक-राजनीतिक विद्रूपताओं का गहरा चित्रण मिलता है।
कमलेश्वर ने विभिन्न पत्रिकाओं का संपादन किया और दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में भी कार्य किया। उनकी प्रमुख कृतियों में 'कितने पाकिस्तान' (उपन्यास), 'राजा निरबंसिया', 'कस्बे का आदमी', 'मांस का दरिया' (कहानी संग्रह) शामिल हैं। उन्हें 2003 में उनके उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
प्रस्तुत व्यंग्यात्मक कहानी **'जॉर्ज पंचम की नाक'** उनकी सशक्त व्यंग्य-शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस कहानी में उन्होंने **आजादी के बाद भी औपनिवेशिक मानसिकता, सरकारी तंत्र की चापलूसी, अदूरदर्शिता और भारत के आत्मसम्मानहीन व्यवहार** पर तीखा प्रहार किया है। यह कहानी हमें अपनी पहचान और आत्मगौरव के प्रति सचेत करती है।
---पाठ का सार
**'जॉर्ज पंचम की नाक'** कमलेश्वर द्वारा लिखित एक तीखा व्यंग्य है, जो भारत की **औपनिवेशिक मानसिकता** और **सरकारी तंत्र की चापलूसी तथा आत्मसम्मानहीनता** को उजागर करता है।
कहानी की शुरुआत में बताया जाता है कि इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय भारत दौरे पर आ रही हैं। उनके आगमन को लेकर दिल्ली में बहुत हलचल मच जाती है। सरकारी अमला उनकी शान में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता। दिल्ली की कायापलट की जा रही है, सड़कों को चमकाया जा रहा है और इमारतों को सजाया जा रहा है। इसी बीच एक बड़ी समस्या सामने आती है—दिल्ली में इंडिया गेट के सामने लगी जॉर्ज पंचम की लाट (मूर्ति) की नाक गायब है। यह नाक भारत में उनके सम्मान का प्रतीक थी, और अब उसके बिना रानी का स्वागत करना ब्रिटिश शासन के सामने भारतीयों की हार और गुलामी का प्रतीक माना जा रहा है।
सरकारी विभाग के लोग इस समस्या पर परेशान हो जाते हैं। एक बैठक बुलाई जाती है और सभी इस नाक को लगाने के लिए चिंतित होते हैं। मूर्तिकार को बुलाया जाता है। मूर्तिकार पहले मूर्तियों के पत्थर की तलाश में निकलता है, ताकि जॉर्ज पंचम की नाक उसी पत्थर से बनी हो। वह पूरे भारत में पत्थरों की खोज करता है, पहाड़ों पर जाता है, लेकिन ऐसा कोई पत्थर नहीं मिलता। यह एक प्रतीकात्मक व्यंग्य है कि **भारत के पास अपने इतिहास से जुड़ी हुई कोई ऐसी चीज़ नहीं नहीं बची है जो ब्रिटिश शासन के सामने सम्मानजनक हो।**
जब पत्थर नहीं मिलता, तो मूर्तिकार एक और सुझाव देता है। वह कहता है कि देश में 1942 के आंदोलन के दौरान शहीद हुए देशभक्तों की मूर्तियाँ होंगी, उनकी नाकों का माप ले लिया जाए। यदि जॉर्ज पंचम की नाक किसी भी शहीद की नाक से मिलती है, तो वह लगा दी जाएगी। यह सुझाव सरकारी अधिकारियों को स्वीकार्य लगता है, और मूर्तिकार पूरे भारत का दौरा करता है। वह देखता है कि **सभी शहीदों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी हैं**, जिसका अर्थ है कि भारतीय शहीदों का आत्मसम्मान और बलिदान जॉर्ज पंचम के सम्मान से कहीं अधिक है। यह फिर से एक गहरा व्यंग्य है कि हम आज भी अपने शहीदों के सम्मान को एक विदेशी शासक के सम्मान से कमतर मान रहे हैं।
अंत में, जब कोई हल नहीं निकलता, तो मूर्तिकार एक और भयानक और अंतिम सुझाव देता है—**किसी जीवित व्यक्ति की नाक काट कर जॉर्ज पंचम की लाट पर लगा दी जाए।** यह सुनकर अधिकारी और परेशान हो जाते हैं, लेकिन मूर्तिकार आश्वस्त करता है कि यह काम चुपचाप हो जाएगा। अंततः, मूर्तिकार एक जीवित व्यक्ति की नाक काटकर जॉर्ज पंचम की लाट पर लगा देता है। उस दिन अखबारों में खबरें छपती हैं कि जॉर्ज पंचम की नाक लग गई है, लेकिन यह भी लिखा होता है कि **"आज के अखबारों में कोई और खबर नहीं है... किसी का उद्घाटन नहीं हुआ... कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई... क्योंकि नाक तो एक ही थी और वह भी जॉर्ज पंचम की।"**
यह अंतिम वाक्य कहानी का सबसे बड़ा व्यंग्य है। यह दर्शाता है कि भारत ने आजादी के बाद भी **आत्मसम्मान खोकर औपनिवेशिक शासकों की चापलूसी करने में** अपनी सारी ऊर्जा लगा दी, यहाँ तक कि एक जीवित व्यक्ति की नाक काट दी गई, जो भारत के **आत्मगौरव और नैतिक मूल्यों के पतन** का प्रतीक है। कहानी तत्कालीन भारतीय समाज और सरकारी तंत्र की **गुलाम मानसिकता, खोखली देशभक्ति और व्यर्थ के आडंबर** पर करारा प्रहार करती है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
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सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?
सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता और बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी **गुलाम मानसिकता, औपनिवेशिक दासता, चापलूसी और आत्मसम्मानहीनता** को दर्शाती है। इसके प्रमुख बिंदु हैं:
- **औपनिवेशिक मानसिकता:** आजादी के बाद भी भारतीय सरकारी अधिकारी ब्रिटिश शासन के प्रतीक जॉर्ज पंचम के सम्मान को सर्वोच्च मान रहे थे। वे एक विदेशी शासक की नाक की सुरक्षा को अपनी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से अधिक महत्त्व दे रहे थे। यह दिखाता है कि वे मानसिक रूप से अभी भी अंग्रेजों के गुलाम थे।
- **चापलूसी और खुशामद:** रानी एलिज़ाबेथ के भारत आगमन पर सरकारी तंत्र उनकी आवभगत और चापलूसी में इतना लीन था कि वे हर हाल में जॉर्ज पंचम की नाक लगाना चाहते थे, ताकि रानी के सामने कोई कमी न रह जाए। यह उनकी खुशामदपसंद प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- **आत्मसम्मानहीनता:** वे भारत के शहीदों और देशभक्तों की नाक को विदेशी जॉर्ज पंचम की नाक से कमतर मान रहे थे। अंततः एक जीवित भारतीय की नाक काटकर लगाने का निर्णय उनकी आत्मगौरवहीनता और राष्ट्रीय आत्मसम्मान के पतन को दर्शाता है।
- **अदूरदर्शिता और व्यर्थ का आडंबर:** सरकारी अधिकारी वास्तविक समस्याओं को छोड़कर एक मूर्ति की नाक जैसी तुच्छ समस्या पर अपना समय, धन और ऊर्जा बर्बाद कर रहे थे। यह उनकी अदूरदर्शिता और दिखावे की प्रवृत्ति को उजागर करता है। वे ऊपरी चमक-दमक में विश्वास रखते थे, आंतरिक मूल्यों में नहीं।
- **जनता से कटाव:** सरकार का यह रवैया दर्शाता है कि उन्हें जनता के आत्मसम्मान या भारतीय शहीदों के बलिदान से कोई सरोकार नहीं था। वे केवल अपने विदेशी आकाओं को खुश करने में लगे थे।
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रानी एलिज़ाबेथ के दर्जी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह उचित ठहराएँगे?
रानी एलिज़ाबेथ के दर्जी की परेशानी का कारण यह था कि रानी को भारत, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर जाना था और उसे यह नहीं पता था कि रानी किस अवसर पर कौन सी पोशाक पहनेंगी। उसे इस बात की चिंता थी कि रानी के लिए **कितनी और कैसी पोशाकें** तैयार की जाएँ, जो हर स्थान और कार्यक्रम के अनुकूल हों तथा ब्रिटेन की शाही शान को बरकरार रख सकें।
उसकी परेशानी को इस तरह उचित ठहराया जा सकता है:
- **शाही मर्यादा और प्रोटोकॉल:** शाही परिवारों के सदस्यों के लिए पोशाक का चयन एक गंभीर और प्रोटोकॉल से जुड़ा मामला होता है। हर अवसर, मौसम और स्थान के लिए विशेष परिधानों की आवश्यकता होती है। दर्जी की जिम्मेदारी थी कि वह रानी की प्रतिष्ठा के अनुरूप पोशाकें तैयार करे।
- **प्रतिनिधित्व का प्रश्न:** रानी केवल एक व्यक्ति नहीं थीं, बल्कि वे ब्रिटिश साम्राज्य और उसकी परंपरा का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। उनकी पोशाकें उनके देश की शान और गरिमा को दर्शाने वाली थीं। इसमें कोई चूक शाही मर्यादा का उल्लंघन मानी जाती।
- **व्यावसायिक जिम्मेदारी:** एक पेशेवर दर्जी के रूप में उसकी जिम्मेदारी थी कि वह अपने ग्राहक (रानी) की यात्रा के हर पहलू को ध्यान में रखकर कपड़े तैयार करे। सही जानकारी के अभाव में उसके लिए यह एक बड़ी चुनौती थी।
- **प्रेशर और उम्मीदें:** उस पर उच्च स्तर की अपेक्षाओं का दबाव था। यदि कोई गलती होती, तो उसकी व्यावसायिक प्रतिष्ठा पर सवाल उठ सकते थे।
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और देखते ही देखते नई दिल्ली की कायापलट होने लगी - नई दिल्ली के कायापलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
रानी एलिज़ाबेथ के भारत आगमन के अवसर पर नई दिल्ली की कायापलट करने के लिए युद्ध स्तर पर अनेक प्रयत्न किए गए होंगे, जिनमें शामिल हैं:
- **साफ-सफाई और सौंदर्यीकरण:**
- सड़कों की मरम्मत, धूल-मिट्टी हटाना, फुटपाथों को चमकाना।
- पेड़ों और पार्कों की छँटाई, नए फूल-पौधे लगाना।
- सरकारी इमारतों की रंगाई-पुताई और सजावट।
- सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा-करकट हटाना और स्वच्छता अभियान चलाना।
- **सुरक्षा व्यवस्था:**
- सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाना, चप्पे-चप्पे पर निगरानी रखना।
- रानी के मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों की विशेष जाँच करना।
- अवांछित तत्वों पर नज़र रखना।
- **प्रकाश व्यवस्था:**
- सड़कों और इमारतों पर नई रोशनी लगाना।
- रात में भी शहर को जगमग रखना।
- **अतिक्रमण हटाना:**
- सड़कों के किनारे से अवैध कब्जों और ठेले-खोमचे वालों को हटाना।
- बेतरतीब चीज़ों को व्यवस्थित करना।
- **अन्य व्यवस्थाएँ:**
- पानी, बिजली और संचार व्यवस्था को दुरुस्त करना।
- यातायात को सुचारू बनाने के लिए विशेष योजनाएँ बनाना।
- रानी के ठहरने और कार्यक्रम स्थलों पर विशेष व्यवस्थाएँ करना।
- **साफ-सफाई और सौंदर्यीकरण:**
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आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे, खान-पान, जीवन-शैली संबंधी ख़बरों को महत्त्व दिए जाने के कारण:
आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों (सेलिब्रिटीज) के पहनावे, खान-पान, जीवन-शैली संबंधी ख़बरों को अत्यधिक महत्त्व दिए जाने के कई कारण हैं:
- **जन-रुचि और जिज्ञासा:** आम जनता में सेलिब्रिटीज के निजी जीवन के बारे में जानने की प्रबल जिज्ञासा होती है। लोग उनके रहन-सहन, खाने-पीने और कपड़े पहनने के तरीके को जानना चाहते हैं। पत्रकारिता इसी रुचि को भुनाती है।
- **मनोरंजन का साधन:** ऐसी खबरें मनोरंजन का एक आसान और त्वरित साधन होती हैं। वे पाठकों या दर्शकों को तनाव और नीरसता से मुक्ति दिलाती हैं।
- **फैशन और ट्रेंड-सेटिंग:** सेलिब्रिटीज फैशन और जीवन-शैली के ट्रेंड-सेटर होते हैं। उनके पहनावे और लाइफस्टाइल का आम जनता पर सीधा असर पड़ता है, और लोग उनका अनुकरण करना चाहते हैं।
- **विज्ञापन और व्यापार:** ऐसी खबरें विज्ञापनों को आकर्षित करती हैं। सेलिब्रिटीज द्वारा पहनी गई पोशाकें या उपयोग किए गए उत्पाद तुरंत बाजार में लोकप्रिय हो जाते हैं, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
- **संवेदनशीलता का अभाव:** कई बार पत्रकारिता वास्तविक और गंभीर मुद्दों से हटकर सतही और सनसनीखेज ख़बरों पर ध्यान केंद्रित करती है, क्योंकि ये आसानी से बिकती हैं और अधिक पाठक/दर्शक जुटाती हैं।
- **प्रतिस्पर्धा:** मीडिया चैनलों और अखबारों के बीच प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है। हर कोई सबसे पहले और सबसे आकर्षक खबर देना चाहता है, और सेलिब्रिटी की निजी जिंदगी से जुड़ी खबरें यह लक्ष्य आसानी से पूरा करती हैं।
- **आसान सामग्री:** ऐसी खबरें जुटाना अपेक्षाकृत आसान होता है, क्योंकि सेलिब्रिटीज अक्सर सार्वजनिक जीवन में रहते हैं या उनके पी.आर. (जनसंपर्क) एजेंसियाँ स्वयं ऐसी जानकारी लीक करती हैं।
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जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने निम्नलिखित यत्न किए:
- **मूर्ति के पत्थर की खोज:** सबसे पहले उसने जॉर्ज पंचम की मूर्ति के निर्माण में लगे पत्थर की तलाश की। इसके लिए उसने भारत के विभिन्न पहाड़ों, खानों और मूर्तिकारों के यहाँ जाकर पत्थर के प्रकार का पता लगाने की कोशिश की, ताकि उसी पत्थर की नई नाक बनाई जा सके।
- **विदेशी पत्थर की तलाश:** जब भारतीय पत्थर नहीं मिला, तो उसने बताया कि यह पत्थर संभवतः विदेशी है। इसलिए, उसने भारत के सरकारी फाइलें खँगालीं, पत्थरों से जुड़ी हर जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की, और पुरातत्व विभाग की फाइलों में भी छानबीन की।
- **भारतीय नेताओं की मूर्तियों का माप लेना:** जब विदेशी पत्थर भी नहीं मिला, तो मूर्तिकार ने एक विवादास्पद सुझाव दिया। उसने कहा कि देश में बनी शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियों की नाकों का माप लिया जाए। यदि किसी की नाक जॉर्ज पंचम की नाक के बराबर निकल आती है, तो उसे काटकर लगा दिया जाएगा। इस काम के लिए उसने दिल्ली से बंबई, गुजरात, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मद्रास (चेन्नई), केरल आदि का दौरा किया।
- **जीवित व्यक्ति की नाक लगाना:** जब सभी नेताओं की नाकों को जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ा पाया गया, तो मूर्तिकार ने हताश होकर सबसे घिनौना और अमानवीय सुझाव दिया कि किसी जीवित व्यक्ति की नाक काटकर जॉर्ज पंचम की लाट पर लगा दी जाए। यह काम चुपचाप और गुप्त रूप से किया गया।
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प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए 'फाइलें सब कुछ हज़म कर चुकी हैं।' इस पंक्ति में 'फाइलें' और 'हज़म करने' का क्या अर्थ है? इसी प्रकार के कुछ अन्य कथन छाँटकर स्पष्ट कीजिए।
हाँ, यह कहानी मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करती है। प्रस्तुत प्रश्न के संदर्भ में: **'फाइलें सब कुछ हज़म कर चुकी हैं।'** * **फाइलें:** यहाँ 'फाइलें' सरकारी कार्यालयों में कागज़ों और रिकॉर्ड्स के रख-रखाव को दर्शाती हैं। यह सरकारी कामकाज की उस धीमी और जटिल प्रक्रिया का प्रतीक है जिसमें जानकारी को दबा दिया जाता है। * **हज़म कर चुकी हैं:** 'हज़म करना' का अर्थ है नष्ट कर देना, छिपा देना, या गायब कर देना। इस संदर्भ में इसका अर्थ है कि सरकारी फाइलों में जॉर्ज पंचम की मूर्ति से संबंधित कोई भी जानकारी (जैसे वह कहाँ से आई, किस पत्थर से बनी) उपलब्ध नहीं है। यह सरकारी तंत्र की **लापरवाही, अक्षमता, भ्रष्टाचार और गैर-जिम्मेदारी** पर व्यंग्य है कि महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ भी सरकारी रिकॉर्ड से गायब हो जाती हैं या जानबूझकर दबा दी जाती हैं। **इसी प्रकार के कुछ अन्य कथन और उनका स्पष्टीकरण:** 1. **"देखते ही देखते नई दिल्ली की कायापलट होने लगी।"** * **स्पष्टीकरण:** यह कथन सरकारी तंत्र की **दिखावापरस्ती और तात्कालिकता** पर व्यंग्य है। रानी के आगमन से पहले दिल्ली को रातोंरात चमकाने की कोशिश की गई, जबकि शहर की मूलभूत समस्याएँ जस की तस थीं। यह दर्शाता है कि सरकार केवल बाहरी चमक-दमक और तात्कालिक प्रभाव पर ध्यान देती है, वास्तविक और स्थायी सुधारों पर नहीं। 2. **"गश्त लगाती रही पुलिस और ख़ुफ़िया पुलिस।"** * **स्पष्टीकरण:** यह सरकारी तंत्र की **अविश्वास और अति सुरक्षा** की प्रवृत्ति पर व्यंग्य है। पुलिस और ख़ुफ़िया पुलिस केवल एक नाक की सुरक्षा के लिए गश्त लगा रही थी, जबकि देश में इससे कहीं बड़ी समस्याएँ थीं। यह उनकी प्राथमिकता के भटकाव को दर्शाता है और यह भी कि वे विदेशी मेहमान के सम्मान के लिए कितना चिंतित थे, भले ही इसके लिए आम जनता को असुविधा हो। 3. **"लाट के पैरों में दस-बीस फुट गहरी गंगा जल में डूबोई हुई नाक लग जानी चाहिए।"** * **स्पष्टीकरण:** यह कथन मूर्तिकार द्वारा सुझाया गया एक बेतुका हल है। यह भारतीय समाज में व्याप्त **अंधविश्वास और अतार्किक सोच** पर व्यंग्य है कि किसी समस्या का समाधान वैज्ञानिक या तार्किक ढंग से खोजने के बजाय चमत्कारों या अजीबोगरीब उपायों में ढूँढा जाता है। यह मूर्तिकार की चालाकी और अधिकारियों की मूर्खता को भी दर्शाता है। 4. **"हर हालत में इस नाक का होना तय है।"** * **स्पष्टीकरण:** यह कथन सरकारी अधिकारियों की **अंधभक्ति और आत्मसम्मानहीनता** पर तीखा व्यंग्य है। वे किसी भी कीमत पर जॉर्ज पंचम की नाक लगाना चाहते थे, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। यह उनकी इस मानसिकता को दर्शाता है कि विदेशी सत्ता को खुश करना किसी भी हद तक जाकर स्वीकार्य था, भले ही इसके लिए देश के आत्मसम्मान का सौदा करना पड़े। 5. **"आज के अखबारों में कोई और खबर नहीं थी... किसी का उद्घाटन नहीं हुआ... कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई... क्योंकि नाक तो एक ही थी और वह भी जॉर्ज पंचम की।"** * **स्पष्टीकरण:** यह कहानी का सबसे तीखा और मार्मिक व्यंग्य है। यह दर्शाता है कि जिस दिन एक जीवित भारतीय की नाक काटकर जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर लगाई गई, उस दिन भारतीय समाज और मीडिया अपने आत्मसम्मान को इतना खो चुके थे कि वे इस अपमान पर चुप्पी साध गए। कोई राष्ट्रीय विरोध, कोई आंदोलन, कोई बहस नहीं हुई। यह भारतीयों की **गुलाम मानसिकता, संवेदनहीनता और राष्ट्रीय गौरव के पतन** को दर्शाता है कि एक मृत विदेशी शासक के सम्मान के लिए एक जीवित भारतीय का बलिदान भी स्वीकार्य हो गया और इस पर किसी को शर्म नहीं आई। यह देश के लिए एक 'बिना नाक' के जीने जैसा है।
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